दिल्ली में आक्रोश में आए हजारों सरकारी शिक्षक एक सुर में मांग कर रहे हैं कि दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय का अहम प्रोजेक्ट चुनौती 2018 फौरन बंद कर दिया जाए. गवर्नमेंट स्कूल टीचर एसोसिएशन बीते कई दिनों से दिल्ली सरकार के इस प्रोजेक्ट को बंद करने की मांग कर रहा है.
जीएससीए के महासचिव अजय वीर यादव बताते हैं कि इस प्रोजेक्ट से सरकार चाहती है कि 'कुछ दिन में ही जो बच्चा पढ़ना लिखना नहीं जानता वह पढ़ने लिखने में परफेक्ट हो जाए यह बिल्कुल असंभव सा लगता है क्योंकि जो बच्चा बीते 10 साल से पढ़ाई में कमजोर है वह 2 महीने में सब कुछ कैसे सीख जाएगा.' दूसरी तमाम महिला शिक्षकों का भी कहना है कि 'इस प्रोजेक्ट के आने से बच्चों के भीतर हीन भावना बढ़ने लगी है अब उन्हें आपस में ही एक दूसरे से जलन होने लगी है. कई बार तो बच्चे झगड़ तक पड़ते हैं.'
दिल्ली सरकार ने लॉन्च किया है चुनौती 2018
दिल्ली सरकार ने हाल ही में चुनौती 2018 योजना लॉन्च की है इसके तहत दिल्ली के सरकारी स्कूलों में बच्चों को 3 वर्ग में बांट दिया गया है. एक वह वर्ग जो पढ़ना-लिखना जानते हैं, दूसरा वर्ग वह जिन में सुधार हो सकता है और तीसरा वर्ग वह जिन्हें कुछ भी नहीं आता है. दिल्ली सरकार चाहती है कि तीसरे वर्ग को भी पढ़ना लिखना सिखाया जाए और इसके लिए सरकार ने शिक्षकों को डेड लाइन दी है सरकार का कहना है कि तय अवधि के भीतर ही इस तरह की पढ़ाई कराई जाए की कमजोर बच्चों को भी पढ़ना लिखना आ जाए.
बच्चों को बांट रही है यह योजना
गवर्नमेंट स्कूल टीचर एसोसिएशन के पदाधिकारी बताते हैं कि इस योजना के बाद से बच्चों में आपसी लड़ाइयां ज्यादा होने लगी हैं. बच्चों को आपस में ही पता लगने लगा है कि वह बहुत ज्यादा कमजोर हैं और पढ़ाई में पीछे हैं ऐसे में उनकी संगति अच्छे और तेज बच्चों की बजाए उन्हीं के समकक्ष बच्चों के साथ करने से मुसीबत और भी बढ़ गई है. कई बार कमजोर और बिगड़े हुए बच्चे आपस में और भी बिगड़ने वाले काम शुरू कर देते है. शिक्षकों का कहना है कि अगर कमजोर बच्चों को तेज बच्चों के साथ बैठाया जाता तो कई बार कमजोर बच्चे तेज बच्चों से सीखने की कोशिश करते हैं और उनकी तरह बनना चाहते हैं. इस कोशिश में कमजोर बच्चे भी जल्दी सीख जाते हैं.
मनीष सिसोदिया का अहम प्रोजेक्ट
दिल्ली सरकार में शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया का चुनौती 2018 अहम प्रोजेक्ट है. सरकार किसी भी कीमत में इसे सफल करना चाहती है यही वजह है कि एक एनजीओ के जरिए इस परियोजना की रूपरेखा तैयार की गई है. सरकार के शिक्षा निदेशालय के तमाम बड़े अधिकारी इस योजना की देखरेख में लगाए गए हैं. यह योजना दिल्ली के सभी सरकारी स्कूलों में अच्छे ढंग से लागू हो यह देखने के लिए भी कई अफसर नोडल अधिकारी बनाए गए हैं. हालांकि देखना होगा कि आने वाले दिनों में इस योजना से कितनी सफलता मिलती है.