देश में माना जा रहा है कि सरकार भले दिल्ली से चले लेकिन सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है. क्योंकि पीएम मोदी बनारस की सीट से उम्मीदवार हैं. वहीं चहुंओर मचे इस चुनावी हो-हल्ले के बीच उसी बनारस की एक बेटी दिल्ली में गली-गली भटक रही है. कारण उनकी नौकरी पर मंडराता खतरा है और उसे अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ही आसरा है.
वाराणसी के साकेत इलाके की रहने वाली 28 वर्षीय खुशबू चौहान नाम की युवती इन दिनों दिल्ली के पंडित पंत मार्ग पर अपने दोस्तों के साथ धरने पर बैठी है. इसी जगह पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का प्रदेश कार्यालय है.
सत्ता के गलियारों में खुशबू की कहानी सुनने की ना तो किसी को फिक्र है, ना ही उसे ये उम्मीद है कि उसकी समस्या का चुनावों से पहले कोई समाधान हो सकता है, लेकिन उसे बस यही उम्मीद बची है कि पीएम मोदी तक उनकी आवाज पहुंच जाए.
अपने गेस्ट टीचर साथियों के साथ धरने पर बैठी खुशबू प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पूछ रही है कि 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' नारे का क्या करेंगे, जब बनारस के राज मिस्त्री की ये बेटी नौकरी नहीं कर सकती?
दरअसल खुशबू ने अखबार में पिछले साल गेस्ट टीचर का एक विज्ञापन देखा और अप्लाई कर दिया. दिल्ली के शादीपुर के एक स्कूल में काउंसलर के तौर पर उनका सिलेक्शन भी हो गया और वह वहां एक किराए का कमरा लेकर रहने लगीं. इससे पहले की दिल्ली की भीड़ में वह पूरी तरह रम पातीं, उन्हें पता चला की नौकरी पक्की नहीं है और कभी भी जा सकती है.
खुशबू कहती हैं कि करीब 22,000 गेस्ट टीचरों का भविष्य उन्हीं की तरह अधर में है. जब वह बनारस से 15 मार्च, 2018 को चलीं थीं, तो उनका पूरा परिवार और दोस्त उन्हें स्टेशन तक छोड़ने आए थे. घरवालों की आंखों में खुशी के आंसू छलक उठे कि एक मिस्त्री की बेटी दिल्ली में जाकर सरकारी नौकरी करेगी और घर के सारे आर्थिक संकट दूर करेगी, लेकिन खुशबू की ये खुशी ज्यादा दिन टिक नहीं पाई.
इस साल 1 मार्च से तमाम गेस्ट टीचरों के साथ खुशबू भी यहां वहां धरना दे रही हैं. दिल्ली में भी चुनाव हैं और बनारस में भी. खुशबू पीएम और अपने क्षेत्र के सांसद नरेंद्र मोदी से अपने और उन तमाम गेस्ट टीचरों के लिए गुहार लगा रही है, जिन्हें ये पता नहीं की कल नौकरी रहेगी या नहीं.
खुशबू कहतीं हैं कि उनके पिता सत्यनारायण चौहान दिहाड़ी मिस्त्री का काम करते हैं और बड़े ही मुश्किल हालात में उसको पढ़ाया है. खुशबू मनोविज्ञान में एमए हैं और गाइडेंस और काउंसिलिंग में डिप्लोमा भी कर चुकी हैं.
खुशबू कहती हैं कि उनको इतना पढ़ाने में उनके पिता ने कमर तोड़ मेहनत की और कभी नौकरी का दवाब नहीं डाला. लेकिन जब खुशबू ने सोचा कि अब पिता को मदद करने की उनकी बारी है तो नौकरी हाथ से जाती दिखी. गरीबी से निकलकर एक आर्थिक रुप से मजबूत जिंदगी जीने और परिवार को गरीबी से निकालने की उनकी चाह अधूरी रह गई क्योंकि ना तो दिल्ली की पिछली सरकार और ना ही अभी की आम आदमी पार्टी सरकार ने अपना वादा निभाया और उनकी नौकरी पक्की की. अब उन्हें प्रधानमंत्री से उम्मीद है.
खुशबू कहती हैं कि उनके पास ज्यादा पैसे नहीं बचे हैं. 20 दिन काम मिलने पर 30,000 रुपए मिल जाते हैं लेकिन कितने दिन काम मिलेगा ये पता नहीं, काम कल मिलेगा कि नहीं, ये भी नहीं पता. खुशबू मोदी को बनारस से होने की दुहाई दे रही हैं और अपने साथियों, जिनकी हालत भी लगभग उन्हीं की तरह है, के लिये मदद मांग रही हैं. खुशबू कहती हैं कि गेस्ट टीचरों को परमानेंट करना बिल्कुल मुमकिन है क्योंकि ये हरियाणा में पहले ही हो चुका है.
बता दें कि दिल्ली के सरकारी स्कूलों में 61168 शिक्षकों की जगह है जिसमें 34,323 शिक्षक परमानेंट हैं और 21,271 गेस्ट टीचर हैं. बाकि करीब 5300 पोस्ट खाली हैं.