यूं तो सरकारी स्कूल के टीचर क्या नहीं करते? फिर चाहे वो चुनाव करवाना हो या सर्वे. सबकुछ सरकारी शिक्षकों को ही करना होता है. लेकिन कोरोना काल में दिली के सरकारी शिक्षकों के सामने एक नई चुनौती आ गई है. उन्हें वैसे बच्चों को ढूंढ़ना है जो ऑनलाइन क्लास में शामिल नहीं हो पा रहे हैं. इन दिनों दिल्ली सरकारी स्कूल के कई छात्र दिल्ली से बाहर चले गए हैं या फिर मोबाइल-लैपटॉप नहीं होने के कारण क्लास नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे में उन छात्रों को ढूंढने के लिए शिक्षक गली-गली भटक रहे हैं.
शिक्षक हर गली में माइक के जरिए मुनादी कर रहे हैं कि अगर ऐसे गायब छात्रों या उनके अभिभावकों के बारे में लोगों के पास कोई सूचना है तो जरूर बताएं.
सरकार की यह स्कीम रोहिणी सेक्टर-8 के गवर्नमेंट सर्वोदय को एड विद्यालय से शुरू हुई है, जहां तकरीबन 2300 छात्र पढ़ते हैं. इनमें 1300 लड़के हैं, जबकि 1000 के करीब लड़कियां. अप्रैल महीने में जब लॉकडाउन के शुरुआती दिन थे तो तकरीबन 330 छात्रों का पता नहीं चल पा रहा था. लेकिन स्कूल प्रशासन ने इन छात्रों को वापस पढ़ाई की दुनिया में लाने की ठान ली.
पहले फोन और चिट्ठियों के जरिए संपर्क साधा गया, लेकिन स्कूल तब भी कइयों से जुड़ नहीं पाया. स्कूल के प्रिंसिपल अवधेश झा कहते हैं, 'ये चुनौती बड़ी थी, क्योंकि कोरोना की वजह से शिक्षकों को डर से हिम्मत तक का सफर तय करना था और छात्रों के लिए ये सफर बिना तकनीक से तकनीक तक का था. इसलिए हमने अप्रैल से ही इस मुहिम की शुरुआत कर दी. अब तक हमने अलग-अलग तरीकों से 200 से ज़्यादा छात्रों को ढूंढ़ निकाला है और बाकी बचे लगभग 100 छात्रों को शिक्षक गली-गली जाकर ढूंढ़ रहे हैं.
इन दिनों दिल्ली सरकार के स्कूलों में भी ऑनलाइन क्लासेज चल रही हैं. लेकिन सरकारी स्कूलों में कई छात्रों के पास स्मार्टफोन नहीं हैं. ऐसे में छात्रों को व्हाट्सएप पर ही प्रोजेक्ट दिए जा रहे हैं और जिनके पास वो भी नहीं है, उन्हें शिक्षक फोन पर जानकारी देते हैं.
दिल्ली के एजुकेशन डायरेक्टर उदित प्रकाश राय कहते हैं, “ये शुरुआत कुछ स्कूलों ने अपने स्तर पर की. इससे छात्रों से संपर्क साधने में कामयाबी भी मिली है. आने वाले दिनों में दिल्ली के और स्कूल भी इस तरह के कदम उठाएंगे.”
दरअसल कोरोना ने शिक्षा सहित कई क्षेत्रों में नई चुनौतियां पैदा की हैं. इसलिए शिक्षकों के लिए चुनौती ना सिर्फ सामान्य क्लास से ऑनलाइन क्लास के लिए खुद को तैयार करना है बल्कि छात्रों को नए-नए तरीकों से इस नई शिक्षा प्रणाली के नजदीक लेकर आना भी है. खास तौर पर उन छात्रों को जिनके पास इल्केट्रॉनिक उपकरण जैसे साधन नहीं हैं.