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टीचरों को फिनलैंड भेजने के प्रस्ताव को मंजूरी, फिर LG से खफा क्यों है दिल्ली सरकार?

दिल्ली सरकार ने उपराज्यपाल वीके सक्सेना को मिनी तानाशाह कहा है. साथ ही बोला है कि उन्हें फिनलैंड शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम को जानबूझकर खराब करने के बाद उन्हें इस मामले में उच्च नैतिक आधार अपनाने का कोई अधिकार नहीं है. उनका एकमात्र उद्देश्य सरकार के सभी अच्छे कामों को किसी भी तरह से रोकना है.

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दिल्ली एलजी विनय सक्सेना और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (फाइल फोटो).
दिल्ली एलजी विनय सक्सेना और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (फाइल फोटो).

दिल्ली सरकार के फिनलैंड शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम को एलजी वीके सक्सेना ने शनिवार को मंजूदी दे दी. साथ ही शिक्षकों की संख्या 52 से बढ़ाकर 87 कर दी गई है. मगर, दिल्ली सरकार ने एलजी के फैसले को संविधान और सुप्रीम कोर्ट के साथ धोखाधड़ी बताते हुए बयान जारी किया है. 

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सरकार ने कहा कि एलजी ने एक छोटे तानाशाह की तरह काम किया है. एलजी द्वारा फिनलैंड शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम के संशोधित प्रस्ताव को चार महीने बाद वापस करने पर दिल्ली सरकार ने हमला बोला है. क्योंकि दिसंबर 2022 और मार्च 2023 में यह प्रशिक्षण आयोजित होने थे, लेकिन अब यह प्रस्ताव निरर्थक हो गया है.

 

केजरीवाल सरकार के बयान की कुछ मुख्य बातें :

केजरीवाल सरकार के मुताबिक, फिनलैंड शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिए फाइल पहली बार 25 अक्टूबर 2022 को एलजी कार्यालय में भेजी गई थी, ताकि वह इस बात पर विचार कर सकें और इसे 15 दिनों के भीतर भारत के राष्ट्रपति के पास भेज सकें.

मगर, नियमों का उल्लंघन करते हुए एलजी ने तीन आपत्तियां जताते हुए 10 नवंबर 2022 को फाइल दिल्ली के मुख्य सचिव को लौटा दी. शिक्षक प्रशिक्षण संबंधी गतिविधियों की देखने वाली संस्था एससीईआरटी ने उन बिंदुओं को स्पष्ट किया और 14 दिसंबर 2022 को एलजी को फाइल फिर से सौंपी.

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इसके बाद, एलजी ने दो और स्पष्टीकरण मांगते हुए 9 जनवरी 2023 को फाइल सीएम को वापस कर दी. तत्कालीन डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने 20 जनवरी 2023 को सीएम के माध्यम से एलजी को विस्तृत जवाब भेजा.

फाइल को चार महीने लटकाया

केजरीवाल सरकार के बयान में कहा गया है कि फाइल को 4 महीने तक लटकाने के बाद संविधान और एससी के आदेशों का उल्लंघन कर एक बार फिर प्रस्ताव वापस कर दिया है. 

एलजी ने अपने संशोधित प्रस्ताव में आगे के प्रशिक्षण के लिए भेजे जाने वाले शिक्षकों की संख्या को संशोधित करने की मांग की है. भविष्य में इस तरह के अंतरराष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रमों को कम करने की भी मांग की है. एलजी का ऐसा करना एससीईआरटी दिल्ली की सलाह के प्रति पूरी तरह अवहेलना और अनादर दिखाती हैं.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश और संविधान का उल्लंघन

उपराज्यपाल बार-बार कहते रहे हैं कि वह संविधान और उच्चतम न्यायालय के आदेशों से बंधे नहीं हैं. फाइल पर एलजी की टिप्पणी सीधे तौर पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश और संविधान का उल्लंघन करती है.

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 4 जुलाई 2018 को स्पष्ट रूप से यह कानून निर्धारित किया था कि दिल्ली के उपराज्यपाल शिक्षा सहित चुनी हुई सरकार के अधिकार क्षेत्र में आने वाले किसी भी स्थानांतरित विषय पर कोई स्वतंत्र निर्णय नहीं ले सकते हैं.

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मंत्री के निर्णय से अलग

फिनलैंड शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम की फाइल एलजी को अक्टूबर 2022 में यह तय करने के लिए भेजी गई थी कि क्या वह मंत्री के निर्णय से अलग राय रखना चाहते हैं. 

जीएनसीटीडी के संशोधित कार्य संचालन नियम 2021 के नियम 49 के अनुसार उपराज्यपाल और मंत्री के बीच किसी मामले को लेकर मतभेद होने की स्थिति में उपराज्यपाल को 15 दिनों के भीतर चर्चा के माध्यम से मतभेद को दूर करने का प्रयास करना चाहिए.

यदि राय में अंतर बना रहता है तो मामला मंत्रिपरिषद को भेजा जाना है. मंत्रिपरिषद को 10 दिनों के भीतर इस मुद्दे पर विचार-विमर्श करना चाहिए और निर्णय लेना चाहिए.

यदि मामला अभी भी अनसुलझा रहता है या मंत्रिपरिषद द्वारा निर्धारित समय अवधि के भीतर कोई निर्णय नहीं लिया जाता है तो नियम 50 के अनुसार अंतिम निर्णय के लिए इस मामले को एलजी द्वारा राष्ट्रपति को भेजा जाना चाहिए.

मिनी तानाशाह की तरह काम कर हैं एलजी - केजरीवाल सरकार

केजरीवाल सरकार का कहना है कि एलजी मिनी तानाशाह की तरह काम कर रहे हैं, ऐसा होना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है. जानबूझकर पूरे कार्यक्रम को खराब करने के बाद उन्हें इस मामले में उच्च नैतिक आधार अपनाने का कोई अधिकार नहीं है. उनका एकमात्र उद्देश्य सरकार के सभी अच्छे कामों को किसी भी तरह से रोकना है.

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