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कच्ची कॉलोनियों में दिल्ली सरकार के फरेब का पक्का खेल

कांग्रेस सरकार ने दिल्ली के उस सबसे बड़े वोट बैंक पर नजर गड़ा रखी है, जिसे सालों से रेगुलराइजेशन के नाम पर रिझाया जा रहा है. लेकिन इस खुलासे के बाद डर लग रहा है कहीं कॉलोनी पक्की होने की उम्मीद लगाए बैठे लाखों दिल्ली वालों के हाथ खाली तो नहीं रह जाएंगे.

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चुनाव की धमक अब दिल्ली में सुनाई देने लगी है. कांग्रेस सरकार ने दिल्ली के उस सबसे बड़े वोट बैंक पर नज़र गड़ा रखी है, जिसे पिछले पांच सालों से रेगुलराइजेशन के झुनझुने की आवाज सुना कर ही रिझाया जा रहा है. लेकिन हम जो खुलासा करने जा रहे हैं उसे देख कर यही डर लगता है कहीं एक बार फिर कॉलोनी पक्की होने की उम्मीद लगाए बैठे लाखों दिल्ली वालों के हाथ खाली तो नहीं रह जाएंगे.

दिल्ली आजतक के हाथ सीएजी के ऑडिट मेमो लगी है. इसमें कई चौंकाने वाले खुलासे हैं. विकास की रफ्तार में कहीं पीछे छूट चुकी कॉलोनियों की ऊंघती गलियों से ही दिल्ली के सिंहासन का रास्ता जाता है. सरकार को ये बात अच्छी तरह मालूम है कि अगर इस वोट बैंक को पक्का कर लिया तो चुनावों में बाजी मार ली. इसलिए पिछले चुनावों से ठीक पहले इन कॉलोनियों के आरडब्ल्यूए नुमाइंदों को यूपीए अध्यक्षा सोनिया गांधी के हाथों प्रोविजनल सर्टिफिकेट बंटवाए गए. मगर तबसे लेकर अबतक सरकार ने जो कुछ किया उन्हीं कागजातों के दम पर अब सीएजी ने नियमित करने की पूरी प्रक्रिया पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं. कॉलोनियों को नियमित करने में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवेहलना से लेकर बिना किसी मान्यता वाले प्रोविजनल सर्टिफिकेट के नाम पर सवाल उठाया गया है. जब इस रिपोर्ट की एक्सक्लूसिव जानकारी दिल्ली आजतक को मिली तो हमने इस मसले से जुड़े मंत्री से भी पूरे मामले की तस्दीक कर ली.

अब मंत्री चाहे इसे जितना हल्का मानें लेकिन दिल्ली आजतक को मिली जानकारी के मुताबिक  सीएजी ने दस बिंदुओं पर सरकार के दावों की बखिया उधेड़ी है. एक एक कर हम बताते हैं वो तमाम पहलू जिसपर सीएजी ने सरकार को घेरा है.

मामला नंबर एक- सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना की
मामला नंबर दो- प्रोविजनल सर्टिफिकेट के नाम पर फिजूलखर्ची हुई,
मामला नंबर-3- सर्टिफिकेट देने के साल भर के भीतर रेगुलराइजेशन पूरा नहीं हुआ
मामला नंबर 4- राजस्व विभाग के वेरीफिकेशन के बिना कॉलोनियों की बाउंड्री तय की गई
मामला नंबर 5- बाउंड्री तय करने में गलतियां हुईं
मामला नंबर 6- बाउंड्री तय करने में धांधली की गई
मामला नंबर 7-  ले आउट प्लान बनाने में एमसीडी ने देरी की
मामला नंबर 8- रेगुलराइजेशन के लिए अलग-अलग विभागों से अनुमति नहीं ली गई
मामला नंबर 9- आरडब्ल्यूए के आवेदनों का रिकॉर्ड नहीं रखा गया
मामला नंबर 10- आरडब्ल्यूए के आवेदनों की जांच नहीं हुई. यानी अगर इस मामले की तह में भी नहीं जाएं तो सिर्फ और सिर्फ इन बिंदुओं में ही सरकार की कलई खुल रही है. विपक्ष भी इसपर सरकार को घेर रहा है.

सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में ये भी लिखा है कि सरकार से उसने जितनी फाइलें मांगी वो सभी मुहैया नहीं कराई गईं. यहां तक कि इन कॉलोनियों में अब तक कितना पैसा लगा है इसकी जानकारी देने से भी सरकार बच रही है.

कच्ची कॉलोनियों में फरेब का ये पक्का खेल यहीं खत्म नहीं होता. सीएजी ने सरकारी काम में और भी गड़बड़ियों का जिक्र किया है. कहीं कॉलोनी को नियमित करने के लिए आबादी बढ़ा दी गई तो कहीं खाली जमीन को भी कॉलोनी के नक्शे में शामिल कर लिया गया.

सीएजी की रिपोर्ट नौ पेज़ की है जिसमें कई खामियों को विस्तार से बताया गया है. सीएजी ने कहा है कि विभाग ने हज़ारों करोड़ तो कॉलोनियों को नियमित करने के नाम पर लगा दिए मगर उसका हिसाब नहीं दे रहे हैं. सीएजी ने तो कई कॉलनियों का उदाहरण भी अपनी रिपोर्ट में देकर कहा है कि कैसे सरकारी फाइलों में एक ही कॉलनी के बारे में आबादी से लेकर नक्शे के मामले में दो आंकड़े दिए गए हैं.

कच्ची कॉलोनियों के नाम पर दिल्ली में कैसा खेल चल रहा है ये जानकर आप चौंक जाएंगे. क्या एक ही कॉलोनी में एक ही तारीख को आबादी के दो अलग-अलग आंकड़े हो सकते हैं, नहीं ना... लेकिन दिल्ली की अनधिकृत कॉलनियों में एक नहीं बल्कि कई मामलों में ऐसा हुआ है.

सीएजी की रिपोर्ट में तो एक उदाहरण ऐसा है जहां पर बसावट 25 फीसदी से भी कम थी लेकिन सरकार की फाइलों में उसे नियमित करने के लिए 81 फीसदी कर दिया गया. इसी तरह ज़मीन की हेराफेरी का मामला भी सरकारी फाइलों में उजागर हुआ है. सरकार ने जो 28 फाइलें दी हैं उनमें 16 फाइलों में तो नक्शे सीएजी को मिले ही नही. 12 कॉलोनियों के नक्शे ऐसे मिले जहां खाली ज़मीनों को भी  कॉलोनी में मिला लिया गया. ऐसी गड़बड़ियों के बावजूद सरकार अब भी कॉलोनियों में काम और आगे बढ़ाने में लगी है.

रेगुलराइजेशन के नियमों के हिसाब से जिन कॉलोनियों में सरकार की ज़मीन आती है वहां उन विभागों से मंजूरी लेना जरूरी है. लेकिन सीएजी रिपोर्ट में साफ बताया गया है कि डीडीए, जल बोर्ड, रेलवे जैसी एजेंसियों की ज़मीन को भी सरकार ने बिना पूछे नियमित कर दिया.  इसके अलावा रिपोर्ट में सरकार के अंदर की बगावत का भी जिक्र है जिसमें कहा गया है कि अलग-अलग ज़िलों को डिप्टी कमिश्नर ने भी साफ तौर पर कॉलनियों को  में हुई ग़लतियों को सुधारने से मना कर दिया. सिर्फ सरकार ही नहीं बल्कि लेट-लतीफी के लिए एमसीडी की भी इस रिपोर्ट में खिंचाई की गई है.

सीएजी की ये रिपोर्ट उस समय सामने आई है जब चुनाव सिर पर हैं. ऐसे में हंगामा तो मचेगा और ऐसे में कॉलोनियों के कंफ्यूजन पर सरकार को जवाब देना भारी पड़ सकता है. ख़ास तौर पर जब ये सवाल सीएजी ने उठाए हैं.

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