दिल्ली हाई कोर्ट ने एक मामले में पाया कि अनधिकृत निर्माण का आरोप लगाने वाला एक याचिकाकर्ता अपना केस वापस लेने के लिए दूसरे पक्ष से पैसे लेने को तैयार था. उसे अवमानना की सजा के रूप में कोर्ट के उठने तक अदालत में ही बैठे रहने की सजा सुनाई गई.
जस्टिस प्रथिबा एम सिंह की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता ने 'अपने निजी लाभ के लिए न्यायिक प्रणाली का फायदा उठाने के एक प्रयास' के रूप में अदालत का रुख किया. याचिकाकर्ता से दिल्ली हाई कोर्ट लीगल सर्विस कमिटी के खाते में 1 लाख रुपये जमा करने को भी कहा गया.
उम्र और स्वास्थ्य को देखते हुए दी 'नरम सजा'
कोर्ट ने कहा कि वह अवमाननाकर्ता की मेडिकल कंडीशन और उम्र के कारण सजा पर 'नरम रुख' अपना रहा है, जिसने अपने आचरण के लिए माफी भी मांगी है. कोर्ट ने कहा कि अवमानना पर कानून अदालत के कामकाज का अनादर और उसमें बाधा डालने वाले कृत्यों के खिलाफ न्यायालय के अधिकार और गरिमा की रक्षा करता है. याचिकाकर्ता को अदालत की अवमानना अधिनियम (Contempt of Court Act) की धारा 12 के तहत दोषी ठहराया गया.
बेंच ने 5 जुलाई के अपने आदेश में कहा, 'अवमाननाकर्ता रिट याचिका को वापस लेने के लिए प्रतिवादियों से बातचीत करने और पैसे लेने के लिए तैयार था. इस कोर्ट की राय में यह पूरी तरह से अवमाननापूर्ण है. यह न्यायालय की प्रक्रिया की उपेक्षा और दुरुपयोग को दिखाता है, जिसे कोर्ट माफ नहीं कर सकता.'
1 लाख रुपये का जुर्माना
अदालत ने अपने आदेश में कहा, 'न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग करने वाले ऐसे कृत्यों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है और उसे सजा दिए बिना नहीं छोड़ा जा सकता. लिहाजा अवमाननाकर्ता को आज अदालत के उठने तक कोर्ट में बैठे रहने की सजा दी जाती है. इसके अलावा, उसे दिल्ली हाई कोर्ट लीगल सर्विस कमिटी को 1 लाख रुपये की राशि भी जमा करनी होगी.'
अवमाननाकर्ता ने बुराड़ी में कुछ भूमि भूखंडों पर अनधिकृत निर्माण के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए 2021 में एक याचिका दायर की थी. इसके बाद, कथित तौर पर अनधिकृत निर्माण करने वाले एक पक्ष ने दावा किया कि अवमाननाकर्ता ने रिट याचिका वापस लेने के लिए 50 लाख रुपये की मांग की.