दिल्ली के शाही ईदगाह पार्क में रानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा स्थापित करने के खिलाफ़ शाही ईदगाह प्रबंध समिति की अपील पर दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा फटकार लगाए जाने के दो दिन बाद, शुक्रवार को समिति ने अदालत को बताया कि उसने बिना शर्त माफ़ी के साथ हलफ़नामा दायर किया है. पिछली बार हाईकोर्ट ने समिति की ‘निंदनीय दलीलों’ के लिए उसे फटकार लगाई थी और कहा था कि समिति सांप्रदायिक राजनीति कर रही है.
इसके बाद समिति ने कहा था कि वह याचिका वापस ले रही है, लेकिन हाईकोर्ट ने पहले माफ़ी के साथ ही याचिका को खारिज करने वाले एकल न्यायाधीश के खिलाफ़ लगाए गए आरोपों सहित निंदनीय दलीलों को हटाने के लिए आवेदन भी मांगा था. आज हाईकोर्ट को बताया गया कि कल माफ़ी दायर की गई है, लेकिन रिकॉर्ड में नहीं है.
इसलिए मुख्य न्यायाधीश मनमोहन की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले की सुनवाई मंगलवार तक के लिए स्थगित कर दी, ताकि दस्तावेज रिकॉर्ड में लाए जा सकें. इससे पहले एकल पीठ ने याचिका खारिज कर दी थी, जिसे समिति ने फिर एक खंडपीठ के समक्ष चुनौती दी थी.
उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने पिछले दिनों ईदगाह समिति की याचिका को विभाजनकारी बताया और कहा कि वह सांप्रदायिक राजनीति कर रही है और इस प्रक्रिया में अदालत का उपयोग कर रही है. यह कहते हुए कि इतिहास को सांप्रदायिक आधार पर विभाजित नहीं किया जाना चाहिए, अदालत ने टिप्पणी की कि झांसी की रानी लक्ष्मी बाई सभी धार्मिक रेखाओं को पार करते हुए एक राष्ट्रीय नायक हैं.
न्यायालय ने समिति के खिलाफ फैसला देने वाले एकल न्यायाधीश के खिलाफ अपील में इस्तेमाल किए गए शब्दों पर भी आपत्ति जताई और निंदनीय दलीलों को 'न्यायाधीश के प्रति अनुचित' बताया. जब समिति के वकील ने कहा कि वे याचिका वापस ले रहे हैं, तो न्यायालय ने उनसे कहा कि वे सबसे पहले अपनी याचिका से वे पैराग्राफ हटा दें जहां निंदनीय दलीलें दी गई थीं और कल तक न्यायालय के समक्ष माफी भी मांगें.