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दिल्ली: सब्सिडी बंद करने की याचिका खारिज, याचिकाकर्ता पर 25 हजार का जुर्माना

दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि सब्सिडी देना किसी भी राज्य का पॉलिसी मैटर है. इसमें कोर्ट हस्तक्षेप नहीं कर सकता. कोई भी सरकार यह तय करने के लिए स्वतंत्र है कि वह राज्य में आम लोगों को किन चीजों पर सब्सिडी देना चाहती है.

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दिल्ली हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर लगाया 25 हजार रुपये का जुर्माना
दिल्ली हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर लगाया 25 हजार रुपये का जुर्माना

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  • बिजली-पानी पर दी जाने वाली सब्सिडी पर उठाया सवाल
  • दिल्ली हाई कोर्ट ने याचिका को सुनवाई योग्य नहीं माना

दिल्ली सरकार की बिजली-पानी पर दी जाने वाली सब्सिडी पर सवाल उठाने वाली याचिका को हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया है. दिल्ली हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर 25 हजार का जुर्माना भी लगाया है.

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि सब्सिडी देना किसी भी राज्य का पॉलिसी मैटर है. इसमें कोर्ट हस्तक्षेप नहीं कर सकता. कोई भी सरकार यह तय करने के लिए स्वतंत्र है कि वह राज्य में आम लोगों को किन चीजों पर सब्सिडी देना चाहती है. कोर्ट ने कहा कि हमें इस याचिका पर सुनवाई की कोई जरूरत नहीं दिखती. कोर्ट ने माना कि यह याचिका मीडिया में सुर्खियां बंटोरने के इरादे से लगाई गई है, और इस तरह की याचिकाएं आगे न लगाई जाएं इसके लिए याचिकाकर्ता पर 25 हजार का जुर्माना भी लगाया जा रहा है.

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याचिकाकर्ता की दलील

दरअसल, हाई कोर्ट में शैलेंद्र कुमार सिंह ने याचिका लगाई थी. याचिका में कहा गया था कि दिल्ली सरकार बिजली-पानी पर जो सब्सिडी दे रही है, उस रकम से दिल्ली में बड़े विकास कार्य मसलन शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर किया जा सकता है. याचिकाकर्ता का दावा था कि उसने आरटीआई से मिली जानकारी के आधार पर पाया है कि दिल्ली सरकार द्वारा दी जा रही सब्सिडी सरकार के राज्य पर कुल खर्चे का 10 फीसदी के आसपास है. याचिकाकर्ता की तरफ से कहा गया था कि अकेले बिजली पर ही 2500 करोड़ की सब्सिडी साल में दी जा रही है.

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याचिकाकर्ता ने इस पर सवाल उठाया था कि सब्सिडी लेना किसी भी व्यक्ति का संवैधानिक अधिकार नहीं है बल्कि सब्सिडी राज्य की तरफ से जब दी जाती है जब किसी व्यक्ति को इसकी जरूरत हो, या फिर उसकी आर्थिक स्थिति खराब हो. इसके अलावा सब्सिडी जरूरतमंदों को नहीं दी जा रही है, बल्कि हर घर में दी जा रही है जहां पर सब्सिडी दिए जाने की जरूरत भी नहीं है. याचिकाकर्ता ने अपनी अर्जी में कहा कि पिछले 3 साल के दौरान लगातार सरकार का सब्सिडी दिए जाने वाली पैसा बढ़ता जा रहा है.

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याचिका को सुनवाई योग्य नहीं माना

याचिकाकर्ता का कहना था कि दो कमरों के घर में रहने वाले व्यक्ति एक कमरा खुद का दिखाकर और दूसरे को फर्जी तरीके से किराये पर दिखाकर बिजली पर सब्सिडी ले रहे हैं. राज्य सरकार सब्सिडी पब्लिक मनी से ही देती है. ऐसे में सीधे-सीधे टैक्स देने वाले लोगों से प्राप्त होने वाले पैसे का दुरुपयोग है. इसीलिए याचिकाकर्ता ने मांग की थी कि कोर्ट राज्य सरकार को निर्देश दे कि इस सब्सिडी को बंद किया जाए. लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट ने इस याचिका को सुनवाई योग्य न मानते हुए खारिज कर दिया और कहा कि इस याचिका में कोई मेरिट नहीं है.

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