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नर्सरी एडमिशन को लेकर नोटिफिकेशन पर स्टे हटाने से हाईकोर्ट का इनकार

नर्सरी दाखिले की गाइडलांइस को लेकर हाईकोर्ट के हालिया आदेश को दिल्ली सरकार ने हाईकोर्ट की डबल बेंच में चुनौती दी थी, जिस पर सुनवाई में सरकार की दलील सुनने के बाद इस आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया.

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हाईकोर्ट के आदेश से प्राइवेट नर्सरी स्कूल के लिए बड़ी राहत
हाईकोर्ट के आदेश से प्राइवेट नर्सरी स्कूल के लिए बड़ी राहत

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दिल्ली हाईकोर्ट ने नर्सरी एडमिशन को लेकर नोटिफिकेशन पर लगा स्टे तुरंत हटाने की दिल्ली सरकार की अपील खारिज कर दिया है.

नर्सरी दाखिले की गाइडलांइस को लेकर हाईकोर्ट के हालिया आदेश को दिल्ली सरकार ने हाईकोर्ट की डबल बेंच में चुनौती दी थी, जिस पर सुनवाई में सरकार की दलील सुनने के बाद इस आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया.

हाईकोर्ट ने कहा कि सुनवाई पूरी होने के बाद कोर्ट का जो भी आदेश आएगा, वही तय करेगा कि दिल्ली सरकार के नोटिफिकेशन पर लगा स्टे हटेगा या नहीं. दरअसल नर्सरी एडमिशन को लेकर दिल्ली सरकार के 7 जनवरी के नोटिफिकेशन पर हाईकोर्ट ने तीन दिन पहले 14 फरवरी को स्टे लगा दिया था. हाईकोर्ट की डबल बेंच अब मामले की अगली सुनवाई 22 फरवरी को करेगी.

हाईकोर्ट ने 14 फरवरी के अपने आदेश में दिल्ली सरकार के नेबरहुड क्राइटेरिया को भी रद्द कर दिया था. साथ ही मैनेजमेंट कोटे को भी बरकरार रखा था. प्राइवेट स्कूलों के लिए हाई कोर्ट से मिली ये बड़ी राहत है.

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हाइकोर्ट ने कहा कि सरकार का नोटिफिकेशन पैरेंट्स से उनके अपनी पसंद के स्कूल में बच्चों का दाखिला कराने का अधिकार छीन रहा है, लिहाजा इसे रद्द किया जाता है. हाई कोर्ट ने कहा कि क्वालिटी एजुकेशन के नाम पर सरकार प्राइवेट स्कूलों के साथ मनमानी नहीं कर सकती है.

दिल्ली सरकार के इस नोटिफिकेशन से दिल्ली के 298 निजी स्कूल प्रभावित हो रहे थे. स्कूलों की एक्शन कमेटी का कहना था कि उनके हितों को नुकसान नहीं होना चाहिए और सरकार को छात्रों के बीच कोई भेदभाव नहीं करना चाहिए. बच्चे के माता-पिता के पास ये अधिकार होना चाहिए कि वे अपने बच्चे को किस स्कूल में पढ़ाए.

उनका कहना था कि उन्हें डीडीए की जमीन आवंटित करते समय भी नेबरहुड क्राइटेरिया तय नहीं किया गया था. उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने केंद्र और दिल्ली सरकार से कहा था कि वे स्कूलों का आवंटनपत्र दिखाएं, जिसके आधार पर नेबरहुड क्राइटेरिया तय किया गया है. स्कूलों का कहना था कि सरकार का नोटिफिकेशन कानून के मुताबिक नहीं है और ये मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं.

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