दिल्ली हाईकोर्ट ने सूचना के अधिकार अधिनियम (आरटीआई) के तहत मांगी जाने वाली जानकारियों को लेकर एक टिप्पणी की है. दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि आरटीआई के माध्यम से आवेदन करने पर आवेदक को जानकारी मांगने का उद्देश्य बताना जरूरी है. ऐसा करने से आवेदक को यह जानकारी क्यों चाहिए, यह भी साफ हो पाएगा और उन लोगों के साथ अन्याय को रोका जा सकेगा जिनकी जानकारी मांगी जा रही है.
दिल्ली हाईकोर्ट ने साथ ही आरटीआई के माध्यम से जानकारी नहीं मिलने पर जिस व्यक्ति ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई, उसने अपने बारे में पूरी जानकारी नहीं दी थी. हाईकोर्ट ने इसके लिए याचिकाकर्ता पर भी 25000 रुपये का जुर्माना लगाया है. दिल्ली हाईकोर्ट की यह टिप्पणी उस याचिका पर आई है, जिसमें आरटीआई के तहत सीआईसी से राष्ट्रपति सचिवालय में नियुक्तियों के संबंध में कुछ जानकारियां मांगी गई थी.
सीआईसी ने इसमें से कुछ जानकारियां तो आवेदक को दीं लेकिन कुछ व्यक्तिगत जानकारियां जो नियुक्त हुए लोगों के संबंध में मांगी गई थीं, उन्हें देने से इनकार कर दिया. इसके बाद आरटीआई आवेदक ने दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया और कहा कि सीआईसी ने बिना कोई आधार दिए उसको जानकारी देने से इनकार कर दिया है. इस मामले की सुनवाई के दौरान पता चला कि आरटीआई के माध्यम से जिस व्यक्ति ने जानकारियां मांगी थी, उसकी अपनी बेटी ने भी राष्ट्रपति सचिवालय में मल्टी टास्किंग स्टाफ के तौर पर काम करने के लिए आवेदन किया था. उसका चयन नहीं हुआ.
जानकारी मांगने वाले उसके आवेदक पिता ने भी राष्ट्रपति सचिवालय में 2012 से 17 के बीच में काम किया था. आरटीआई के माध्यम से सीआईसी से जानकारी मांगी गई थी कि मल्टी टास्किंग स्टाफ के तौर पर जिन लोगों का चयन हुआ है, उनका नाम उनके पिता का नाम उनके घर का पता और संपर्क नंबर दिया जाए. इसके अलावा जिन लोगों ने इन पदों के लिए अप्लाई किया था, उनके नाम भी मांगे गए थे. सीआईसी ने अप्लाई करने वाले लोगों के बारे में तो जानकारी आरटीआई के माध्यम से लगाई गई अर्जी में दे दी लेकिन जिन लोगों का चयन हुआ था उनसे जुड़ी व्यक्तिगत जानकारियां देने से इनकार कर दिया.
सीआईसी ने इस मामले में अपना पक्ष कोर्ट में रखते हुए कहा कि आरटीआई लगाने वाले आवेदक ने चयनित लोगों की जो व्यक्तिगत जानकारी मांगी थीं, उसमें यह नहीं बताया कि उसकी अपनी बेटी ने भी राष्ट्रपति सचिवालय में काम करने के लिए अप्लाई किया था. आरटीआई के माध्यम से जो जानकारी मांगी गई थी, वह व्यक्तिगत हितों से जुड़ी हुई थी. कोर्ट के सामने जब याचिकाकर्ता की आरटीआई के माध्यम से जानकारी मांगने की नियत का खुलासा हुआ तो न सिर्फ हाईकोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया, बल्कि उस पर जानकारी छिपाने के लिए 25000 रुपये का जुर्माना भी लगा दिया.
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि आरटीआई की धारा 8 (1)(जे) के तहत किसी भी व्यक्ति की निजी जानकारियों को प्रोटेक्ट करना जरूरी है. क्योंकि अगर इस तरह की जानकारियां आरटीआई के माध्यम से दी जाने लगीं तो यह उस व्यक्ति की गोपनीयता पर सीधे तौर पर हमला होगा.