दिल्ली के जामा मस्जिद के शाही इमाम मौलाना सैयद अहमद बुखारी को दिल्ली हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है. हाईकोर्ट ने दस्तारबंदी पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है. हालांकि कोर्ट ने यह भी कहा कि दस्तारबंदी को कानूनी वैधता नहीं है.
कोर्ट ने कहा कि जो कुछ इमाम करने जा रहे हैं उसकी कोई कानूनी मान्यता नहीं है. यही दलील याचिकाकर्ता और सरकार ने दी थी. जामा मस्जिद वक्फ बोर्ड की प्रॉपर्टी है और इसका उत्तराधिकारी इमाम नहीं तय कर सकते, यह वक्फ बोर्ड की जिम्मेदारी है.
इस मामले में आगे भी सुनवाई जारी रहेगी. कोर्ट ने सभी पार्टियों को नोटिस भेजकर हलफनामा दायर कर अपना-अपना पक्ष रखने को कहा है. मामले की अगली सुनवाई 28 जनवरी को होगी. इसके बाद ही 22 नवंबर को होने वाली दस्तारबंदी की कानूनी मान्यता के बारे में कुछ साफ हो पाएगा. .
आपको बता दें कि हाईकोर्ट में जामा मस्जिद में शाही इमाम के बेटे की दस्तारबंदी के खिलाफ याचिका दाखिल की गई थी. केंद्र सरकार इस दस्तारबंदी को गैरकानूनी बता चुकी है . ये विवाद मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर के पोते की याचिका दायर करने के बाद शुरू हुआ है. उन्होंने अपनी याचिका दायर कर विरोध जताते हुए कहा है कि मक्का मदीना में भी ये रिवाज नहीं है.
क्या मामला है दस्तारबंदी का?
भावी इमाम बनाने के कार्यक्रम को दस्तारबंदी कहते हैं. मौजूदा शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी अपने 19 साल के बेटे सैय्यद शाबान बुखारी की दस्तारबंदी करना चाहते हैं. यह दस्तारबंदी दिल्ली के जामा मस्जिद में 22 नवंबर को होगी. 15 नवंबर को शाही इमाम की पदवी को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी गई. इसी याचिका में दस्तारबंदी के कार्यक्रम पर रोक लगाने की मांग की गई. याचिका पर सुनवाई के दौरान 19 नवंबर को केंद्र ने जामा मस्जिद को वक्फ बोर्ड की संपत्ति बताया. वहीं ASI ने जामा मस्जिद को ऐतिहासिक धरोहर बताया.