जहां सरकार और अथॉरिटी अक्सर सब कुछ देखते हुए भी आंखे बंद कर लेती हैं. वही दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण मामले मे स्वत: संज्ञान लेते हुए दिल्ली सरकार, डीडीए, एमसीडी, सेंट्रल ग्राउंड वाटर अथॉरिटी, डीपीसीसी और सीपीसीबी को नोटिस कर रिपोर्ट मांगी है. दरअसल, दिल्ली की एक कॉलोनी का नाम ही कैंसर कॉलोनी पड़ गया है. इस कॉलोनी में काफी लोग कैंसर की बीमारी से जूझ रहे हैं. ये कॉलोनी नार्थ ईस्ट दिल्ली के मुस्तफाबाद इलाके में पड़ती है और इसका असल नाम शिव विहार कॉलोनी है. इस कॉलोनी में होने वाली बीमारियों के पीचे यहां अवैध रूप से चलने वाले ढेरों डाई और इंडस्ट्रियल यूनिट हैं.
यहां पहने जानी वाली पर जीन्स को डाई करने का काम किया जाता है. इस काम मे जीन्स के डाई होने के बाद निकलने वाले नीले पानी की इलाके मे यूं ही बहा दिया जाता है. इस पानी में स्वास्थ्य के लिहाज से घातक केमिकल्स होते हैं. नीला पानी यूं ही नालों या कच्ची सड़को पर बहता रहता है. वही पानी ग्राउंट वाटर को जहरीला बना रहा है. यहां लोग बोरवेल से निकलने वाले पानी को पीने के लिए इस्तेमाल करते हैं. इसका असर सीधे-सीधे लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है.
हाइकोर्ट ने मीडिया के मार्फत आने वाली कुछ रिपोर्ट्स को आधार बनाते हुए इस मामले मे स्वत: संज्ञान लिया है. इतना ही नहीं कोर्ट ने दिल्ली सरकार को इस मामले पर एक इंटरिम रिपोर्ट कार्ड सौंपने का आदेश दिया है. कोर्ट ने इस इलाके में अवैध ढंग से चलने वाली इंडस्ट्रियल यूनिट पर सवाल उठाए हैं और पूछा है कि आखिर इन्हें अब तक रोका क्यों नहीं गया. कोर्ट ने इस मामले में ग्राउंड वाटर अथॉरिटी से पूछा है कि आखिर शिव विहार का ग्राउंड वाटर इतना प्रदूषित क्यों है?
यह खुद में ही हैरान करने वाला मामला है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट एम.सी.मेहता के मामले में साल 2005 में ही एक आदेश के हवाले से कहा था कि आवासीय इलाकों में इस तरह की इंडस्ट्रियल यूनिट नही चल सकतीं. यह पूरी तरह से प्रतिबन्धित है. अब सरकार और दूसरे विभागों को यह बताना होगा खि आखिर ये सारी अनियमितता क्यों है? क्या लोगों की जान की कोई कीमत नहीं है? क्या इसमें सरकार और दूसरी संस्थाएं सहयोगी हैं? कोर्ट इस मामले में अगली सुनवाई 25 मई को करेगी.