दिल्ली के गोकुलपुर गांव के लोग इन दिनों दहशत के साए में जीने को मजबूर हैं. इनके डर का कारण इनके मकानों की जर्जर अवस्था है. हालात इस कदर खराब हैं कि किसी भी वक़्त घर की छत गिर सकती है और मकान धस सकते हैं और सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात ये है कि घरों की ऐसी दुर्दशा के लिए प्राकृतिक आपदा नहीं बल्कि दिल्ली जल बोर्ड ज़िम्मेदार है.
DJB की लापरवाही
गोकुलपुर गांव के ठीक सामने से दिल्ली जल बोर्ड को एक सीवेज लाइन बिछानी थी. इलाके के लोग खुश थे कि अब उनको जाम पड़ी नालियों से निजात मिल जायेगी. लेकिन इस गांव के लोगों की नींद तब उड़ गई जब उनको ये पता चला कि जिस सीवेज लाइन का वह बरसों से इंतज़ार कर रहे थे वो दरअसल उनके घरों के नीचे से निकाली जा रही है और दिल्ली जल बोर्ड ने एक निजी कंपनी को इसका ठेका दे रखा है.
क्यों जर्जर हो रहे हैं इलाके के मकान
सीवेज की पाइप लाइन बिछाने के लिए इस इलाके के घरों के करीब 30 से 40 फिट नीचे गहरी सुरंग खोदी जा रही है. जिसके चलते घरों की नींव पूरी तरह धस चुकी है. सुरंग खोदने वाली मशीन ने भी घरों की नींव को और कमजोर बना दिया. मशीन के चलते ही घर ऐसे हिलने लगते है जैसे भयानक भूकंप आया हो, इससे दीवारों और छतों पर बड़ी-बड़ी दरारें पड़ गई हैं.
खौफ के साये में जीते 50 परिवार
10 दिनों के भीतर ही हालात इस कदर बिगड़ गए हैं इस इलाके के करीब 50 घरों की दीवारें पूरी तरह जर्जर हो चुकी हैं. छतों को जैक के सहारे किसी तरह गिरने से रोका जा रहा है. हर गुजरते लम्हे के साथ इनका डर बढ़ता जा रहा है और बेबसी ऐसी कि गुहार लेकर जाएं तो किसके पास. 15 वर्षों से यहां रह रहे मुकेश का कहना है कि किसी तरह पैसे जोड़कर पिताजी ने ये मकान बनवाया, अब यहां हम दो भाइयों का परिवार रहता है. घर के बच्चे हमसे पूछते है कि रात को सोते वक्त अगर छत गिर गई तो क्या होगा.
पुराने घरों के साथ-साथ नए डिज़ाइन में बने मकानों की भी यही दुर्दशा है. एक अन्य स्थानीय निवासी का कहना है कि 5 साल पहले नया मकान बना था अब इसकी हालत खराब हो गई है. विधायक कहते हैं मरो या जियो कुछ भी करो काम नहीं रुकेगा. साथ ही ठेकेदार अलग से धमकी दे रहा है. अब हमें अपने घर की नहीं अपनी जान की चिंता ज्यादा है. इस इलाके में रहने वाले ज्यादातर परिवार तीसरी पीढ़ी का हिस्सा हैं. अब इनको दिन-रात बस इसी बात की चिंता खाई जा रही है कि सिर से छत न कहीं छीन जाए. इनकी मांग है या तो इनके घर पूरी तरह बनवाये जाएं या फिर इनको उचित मुआवजा दिया जाए. लेकिन जिस तरह से यहां रह रहे करीब 250 लोगों को सरकार और जल बोर्ड नज़रअंदाज़ कर रहा है लगता है किसी बड़े हादसे का इंतज़ार किया जा रहा है.