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दिल्ली के इन इलाकों में सूख गया नल, टैंकर के इंतजार में बीत रहा दिन

देश की राजधानी दिल्ली में अभी पूरी तरह से गर्मियों की शुरुआत भी नहीं हुई है लेकिन पानी की किल्लत शुरू हो चुकी है. दिल्ली के कई इलाकों में पानी की भारी किल्लत ने लोगों को अभी से ही परेशान कर रखा है.

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प्रतिकात्मक फोटो
प्रतिकात्मक फोटो

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देश की राजधानी दिल्ली में अभी पूरी तरह से गर्मियों की शुरुआत भी नहीं हुई है, लेकिन पानी की किल्लत शुरू हो चुकी है. दिल्ली के कई इलाकों में पानी की भारी किल्लत ने लोगों को अभी से ही परेशान कर रखा है. संगम विहार, आनंद पर्बत, बलजीत नगर, लाडो सराय जैसे इलाकों में न तो सप्लाई का पानी पहुंच रहा है और न ही पानी का टैंकर. हालात ये है कि लोगों को 15-15 दिन के लिए पानी को स्टोर करना पड़ता है. बता दें कि पानी को ज्यादा दिन स्टोर करने की वजह से इसमें कई बार कीड़ें भी पड़ जाते हैं.

मुख्यमंत्री से मिला धोखा

आनंद परबत की ज्यादातर गलियों का हाल एक सा ही है. यहां लोगों का गुस्सा सीधे तौर पर मुख्यमंत्री की तरफ केंद्रित है. इलाके के एक समाज सेवी दिलीप गुप्ता का कहना है, 'मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल  ने वादा किया था कि 6 महीने के अंदर हमें पानी देंगे, पर अब तक हम प्यासे हैं, ना वो सुनते हैं और ना ही हमारे विधायक जी, हमें बेवकूफ बनाया मुख्यमंत्री ने, पाइप लाइन है पर पानी नहीं है, ऊपर से टैंकर माफिया, सरकारी बोरिंग पर दबंगों का कब्जा और गंदगी ने जीना मुश्किल कर रखा है.'

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टैंकर आते ही पड़ोसी बन जाते हैं दुश्मन

समाज किसी भी जाति-समुदाय या जगह का हो, वो आपसी भाईचारे और सौहार्द का संदेश देता है. दिल्ली के बलजीत नगर के लोग भी आम तौर पर अपने पड़ोसियों के साथ मिलजुल कर रहते हैं. दुख-सुख में साथ होते हैं, यहां तक कि एक साथ त्योहार भी मनाते हैं और मातम में भी एक दूसरे को सहारा देने का काम करते हैं. लेकिन इस मुहल्ले में जैसे ही दिल्ली जल बोर्ड का पानी टैंकर पहुंचता है यहां की हवा बदल जाती है. भाई चारा चो हवा हो जाता है वहीं नौबत पड़ोसियों में मारपीट की आ जाती है.

इस क्षेत्र की एक निवासी गीता देवी का कहना है, 'पानी का टैंकर आते ही कोई किसी का सगा नहीं होता, सब अपना-अपना पानी भरने में लग जाते हैं, वो पड़ोसी जो हमेशा साथ होता है, वो दुश्मन बन जाता है, खूब लड़ाइयां होती हैं और इसकी जिम्मेदार सरकार है, ऐसी कौन सी समस्या पानी देने में है समझ ही नहीं आता, जब चुनाव आते हैं तो 15 से 20 दिन लगातर पानी आता है, जैसे ही चुनाव खत्म पानी भी बंद, सब चोर हैं, जनता की कोई नहीं सुनता है.'

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पानी भरने के चक्कर मे छोड़ी परीक्षा

इन इलाकों में ज्यादातर वो परिवार रहते हैं, जो दूर दराज के गांव से बेहतर जिंदगी का सपना लेकर आए हैं. लेकिन इनको देख कर लगता है कि यहां आकर इनकी जिंदगी केवल पानी के इर्द-गिर्द घूमती है. यहां नौंवी कक्षा में पड़ने वाली कुसुम ने बताया, 'मेरे पापा हमें बिहार से यहां लेकर आए है कि हमें अच्छी शिक्षा मिलेगी, वो गांव से हैं, पर उनकी सोच ऊंची है, वो हमें पढ़ाना चाहते हैं, पर यहां तो मैंने अपनी नौंवी की परीक्षा दो बार पानी के चक्कर में छोड़ दी है, पहले तो 15-15 दिन पानी नहीं आता, और जब आता है तो इतनी मारा-मारी होती है कि पूछो मत, मां अकेली पड़ जाती है, पानी पर लड़ाई नहीं लड़ पाती है. इसलिए मुझे परीक्षा छोड़ कर पानी भरने के लिए रुकना पड़ता है. हम कैसे जी रहे हैं, ये हम ही जानते हैं.'

पांचवी क्लास में पड़ने वाले शुभम भी कई बार स्कूल से छुट्टी कर पानी भरने में मां की मदद करता है. शुभम के लिए तो यह स्कूल ना जाने का बहाना है पर उसकी मां की तकलीफ बढ़ जाती है. उसकी मां ने कहा, 'इससे अच्छे तो हम गांव में ही थे, यहां जब से आई हूं पति काम पर रहते हैं और मैं दिनभर पानी का डब्बा भरने के लिए परेशान रहती हूं. यहां पर पानी संभाल कर खर्च करने और पानी पर लड़ाई करने में ही रह जाती हूं.'

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