राजधानी दिल्ली में पानी से हुई मौतों के बाद जल बोर्ड पर लगातार सवाल उठ रहे हैं. पानी की गुणवत्ता शक के घेरे में है तो दूसरी तरफ दिल्ली जल बोर्ड में स्टाफ की कमी का खामियाज़ा दिल्ली की जनता भुगत रही है.
एक आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक दिल्ली जल बोर्ड स्टाफ की भयंकर कमी से जूझ रहा है. दिल्ली में चाहे जिस पार्टी की सरकार सत्ता पर काबिज रही हो, हर कोई दिल्लीवालों की प्यास बुझाने का दावा करती है.
सरकार के इस दावे के बावजूद दिल्ली में हर साल पानी को लेकर 3 से 4 लोगों की मौत होती है. इन मौतों को एक बड़ी वजह जल बोर्ड में कर्मचारियों की कमी भी है. जिसको सरकार ने पिछले कई सालों से नजरअंदाज किया हुआ है. एक आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक जल बोर्ड में चीफ इंजीनियर से लेकर जूनियर इंजीनियर के तकरीबन 600 से ज्यादा पद खाली पड़े हैं, जबकि जल बोर्ड का हर साल 10 किलोमीटर का दायरा बढ़ जाता है.
स्वीकृत पद भरे हुए पद खाली पद
ड्राफ्ट मेन 3 77 25 52
ड्राफ्ट मेन 2 79 57 22
ड्राफ्ट मेन 1 49 30 19
जेई सिविल 481 241 240
एई सिविल 332 255 77
एई इ एड एम 122 74 48
आरटीआई एक्टिविस्ट जीशान हैदर के मुताबिक सरकार भले ही लाख दावे करे कि जल बोर्ड मुनाफे में चल रहा है पर जल बोर्ड खुद इस बात की तस्दीक़ कर चुका है कि वो सिर्फ 75 फीसदी बिल ही वसूल पाते हैं. ये हाल तब है जब दिल्ली के मुख्यमंत्री जल बोर्ड के अध्यक्ष हैं ओर खाली पड़े पदों को भरने की जिम्मेदारी भी इन्हीं के पास है.
इसके लिए ना तो केंद्र सरकार से पूछना है और ना ही एलजी से परमिशन लेनी है. विभागों में वर्षों से खाली पड़े पदों को ना भरने की वजह चुनाव भी है. दरसअल चुनावों के वक़्त राजनीतिक दल नौकरियों को मुद्दा बना कर वोट बटोरते हैं.