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दिल्ली: आर्थिक तंगी से जूझ रहे जम्मू से आए मजदूर, लोगों से मांग रहे मदद

लॉकडाउन के चलते दूसरे राज्यों में फंसे प्रवासी मजदूर अब भी पैदल चलने को मजबूर हैं. आर्थिक तंगी से जूझ रहे इन मजदूरों को जरूरी सुविधाओं के लिए दूसरों से मदद मांगनी पड़ रही है. जम्मू से पैदल दिल्ली तक आए मजदूर अब उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर तक का सफर पैदल तय करेंगे.

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प्रवासी मजदूरोें के साथ आज तक की खास बातचीत
प्रवासी मजदूरोें के साथ आज तक की खास बातचीत

जम्मू और कश्मीर से दिल्ली आए मजदूरों को अब पैदल यात्रा करनी पड़ रही है. आग उबलती गर्मी में भूख से लाचार मजदूरों को पैदल ही निकलना पड़ रहा है, क्योंकि पैसे खत्म हो गए हैं. आज तक के साथ मजदूरों ने अपनी आपबीती साझा की.

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रविवार को एक मजदूर ने आपबीती बताते हुए कहा कि श्रीनगर से मजदूर 16 मई को निकले और बनिहाल पहुंचे. वहां 4 दिनों तक मजदूरों को इंतजार करना पड़ा. फिर जम्मू में 1800 का टिकट लिया. अब सारे पैसे खत्म हो गए हैं. जब दिल्ली पहुंचे तो मजदूरों को बताया गया कि योगी सरकार मजदूरों को वापस भेजने का इंतजाम कर रही है. वो इंतजाम अभी दिख नहीं रहा है.

मजदूरों ने कहा कि अगर बस नहीं मिली तो पैदल ही यात्रा पर निकल पड़ेंगे. उधर उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने पैदल मजदूरों की एंट्री पर रोक लगाई है. यूपी बॉर्डर में अवैध गाड़ी से आने वाले लोगों की और पैदल आने वाले लोगों को एंट्री नहीं दी जाएगी. उन्हें सरकारी इंतजाम से ही राज्य में एंट्री मिलेगी.

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गर्मी, भूख और लाचारी से बेबस लोग इसी आस में आगे बढ़ रहे हैं कि वह अपने घर जरूर पहुंच पाएंगे. प्रवासी मजदूर पैसे और खाने-पीने की कमी से जूझ रहे हैं. लोगों से उन्हें मदद भी मांगनी पड़ रही है.

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मजदूर पैदल ही मिर्जापुर जाने के लिए तैयार हैं. नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास मजदूर जमा हुए हैं. इन मजदूरों के पास न ही पैसे हैं, न हीं खाने-पीने के सामान. ऐसे में लोगों से मदद मांगना मजदूरों की मजबूरी बन गई है.

कुछ ऐसी ही परेशानियों से रोहतक से आई हुई महिलाएं जूझ रही हैं. वे रोहतक से अपने बच्चों के साथ दिल्ली पैदल चलकर आई हैं. महिलाओं के छत्तीसगढ़ तक पैदल सफर करना है.

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रास्ते में पुलिस से बचने के लिए मजदूरों ने झाड़ियों में छुपकर यात्रा की है. मजदूरों के पास पैसे खत्म हो गए हैं, ऐसे में वे लोगों से आर्थिक मदद मांग रहे हैं. सरकार से मजदूर अपील भी कर रहे हैं कि उन्हें घर भेज दिया जाए.

 

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