दिल्ली जन लोकपाल बिल 2014 को दिल्ली कैबिनेट ने पास कर दिया है. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्विटर पर लिखा, 'बधाई! दिल्ली जन लोकपाल बिल दिल्ली कैबिनेट द्वारा पास.'
Congratulations. Delhi Jan Lokpal Bill passed by Delhi Cabinet
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) February 3, 2014
दिल्ली सरकार द्वारा जन लोकपाल बिल को मंजूरी मिल गई है. कैबिनेट इस बिल को सीधे दिल्ली विधानसभा में पेश करेगी, इसे केंद्र सरकार के सामने पेश नहीं किया जाएगा. जन लोकपाल बिल का लंबे समय से इंतजार था. तीन कैबिनेट मीटिंग के बाद ये फैसला लिया गया. केजरीवाल सरकार पहले ही बता चुकी है कि विधानसभा का सत्र 13 से 16 फरवरी तक बुलाया जाएगा.
हालांकि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मिला हुआ है ऐसे में केंद्र सरकार को बाईपास करके कोई बिल दिल्ली विधानसभा में सीधा पेश करना संविधान के खिलाफ है. इस बारे में संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने कहा कि दिल्ली के मामले में केंद्र का कानून ही सर्वोपरि है. अगर एक कानून केंद्र और विधानसभा दोनों से पास होता है, तो केंद्र का कानून ही मान्य होता है. चूंकि केंद्र सरकार जनलोकपाल बिल पास कर चुकी है, तो दिल्ली के अपने लोकपाल का कोई मतलब नहीं है. हां, विधानसभा लोकायुक्त कानून में ही संशोधन कर सकती है.
कश्यप ने बताया कि संविधान के अनुसार दिल्ली का प्रशासन राष्ट्रपति के हाथ में होता है और उन्हीं के अधीन लेफ्टिनेंट गवर्नर दिल्ली के प्रशासक होते हैं. इसके हिसाब से बिल को पहले उप राज्यपाल के पास जाना चाहिए. उप राज्यपाल आमतौर पर बिल को राष्ट्रपति यानी गृह मंत्रालय के पास भेजते हैं, जहां से पास होने के बाद इसे राज्य में पास किया जाता है.
आम आदमी पार्टी के नेता व दिल्ली के मंत्री मनीष सिसौदिया ने कहा, 'आज का दिन दिल्ली के लिए ऐतिहासिक है. इसके बिल के तहत दिल्ली में मुख्यमंत्री से लेकर चपरासी तक सभी लोग इसके दायरे में आएंगे. किसी का भी नाम भ्रष्टाचार में आता है तो उसके खिलाफ एक जैसी जांच होगी.'
केजरीवाल सरकार ने बड़ी सीधी-सी लकीर खींची है कि कोई भी अब भ्रष्टाचार के आरोपों से परे नहीं होगा और जैसे एसडीएम की जांच होगी वैसे ही मुख्यमंत्री की जांच होगी. आरोपों के आधार पर अधिकतम 6 महीने में जांच पूरी हो जाएगी और लोकपाल कोर्ट ने दोषी पाया तो 6 महीने से उम्र कैद तक की सजा.
लेकिन केजरीवाल सरकार के इस जन लोकपाल बिल 2014 पर बवाल मच गया है. इस कानून से दिल्ली को भ्रष्टाचार मुक्त शहर बनाने में बड़ी मदद मिलेगी इससे किसी को कोई इनकार नहीं लेकिन संविधान और परंपराओं की दुहाई देकर इसे अटकाने की मंशाएं अभी से साफ होने लगी हैं.
दिल्ली जन लोकपाल अधिनियम तो यहां तक कहता है कि जो महकमे दिल्ली सरकार के दायरे से बाहर हैं, लेकिन दिल्ली की जनता का जिनसे ताल्लकु है- जैसे एमसीडी, जैसे दिल्ली पुलिस जैसे एनडीएमसी, उनके अफसरों की जांच भी जन लोकपाल कर सकेगा. भले उसकी रिपोर्ट पर सुनवाई सामान्य अदालतें करें.
तो क्या शासकों को अपने विशेषाधिकारों के खत्म हो जाने की चिंता खाए जा रही है. क्योंकि दिल्ली जन लोकपाल पारित हो जाने के बाद मंत्री, मुख्यमंत्री या आईएएस, आईपीएस होना बेईमान होने की सूरत में ढाल का काम नहीं करेगा. यहां तक कि खुद जन लोकपाल भी शिकायतों से ऊपर नहीं होंगे. क्या ये अपने आपमें एक खतरनाक और अवैध पहल है?
ये समझ में नहीं आता कि कोई भी अपने आपको कानून या सजा से ऊपर न समझे, किसी भी भ्रष्टाचार की जांच हो सके और किसी भी आरोप पर जल्दी सुनवाई और फैसला हो जाए इसमें किसी को क्या परेशानी होनी चाहिए? ये आप तय कीजिए कि किसकी चिंताएं कटघरे में हैं और किसका चरित्र?