दिल्ली विधानसभा के विशेष सत्र में बुधवार को विपक्ष के नेता और विपक्ष के अन्य सदस्यों मंजिंदर सिंह सिरसा और जगदीश प्रधान ने बिजली के बिलों में आई बेतहाशा वृद्धि को लेकर जमकर हंगामा किया.
उन्होंने कहा कि किलोवाट पर बढ़ी फिक्स्ड दरों की मार से किसान बुरी तरह त्रस्त हैं. जब विधानसभा अध्यक्ष ने उन्हें बोलने का मौका नहीं दिया तब वो वेल में आ गए. उन्होंने सरकार से मांग की कि खेती के लिए बिजली के कनेक्शनों में जो फिक्स चार्ज बढ़ाए गए हैं उन्हें तुरंत वापस लिया जाए.
विपक्ष के नेता विजेंद्र गुप्ता ने कहा कि 1 अप्रैल को प्रति किलोवाट की फिक्स्ड दरों के बढ़ने से पहले किसानों से 20 रुपये प्रति किलोवाट की फिक्स दर से चार्ज वसूला जाता था. सरकार ने इसे बढ़ाकर 125 रुपये प्रति किलोवाट कर दिया. इसी अनुपात में बिलों पर सरचार्ज भी बढ़ गया. किसानों को साल में अधिक से अधिक पांच महीने खेती के लिए बिजली की आवश्यकता होती है. लेकिन उन्हें बढ़ा हुआ बिल 12 महीने देना पड़ रहा है.
उन्होंने कहा कि कुछ मामलों में बिजली की खपत जीरो या एक यूनिट हुई पर चूंकि स्वीकृत लोड 10 किलोवाट का स्वीकृत था तब भी बिल 1400 रुपये का आया.
मुख्यमंत्री केजरीवाल से मांग की गई कि यदि सरकार वाकई में किसानों का भला चाहती है तो उसे खेती पर पहले की तरह 20 रुपये प्रति किलोवाट की दर से चार्ज वसूल करना चाहिए. किलोवाट पर बढ़ी फिक्स्ड दरों की मार से किसानों के साथ-साथ सभी दिल्लीवासी त्रस्त हैं. उनके बिजली के बिल घटने की अपेक्षा पहले से कहीं अधिक आ रहे हैं. सरकार को इसके लिए कोई न कोई बड़ा रास्ता निकालना ही होगा.
साथ ही विजेंद्र गुप्ता ने 575 प्राईवेट स्कूलों द्वारा अभिभावाकों को 9 प्रतिशत ब्याज के साथ फीस नहीं लौटाने पर सरकार से मांग की. उन्होंने कहा कि सरकार दोषी स्कूलों के बैंक अकाउंट अटैच कर अभिभावकों को ब्याज सहित फीस लौटाए. यह अफसोस की बात है सरकार इसके लिए हिम्मत नहीं जुटा पा रही है और अभिभावकों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है.
विजेंद्र गुप्ता ने सदन में उपमुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया से सीधे प्रश्न किया कि अभी तक कितने स्कूलों ने अभिभावाकों को कितनी-कितनी फीस लौटाई है. सिसोदिया के पास इसका कोई स्पष्ट जवाब नहीं था. विजेंद्र गुप्ता ने इस पर कहा है कि सरकार फीस लौटाने के मामले में सदन को गुमराह कर रही है.
उन्होंने कहा कि फीस लौटाने का मामला अत्यंत संवेदनशील है. दिल्ली अभिभावक महासंघ ने वर्ष 2009 में दिल्ली उच्च न्यायालय में उन निजी स्कूलों के खिलाफ याचिका दायर की थी. न्यायमूर्ति अनिलदेव समिति ने जून 2016 से जनवरी 2018 के बीच अपनी विभिन्न रिपोर्टों में 500 से अधिक स्कूलों की पहचान की और इन स्कूलों को अतिरिक्त फीस 9 प्रतिशत ब्याज सहित लौटाने के आदेश दिए. लेकिन सरकार आज तक इन आदेशों को लागू नहीं करा पाई.