दिल्ली मेट्रो के बढ़े हुए किराये को लेकर तकरार बढ़ती जा रही है. दिल्ली मेट्रो किराया बढ़ाने पर अड़ी हुई है, तो दिल्ली सरकार किराया बढ़ोतरी को टालने के लिए दबाव बना रही है. वहीं सत्ता धारी आम आदमी पार्टी ने तो आंदोलन की धमकी दे दी है, लेकिन इन सबके बीच मेट्रो के मुसाफिरों पर जेब ढीली होने का खतरा बरकरार है, क्योंकि दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन पर दिल्ली सरकार के उस आदेश का कोई असर नहीं नजर आ रहा है, जिसमें उसने किराया बढ़ोतरी टालने के लिए कहा है.
मेट्रो की ऑपरेशनल कॉस्ट में बढ़ोतरी
इस बीच दिल्ली मेट्रो ने तमाम वजहों का हवाला दिया है, जिससे उसे किराया बढ़ाना पड़ रहा है. दिल्ली मेट्रो रेल कार्पोरेशन के एक अफसर के मुताबिक आखिरी बार 2009 में दिल्ली मेट्रो का किराया बढ़ाया गया था, तब कि तुलना में मेट्रो की ऑपरेशनल कॉस्ट में बढ़ोतरी हुई है, जिससे पार पाने के लिए मेट्रो का किराया बढ़ाने के अलावा कोई चारा नहीं है.
ये हे दिल्ली मेट्रो की दलील
मेट्रो की दलील के मुताबिक मार्च 2009 में मेट्रो को बिजली 3 रुपए 21 पैसे प्रति यूनिट मिलती थी, जो मार्च 2017 में 6 रुपये 58 पैसे हो गई. मतलब मेट्रो को मिलने वाली बिजली की कीमत में 105 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. इसी तरह मेट्रो की दलील है कि 2009 में उसके स्टाफ की कॉस्ट एक करोड़ 17 लाख रुपये प्रति किलोमीटर थी, जो 2017 में बढ़कर 2 करोड़ 80 लाख रुपये प्रति किलोमीटर हो गई है यानी स्टाफ कॉस्ट में 139 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. इसी तरह मेट्रो के मेन्टेनेंस की लागत भी 213 फीसदी तक बढ़ गई है.
मेट्रो को होता है प्रॉफिट
लेकिन हकीकत ये भी है कि मेट्रो को ऑपरेशन प्रॉफिट होता है. मतलब मेट्रो के ऑपरेशन में जितना खर्च आता है, मेट्रो को उससे कहीं ज्यादा पैसा मुसाफिरों से मिलता है. किराये के तौर पर मेट्रो को जो पैसा मिलता है, उसके हर एक रुपये में 26 पैसे का मेट्रो को फायदा होता है, लेकिन मेट्रो का कहना है कि उसे इसके मुकाबले 27 पैसे कर्ज के तौर पर चुकाने पड़ते है, जो उसने जापान बैंक से लिया हुआ है.
मेट्रो किराए पर सियासत
बहरहाल दिल्ली मेट्रो किराया निर्धारण समिति की सिफारिशों का हवाला देकर अब भी किराया बढ़ोतरी से पीछे हटने को तैयार नहीं है, वहीं आम आदमी पार्टी आंदोलन की धमकी दे रही है. इस बीच मामले में केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय की भूमिका अहम हो जाती है क्योंकि दिल्ली मेट्रो में केंद्र सरकार के शहरी विकास मंत्रालय की आधी हिस्सेदारी है. मेट्रो के किराए को लेकर अब टकराव ही नहीं सियासत भी खूब होने वाली है.