कोर्ट ने कहा कि 15 जून को हम दोबारा इस मामले में सुनवाई करेंगे. कोर्ट ने कहा कि दिल्ली सरकार पूरे पूरे पेज के विज्ञापन तमाम चीजों के लिए देती है. भूकंप आने पर आम लोगों को बचाव के लिए क्या करना चाहिए इसके विज्ञापन सरकार के द्वारा मीडिया में क्यों नहीं दिए गए?
जनता के खून से रंगे हुए नहीं होने चाहिए सरकार के हाथ
कोर्ट ने चिंता जताते हुए कहा कि भूकंप आने पर सरकार की निष्क्रियता से लाखों लोगों की जान जा सकती है, किसी भी सरकार के हाथ अपनी ही जनता के खून से रंगे हुए नहीं होने चाहिए. भूकंप के बड़े झटकों से निपटने के लिए सरकार अपनी तैयारी पुख्ता करें, यह तैयारी सिर्फ कागजों पर नहीं होनी चाहिए. सरकार को इस पर गंभीरता से काम करना होगा.
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12 अप्रैल से अबतक 13 भूकंप के झटके
बता दें कि दिल्ली में 12 अप्रैल से अब तक 13 भूकंप के झटके आ चुके हैं. पिछले 2 महीने के दौरान दिल्ली एनसीआर में करीब एक दर्जन से ज्यादा भूकंप के झटकों को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में वकील अर्पित भार्गव की तरफ से अर्जी लगाई गई थी जिसमें कहा गया है कि विशेषज्ञों का मानना है कि इतने कम समय में इतनी बार भूकंप के झटके भविष्य में किसी बड़े संकट की ओर इशारा कर रहे हैं.
हाईकोर्ट के आदेशों का पालन नहीं
2015 से 2020 के बीच में हाई कोर्ट की तरफ से 10 से ऊपर आदेश दिए जा चुके हैं, लेकिन इस पूरे मामले पर सरकार का रुख गंभीर नहीं है. याचिकाकर्ता अर्पित भार्गव का कहना है कि 2015 से अब तक दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा भूकंप की तैयारियों को लेकर सरकार को जिस तरह के आदेश दिए गए उनका पालन दिल्ली में अभी तक नहीं हुआ है.
याचिका में कहा गया है कि दिल्ली की करीब 1700 अवैध कॉलोनियों में 50 लाख से ज्यादा लोग रहते हैं. दिल्ली में अगर कोई बड़ा भूकंप का झटका आया तो कोरोना से कहीं ज्यादा नुकसान दिल्ली वालों को भूकंप से होगा. दिल्ली में बमुश्किल 10 से 15 फीसदी इमारतें ही भूकंपरोधी हैं. ऐसे में 85 से 90 फीसदी इमारतों में रहने वाले लोग तेज भूकंप के दौरान इसकी चपेट में आ सकते हैं.