डेंगू चिकनगुनिया के बढ़ते मामले और मच्छरों के आतंक से जूझती राजधानी दिल्ली में हर कोई इस बात से परेशान है कि मच्छरों से निपटा कैसे जाए. हाल ही में इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बॉयोटेक्नॉलॉजी की एक रिसर्च में सामने आया है कि डेंगू चिकनगुनिया के मच्छरों से निपटने के लिए MCD की कवायद लेट हो गई है.
वेक्टर बोर्न डिजीजिज की हेड डॉ. सुजाता सुनील के मुताबिक फोगिंग और स्प्रेयिंग का काम प्री मानसून ही शुरू हो जाना चाहिए ताकि मच्छरों की ब्रीडिंग को तभी रोका जा सके. डॉ. सुजाता ने कहा की दिल्ली के सिर्फ उन इलाको में जहां पानी की कमी है और लोग पानी स्टोर करते हैं वहां जाकर अगर फोगिंग, स्प्रेयिंग और ब्रीडिंग चेकिंग का काम मानसून से पहले ही कर दिया जाए तो इन मच्छरों को पनपने से पहले ही खत्म किया जा सकता हैं. मानसून से पहले ब्रीडिंग बेहद कम होती है और इसीलिए उस समय मच्छरों को खत्म करना और पनपने से रोकना आसान होता हैं.
मानसून शुरू होते ही इनकी ब्रीडिंग कई गुना तेज हो जाती है और इन मच्छरों की संख्या लाखों करोड़ों में तब्दील हो जाती है. ऐसे में अब फोगिंग और स्प्रंयिंग से मच्छरों को मारना बेहद मुश्किल हो जाता है. रिसर्च में ये भी साबित हुआ है कि ये मच्छर अपनी लाइफ साइकिल को ह्यूमन बॉडी के बिना भी कम्पलीट कर सकते हैं. इसलिए किसी भी पानी वाली जगह पर इनका पनपना बेहद आसान है. MCD दिन-रात अलग-अलग इलाकों में फोगिंग और छिड़काव का काम कर रही है लेकिन मच्छरों पर काबू पाना असंभव सा लग रहा है. लेकिन शायद यही कवायद प्री मानसून कर दी जाती तो ऐसे हालात ही पैदा नहीं होते.
इन कैमिकल्स का इस्तेमाल कर रही है MCD
डेंगू, चिकनगुनिया के मच्छरों की चार अलग-अलग स्टेज होती हैं जिन्हें पनपने या मारने के लिए MCD के पास अलग-अलग केमिकल और इक्विपमेंट्स होते हैं. जिनका इस्तेमाल करके ये मच्छरों को ख़त्म करने की कोशिश करते हैं. मच्छरों को पनपने से रोकने के लिए कूलर या टंकी के पानी में टेमिफोस ग्रेन्यूल्स का इस्तेमाल काफी कारगर है. नगर निगम के मलेरिया इंस्पेक्टर दिनेश शर्मा का भी कहना है कि इन ग्रेन्यूल्स को डालने के बाद आप कूलर और टंकी को 15 दिन बाद भी साफ करेंगे तो इसका असर बना रहेगा.
कैरोसीन में मिलाकर इस्तेमाल होता है कैमिकल
लार्वा स्टेज पर मच्छरों को मारने के लिए बैक्टीसाइड का इस्तेमाल किया जाता है जो पिट्ठू पंप में डाल कर नालियों और दूसरी पानी वाली जगह पर स्प्रे किया जाता है. जिससे मच्छरों को पनपने से रोका जा सकता हैं. इसके अलावा फोगिंग से भी ज्यादा कारगर वॉल स्प्रेयिंग होती है जिसमें अल्फासायपर मिथेन का इस्तेमाल होता है जिसे कैरोसीन में मिलाकर बनाया जाता है और घरों की दीवारों पर स्प्रे किया जाता है. इसका असर तीन महीने तक रहता है और मच्छर दीवार पर बैठते ही उसके कांटेक्ट में आकर मर जाता है.