दिल्ली में ट्रांसफर-पोस्टिंग मामले में उपराज्यपाल को असली बॉस बनाने का दांव मोदी सरकार ने चल दिया है. इसके लिए केंद्र सरकार 'राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण' बनाने का अध्यादेश लेकर आयी है. इस अध्यादेश को अगर मॉनसून सत्र में संसद में मंजूरी के लिए पेश किया जाता है तो जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस और नवीन पटनायक की बीजेडी अहम रोल में होंगी.
पटनायक-जगन की पार्टी तय करेगी कि दिल्ली के बॉस की कुर्सी में केजरीवाल बनेंगे रहेंगे या फिर राज्यपाल के पास ये ताकत चली जाएगी. ऐसे में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल विपक्ष को गोलबंदी करने में जुट गए हैं ताकि राज्यसभा में अध्यादेश की राह में रुकावट खड़ी कर सकें. बता दें कि लोकसभा में बीजेपी आसानी से इस अध्यादेश पर समर्थन हासिल कर लेगी.
नीतीश के साथ केजरीवाल ने तैयार की रणनीति
बिहार के सीएम नीतीश कुमार और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बीच हुई मुलाकात में गैर-एनडीए विपक्ष को एकजुट कर अध्यादेश को राज्यसभा में पारित नहीं होने देने की रणनीति तैयार हुई है. केजरीवाल ने कहा कि राज्यसभा में अध्यादेश को पारित नहीं होने देने के लिए वह सभी गैर-बीजेपी दलों के अध्यक्ष से मुलाकात करेंगे. केजरीवाल ने नीतीश से भी इस संबंध में विपक्षी दलों से बातचीत करने का आग्रह किया है. वहीं, नीतीश ने भी पटना में होने वाली विपक्षी दलों की बैठक में इस मुद्दे पर विचार करने का आश्वासन दिया है.
ममता-पवार-ठाकरे से मिलेंगे केजरीवाल
अरविंद केजरीवाल इसी मुद्दे पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मिलने वाले हैं. केजरीवाल इसी सप्ताह मुंबई के दो दिवसीय दौरे पर जाएंगे. एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार और शिवसेना (ठाकरे गुट) के प्रमुख उद्धव ठाकरे से मिलेंगे. विपक्षी नेताओं से मुलाकात कर केंद्र सरकार द्वारा दिल्ली में लाए गए अध्यादेश को राज्यसभा में केजरीवाल रोकना चाहते हैं. इसके लिए वो विपक्षी नेताओं के पास जाकर समर्थन जुटा रहे हैं.
अध्यादेश संसद से नहीं हुआ पास तो बेअसर
बता दें कि केंद्र सरकार सरकार दिल्ली में ट्रांसफर और पोस्टिंग से जुड़ा हुआ अध्यादेश जरूर ला आई है, लेकिन कानूनी अमलाजामा पहनाने के लिए छह महीने में संसद से अध्यादेश को पास कराना जरूरी हो जाता है. हालांकि, छह महीने के भीतर संसद से पास नहीं होता है तो ये अध्यादेश स्वत: समाप्त हो जाता है. ऐसे में केंद्र सरकार दोबारा से अध्यादेश जारी कर सकती है, लेकिन एक बार के बाद दूसरी या तीसरी बार अध्यादेश लाया जाता तो उसे लोकतांत्रिक मर्यादा के खिलाफ माना जाता है.
केंद्र सरकार अध्यादेश को स्थाई तौर पर कानूनी अमलाजामा पहनाने के लिए छह महीने में संसद में पेश कर सकती है. ऐसे में मानसून सत्र में सरकार अध्यादेश को सदन में पेश करती है तो लोकसभा में नंबर होने के चलते उसे आसानी से पास करा लेगी, लेकिन राज्यसभा में मामला अटक सकता है. राज्यसभा में बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए को बहुमत हासिल नहीं है, ऐसे में उच्च सदन में भाजपा और कांग्रेस दोनों से समान दूरी अपनाने की नीति पर चल रहे वाईएसआरसीपी और बीजद की भूमिका अहम हो जाएगी.
राज्यसभा का समझें नंबर गेम
राज्यसभा में कुल 245 सदस्य होते हैं, लेकिन मौजूदा समय में 238 सदस्य है
राज्यसभा में बहुमत के लिए 120 सदस्यों का नंबर चाहिए होगा
एनडीए को 110 सदस्य का समर्थन
बीजेपी-93
एआईएडीएमके-4
अन्य छोटे दल-8
नामित सदस्य-5
यूपीए के पास कुल 64 सदस्य
कांग्रेस-31
डीएमके-10
आरजेडी-6
जेडीयू-5
एनसीपी-4
शिवसेना (उद्धव गुट)
जएमएम-2
अन्य छोटे दल-3
अन्य विपक्षी दलों के पास कुल 64 सदस्य
टीएमसी-12
आप-10
बीजेडी-9
वाईएसआर-9
बीआरएस-7
लेफ्ट पार्टी-7
सपा-3
बसपा-1
जेडीएस-1
अन्य छोटे-5
राज्यसभा में 7 सदस्य सीटें रिक्त हैं
नामित सदस्य भी लेते वोटिंग में हिस्सा
मनोनीत सदस्य भी वोटिंग में हिस्सा ले सकते हैं. ऐसे में बीजेपी अपने सहयोगी दलों के साथ-साथ नामित सदस्यों का भी समर्थन जुटा लेती है तो भी बहुमत से 10 सीटें पीछे हैं. ऐसे में विपक्ष के दूसरे अन्य दलों के समर्थन की जरूरत होगी
जगन-पटनायक की भूमिका होगी अहम
अध्यादेश पर अगर उच्च सदन में शक्ति परीक्षण हुआ तो बीजद-वाईएसआरसीपी निर्णायक की भूमिका में होंगे. दोनों दलों के उच्च सदन में नौ-नौ सदस्य हैं. केजरीवाल अगर अगर विपक्षी दलों के साथ जगन मोहन रेड्डी और नवीन पटनायक की पार्टी का भी सहयोग मिल जाता है तो मोदी सरकार के लिए अध्यादेश को संसद से फिर मंजूरी दिलाना संभव नहीं होगा. इसके उलट अगर इन दोनों दलों ने सदन में मतदान के दौरान वॉकआउट किया तो इसका सीधा लाभ बीजेपी को मिलेगा.
बीजद-वाईएसआरसीपी पर सस्पेंस
बीजेडी-वाईएसआरसीपी को लेकर सस्पेंस बना हुआ है. 2014 से लेकर अभी तक कई ऐसे मौके आए हैं जब देखा गया है कि ये दोनों ही दल मोदी सरकार के समर्थन में खड़े रहें या फिर सदन से वाकआउट कर गए थे. तीन तलाक,जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 खत्म करने, सीएए जैसे कई अहम मौकों पर इन दोनों दलों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया था. दोनों दलों के वाकआउट करने से राज्यसभा में नंबर गेम कम हो जाता है और बीजेपी आसानी ने उसे पास करा लेती है. दिल्ली से जुड़े अध्यादेश मामले में भी इन दोनों दलों पर नजर होगी, क्योंकि अगर केजरीवाल का साथ देंगे और अध्यादेश के खिलाफ साथ देते हैं तो बीजेपी के लिए मुश्किल हो जाएगी.
जानें पूरा मामला
दिल्ली में केजरीवाल सरकार बनाम उपराज्यपाल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार के पक्ष में फैसला दिया था. इसके आठ दिन बाद ही केंद्र सरकार ने शुक्रवार को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (संशोधन) अध्यादेश 2023 लेकर आई है. इस अध्यादेश के तहत अधिकारियों की ट्रांसफर और पोस्टिंग से जुड़ा फैसला लेने का हक उपराज्यपाल के पास होगा. इसके तहत दिल्ली में सेवा दे रहे 'दानिक्स' कैडर के 'ग्रुप-ए' अधिकारियों के तबादले और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए 'राष्ट्रीय राजधानी लोक सेवा प्राधिकरण' गठित किया जाएगा. दानिक्स यानी दिल्ली,अंडमान-निकोबार, लक्षद्वीप, दमन एंड दीव, दादरा एंड नागर हवेली सिविल सर्विसेस.
अध्यादेश में कहा गया है कि ट्रांसफर-पोस्टिंग मामलों का निपटारा इसी प्राधिकरण के माध्यम से होगा और अंतिम फैसला उपराज्यपाल का होगा. इतना ही नहीं केंद्र सरकार ने इसके तत्काल बाद सुप्रीम कोर्ट में भी पुनर्विचार याचिका दायर कर दी है ताकि दोनों ही स्तर पर मामले को लड़ सके. वहीं, केजरीवाल सरकार अब राज्यसभा में अध्यादेश की राह में रोड़ा बनने के लिए विपक्षी दलों का समर्थन जुटा रही है. देखना है कि जगन मोहन रेड्डी और नवीन पटनायक का समर्थन केजरीवाल जुटा पाते हैं कि नहीं?