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'डेथ ट्रैक' पर दौड़ रही है दिल्ली, सेहत पर हो रहा 'डबल अटैक'

सीएसई ने अपनी रिपोर्ट में केंद्र और राज्य सरकार पर भी निशाना साधा है और कहा है कि ओजोन पॉल्यूशन के खतरे से सरकार अनजान बनी हुई है खुद दिल्ली सरकार परिवहन विभाग के आंकड़े ये दिखाते हैं कि दिल्ली में रजिस्टर्ड वाहनों की संख्या एक करोड़ के पार पहुंच चुकी है.

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प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर

दिल्ली की सेहत पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है, एक तरफ वाहनों की बढ़ती संख्या का बोझ, तो दूसरी तरफ राजधानी की फिजा में बढ़ता ओजोन पॉल्यूशन दिल्ली की सेहत बिगाड़ रहा है. अगर आप सूरज की इस तपिश को जला देने वाली गर्मी समझकर भूल जाना चाहते हैं तो ये आपके लिए जानलेवा भूल साबित हो सकती है. दरअसल, सूरज की इस तपिश में ओजोन नाम का वो पॉल्यूशन पनप रहा है जो बेशक सर्दियों के मौसम की तरह दिखाई ना दे लेकिन इसे नजरअंदाज करना घातक साबित हो सकता है. सिर्फ ओजोन पॉल्यूशन नहीं बल्कि जिस तरह हम गाड़ियों के चक्कों पर सवार होकर हाईस्पीड में बढ़ रहे हैं अगर जल्द ही ब्रेक नहीं लगा तो दिल्ली जीने लायक नहीं बचेगी.

ट्रांसपोर्ट विभाग के आंकड़े बता रहे हैं कि देश की राजधानी डेथ ट्रैक पर दौड़ रही है. दरअसल, दिल्ली के बढ़ते प्रदूषण को लेकर सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट यानी सीएसई ने एक रिपोर्ट जारी की है. सीएसई के मुताबिक दिल्ली में इस साल अप्रैल और मई के महीने में करीब 67 फीसदी दिन ओजोन पॉल्यूशन वाले रहे. चिंता वाली बात ये है कि आर.के. पुरम और पंजाबी बाग जैसे रिहायशी इलाकों में ओजोन पॉल्यूशन का खतरा आनंद विहार इलाके से कहीं ज्यादा था और इसकी मुख्य दो वजहें हैं.

पहली वजह- दिल्ली में लगातार हो रही तापमान में बढ़ोत्तरी
दूसरी वजह- दिल्ली में डीजल गाड़ियों की बढ़ी हुई तादात

जब डीजल की गाड़ियां चलती हैं तो उसके इंजन से निकलने वाले धुएं से ओजोन बनता है. चूंकि दिल्ली में इन दिनों तापमान में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है लिहाजा वातावरण में ओजोन की गैस में भी बढ़ोत्तरी होती है. जब वातावरण में ओजोन की मात्रा बढ़ती है तो फिर इसका सीधा अटैक मानव शरीर पर पड़ता है. खासतौर पर सांस संबंधी बीमारियों वाले मरीजों के लिए ये पूरी तरह से जानलेवा होती है.

सीएसई ने अपनी रिपोर्ट में केंद्र और राज्य सरकार पर भी निशाना साधा है और कहा है कि ओजोन पॉल्यूशन के खतरे से सरकार अनजान बनी हुई है खुद दिल्ली सरकार परिवहन विभाग के आंकड़े ये दिखाते हैं कि दिल्ली में रजिस्टर्ड वाहनों की संख्या एक करोड़ के पार पहुंच चुकी है. ट्रांसपोर्ट विभाग के मुताबिक दिल्ली में 25 मई तक वाहनों की संख्या 1 करोड़ 5 लाख, 67 हजार 712 हो गई है.

कारों की संख्या: 31 लाख 72 हजार 842
बाइक और स्कूटर: 66 लाख, 48 हजार 730
बस की संख्या: 35, 332
ई-रिक्शा: 31, 555
पैसेंजर थ्री व्हीलर: 1 लाख 6 हजार 82
मैक्सी कैब: 30, 207

बढ़ती गाड़ियां मतलब लंबे जाम... लंबे जाम मतलब फ्यूल, पैसे और समय की बर्बादी... साइड इफेक्ट केवल इतना नहीं है... बढ़ते वाहनों से प्रदूषण भी बढ़ता है... प्रदूषण से ओजोन की परत में छेद होता है... नतीजा सेहत पर अटैक. डॉक्टरों के मुताबिक दिल्ली के हालात अब डराने वाले हैं.

गैस चैम्बर में तब्दील होती दिल्ली के स्वास्थ्य पर केन्द्रीय मंत्री वैंकैया नायडु ने भी चिंता जाहिर की है. वर्ल्ड एनवॉयरमेंट डे के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम में नायडु ने कहा, "पब्लिक ट्रांसपोर्ट हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए, लोगों में जागरुकता फैलाने की भी जरूरत है. कुछ परिवारों में 3-4 कारें होती हैं. सब लोगों को इस बारे में सोचना होगा. केंद्र और राज्य सरकार को मिल कर काम करना होगा ताकि पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ाया जा सके. इसीलिए हम मेट्रो समेत अन्य पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर जोर दे रहे हैं."

हैरानी की बात ये है कि वाहनों की इस संख्या में सबसे ज्यादा प्रदूषण का कारण टू व्हीलर यानी मोटर साइकिल और स्कूटर बन रहे हैं. जिनकी दिल्ली में सबसे ज्यादा संख्या है. लेकिन ऑड-ईवन लागू करने वाली सरकार ने वाहनों से बढ़ने वाले पॉल्यूशन को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाए हैं. पर्यावरण दिवस के मौकै पर दिल्ली के लिए खतरे की घंटी बज चुकी है. अगर अब नहीं संभले तो संभलने लायक भी नहीं बचेंगे. लेकिन सवाल ये है कि दिल्ली के सीने से चक्कों का ये बोझ कैसे कम होगा.

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