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भारत में सबसे गंभीर हालात अभी Air Pollution को लेकर कहीं है तो वो दिल्ली में है. देश की राजधानी दिल्ली दुनिया का सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर है. यानी दिल्लीवालों की सांसों पर सबसे बड़ा खतरा है. Air Quality Index सुधर नहीं रहा, अस्पतालों में सांस की तकलीफ, लंग्स और स्किन से जुड़ी बीमारियों के मरीजों की संख्या बढ़ने लगी है. हालात को देखते हुए शहर में स्कूल-कॉलेज बंद किए जा चुके हैं, कंस्ट्रक्शन के काम पर रोक है, गैस आधारित उद्योगों को छोड़कर बाकी इंडस्ट्री पर बैन लग चुका है, शहर में ट्रकों की एंट्री बंद हो चुकी है. हालात और बिगड़े तो गाड़ियों के ऑड-ईवन के नियम को भी फिर से लाने की चर्चाएं शुरू हो चुकी हैं. लेकिन इन तात्कालिक कदमों को छोड़ दें तो सरकारों और पर्यावरण एजेंसियों के पास इस हालात से निपटने का कोई स्थायी और ठोस प्लान दिख नहीं रहा.
पॉल्यूशन की समस्या गंभीर क्यों है? इसे समझने के लिए कुछ आंकड़े समझ लेने बहुत जरूरी हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी WHO के अनुसार दुनिया में हर साल 70 लाख लोगों की मौत Air Pollution से जुड़ी बीमारियों के कारण हो जाती है. सांस में जहरीली हवा लेने का नुकसान भारत में भी कम नहीं है. दुनिया के 10 सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में दिल्ली टॉप पर है तो कोलकाता और मुंबई भी 10 सबसे खराब हवा वाले शहरों की लिस्ट में शामिल हैं. भारत में वायु प्रदूषण से जुड़ी बीमारियों के कारण हर साल लगभग 20 लाख लोगों की मौत हो जाती है. Greenpeace Southeast Asia और स्विस फर्म IQAir की एक स्टडी के मुताबिक साल 2020 में दिल्ली में Air Pollution के कारण 54000 लोगों की जान चली गई.
इस संकट से निपटने का उपाय क्या है?
दमघोंटू हवा के इस संकट से बचने का लोगों के पास अपने स्तर पर कोई उपाय नहीं है. सरकार और एजेंसियों को ही इससे निपटने के लिए ठोस, स्थायी और प्रभावी प्लान बनाना होगा और उसे कागजों पर पेश करने की बजाय जमीन पर लागू करना होगा. इसमें दुनिया के उन शहरों का अनुभव काफी काम आ सकता है जो कभी वायु प्रदूषण से हलकान थे लेकिन ठोस और कारगर प्लान बनाकर, और उन्हें असल में लागू कर हालात को काफी हद तक बदलने में कामयाब रहे. देखिए इन शहरों ने क्या उपाय अपनाए और इसका क्या असर हुआ?
1. कभी धुआं-धुआं हुआ करता था चीन का बीजिंग शहर!
तेज शहरीकरण और औद्योगिक विकास के कारण 1990 के दशक में ही चीन की राजधानी बीजिंग की हवा गंभीर लेवल तक प्रदूषित हो चुकी थी. कई बार हवा में जहर का लेवल इतना आ जाता था लोगों के घर से निकलने पर रोक तक लगानी पड़ी. बीजिंग के साथ-साथ चीन के कई और शहरों के भी यही हालात थे. 1998 में चीन ने प्रदूषण के खिलाफ जंग का ऐलान किया. कोयला के इस्तेमाल को घटाया गया, कार्बन उत्सर्जन बढ़ाने वाली गाड़ियों में कमी की गई और स्वच्छ ईंधन को अपनाने के कड़े उपाय किए गए, तकनीक के इस्तेमाल को बढ़ाकर परंपरागत तरीकों से बढ़ रहे प्रदूषण पर लगाम लगाने की कोशिशें शुरू हुईं.
सबसे रोचक कदम था पूर्वी चीन के नानजिंग में vertical forest लगाने का. जिसकी क्षमता हर साल 25 लाख टन कार्बन डाई ऑक्साइड को सोंखने की थी और हर रोज ये 60 kg ऑक्सीजन उत्पादन कर सकता था. एयर क्वालिटी सुधारने के लिए तकनीक का इस्तेमाल कर उत्तरी चीन के शहरों में 100 मीटर ऊंचे 'स्मॉग टॉवर' लगाए गए. प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों के लिए जरूरी किया गया कि उनपर काबू पाने के उपाय भी वे खुद करें और साथ ही ग्रीन तकनीक को बढ़ावा देने की जिम्मेदारी भी उनपर डाली गई. इनपर निगरानी के लिए सख्त नियम बनाए गए और उन्हें लागू किया गया. 15 साल बाद 2013 आते-आते बीजिंग समेत चीन के कई शहरों में हवा में प्रदूषण का स्तर राष्ट्रीय मानकों के लेवल पर आ गया था. कम समय में किस हद तक बदलाव लाया जा सकता है इसका उदाहरण बीजिंग में देखने को मिला जब साल 2013 में PM2.5 पॉलुटेंट का लेवल 90 µg/m3 था लेकिन 4 साल बाद 2017 में यह घटकर 58 µg/m3 तक आ गया.
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2. भीड़-भाड़ वाले मैक्सिको सिटी में कैसे बदले हालात?
1990 के दशक की शुरुआत में मैक्सिको शहर दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में गिना जाता था. 90 लाख से अधिक आबादी वाले मैक्सिको मेगासिटी में प्रदूषण की समस्या काफी बढ़ गई थी. भीड़ वाले इस शहर को ऐसे हालात से निकालने के लिए 1990 के दशक में तकनीक में बदलाव लाने, गैसोलीन वाले ईंधन में शीशे की मात्रा घटाने, कार्बन उत्सर्जन करने वाले ऊर्जा स्रोतों का इस्तेमाल घटाने समेत कई कदम उठाए गए. पॉल्यूशन वाले इलाकों में कई ऑयल रिफाइनरीज तक बंद कर दी गईं. गाड़ियों के लिए और खाना पकाने के लिए स्वच्छ ईंधन के विकल्पों को अपनाने को लोगों को प्रोत्साहित किया गया. ठोस प्लान और लगातार सख्त कदमों से इस शहर ने हालात पर काफी हद तक काबू पा लिया. 1990 के दशक में यहां PM 2.5 पॉलुटेंट का लेवल 300 µg/m3 तक था. वह साल 2018 आते-आते 100 के लेवल पर आ गया.
3. पेरिस जैसे यूरोपीय शहरों ने दिखाया अलग रास्ता
उद्योगों के तेज विकास और बढ़ते शहरीकरण के कारण यूरोप के शहरों में भी प्रदूषण का खतरा आया तो उन्होंने तकनीक अपनाने के साथ-साथ प्रकृति के साथ चलने की नीति अपनाने का अनोखा रास्ता दिखाया. फ्रांस की राजधानी पेरिस के प्रशासन ने कई ऐतिहासिक जिलों में वीकेंड पर कारों को बैन कर दिया और यातायात के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट को फ्री कर दिया गया. बड़े इवेंट्ंस और आयोजनों के दौरान कार और बाइकों की शेयरिंग को बढ़ावा देने के उपाय भी किए गए.
4. पेट्रोल-डीजल गाड़ियों को पूरी तरह बैन करने की तैयारी में एम्सटर्डम
नीदरलैंड का एम्सटर्डम शहर पब्लिक ट्रांसपोर्ट के इस्तेमाल और साइकिल की सवारी को बढ़ावा देने के लिए दुनिया में सबसे आगे रहने वाले शहरों में गिना जाता है. इस शहर ने अब अगला लक्ष्य रखा है साल 2025 तक शहर के कई इलाकों में सिर्फ इलेक्ट्रिक गाड़ियों को परमिशन देने का. यही नहीं साल 2030 के बाद पेट्रोल-डीजल पर चलने वाले कारों और बाइक्स को पूरी तरह से बैन करने का भी प्लान है. इसके लिए इलेक्ट्रिक गाड़ियों को बढ़ावा देने और सोलर ईंधन जैसे स्वच्छ ऊर्जा के उपायों पर प्लान्ड तरीके से काम शुरू किया गया है.
5. भीड़-भाड़ वाले शहरों में भी ये संभव है...कोपनहेगन ने कर दिखाया
करीब 19 लाख की आबादी वाले डेनमार्क की राजधानी कोपनहेगन शहर में प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए अनोखे उपाय दुनिया को पसंद आ सकते हैं. यहां लोग पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर चलना ज्यादा पसंद करते हैं. यहां कारों और बाइक्स से ज्यादा महत्व साइकिल को दिया जाता है. लोगों में जागरुकता का स्तर ये है कि शहर की चमचमाती सड़कों पर कार और बाइक्स से ज्यादा लोग साइकिल्स पर दिख जाते हैं और वो सूट-बूट में. इस शहर ने साल 2025 तक 0 यानी शून्य कार्बन उत्सर्जन लेवल हासिल करने का लक्ष्य रखा है. 0 कार्बन उत्सर्जन लेवल का मतलब है कि हम पर्यावरण में अब कार्बन उत्सर्जन का नया हिस्सा नहीं जोड़ेंगे.
6. शहर का यातायात मैनेजमेंट कैसा रखें? ज्यूरिख ने दिखाया
स्विट्जरलैंड के ज्यूरिख शहर में पार्किंग स्पेस को लिमिट कर दिया गया है. शहर में कई ब्लू जोन बनाए गए हैं जहां 1 घंटे तक की पार्किंग फ्री है लेकिन इससे आगे भारी फीस का प्रावधान है. शहर की सड़कों पर एक समय में कितनी कारें होंगी इसपर भी नियंत्रण के नियम बनाए गए हैं. अब शहर में अधिक से अधिक ऐसे इलाके बनाए जा रहे हैं जहां कार-फ्री जोन हो. शहर में लोगों को यातायात की सुविधा मुहैया कराने के लिए ट्राम लाइन्स बढ़ाई जा रही हैं.
7. बैंकॉक मॉडल भी प्रदूषण लेवल घटाने में काफी कारगर
साल 2019 में थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में प्रदूषण की समस्या एकदम चरम पर आ गई थी. इसके बाद वहां कई लेवल पर प्लान बनाकर कदम उठाए गए. ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाली गाड़ियों पर रोक लगाई गई, बच्चों को सेफ रखने के लिए स्कूलों को बंद करना पड़ा, फैक्ट्रियों और अन्य उद्योग धंधों में प्रदूषण की निगरानी के लिए पुलिस और सेना को तैनात कर सख्ती की गई. प्लेन के जरिए क्लाउस सीडिंग कर कृत्रिम बरसात कराई गई और आसमान से प्रदूषण को साफ किया गया. शहर की सड़कों पर चल रहे टू-थ्री व्हीलर्स गाड़ियों को गैसोलीन की बजाय इलेक्ट्रिक गाड़ियों में बदलने के लिए कदम उठाए गए. शहर में गाड़ियां कम करने के लिए कैनल ट्रांसपोर्ट सिस्टम शुरू किया गया ताकि नहरों में नाव और फेरी चलाकर ट्रांसपोर्ट के नए विकल्प लोगों को दिए जा सकें. कार्बन उत्सर्जन घटाने के लिए उद्योगों के लिए सख्त नियम बनाए गए. इससे काफी हद तक हालात कंट्रोल में आए.
दिल्ली जैसे बड़े शहरों के सामने पर्यावरण प्रदूषण की समस्या साल दर साल विकराल होती जा रही है. ऐसे में क्या किया जा सकता है? पर्यावरण एक्सपर्ट मानते हैं कि खराब हवा और प्रदूषण के लेवल में कमी तभी लाई जा सकती है जब कार्बन उत्सर्जन और प्रदूषण फैलाने वाले पॉलुटेंट्स को कम किया जाए. और ये बिना सख्त नियमों और उन्हें सख्ती से लागू किए संभव नहीं है. इसके लिए जरूरी है कि सरकारें, शहर का प्रशासन और एजेंसियां इच्छाशक्ति दिखाएं और जमीनी स्तर पर योजनाएं लागू कर सकें. साथ ही लोगों को वर्तमान ईंधन व्यवस्था की बजाय ऊर्जा के स्वच्छ उपायों के विकल्प सस्ते में उपलब्ध करा सकें.