दिल्ली में बिजली के दाम को लेकर आम आदमी पार्टी की अरविंद केजरीवाल सरकार और बिजली कंपनियां खुले तौर पर आमने-सामने आ गई हैं.
एक ओर जहां दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल दिल्ली की जनता को आश्वासन दे रहे हैं कि सभी स्लॉट में बिजली की दरें आधी कर दी जाएंगी, वहीं दूसरी ओर बिजली कंपनियों ने दो-टूक कह दिया है कि महानगर में बिजली की दरें बढ़ानी ही होंगी. उन्होंने आगाह किया है कि अगर ऐसे हालात रहे तो उनका काम-काज ठप हो जाएगा. इसका मतलब साफ है कि दिल्ली में बिजली गुल हो जाएगी.
समाचार पत्रों की रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली की बिजली वितरण कंपनियों ने केजरीवाल सरकार को कह दिया है कि उनके पास बिजली उत्पादक कंपनियों से बिजली खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं और बैंक भी उन्हें लोन देने को इच्छुक नहीं हैं.
अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस ने साफ कर दिया है कि उन्हें आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है और नई सरकार का रवैया सहयोगात्मक नहीं है. दिल्ली के पवर सेक्रेटरी पुनीत गोयल को रिलायंस ने इस आशय की चिट्ठी भेज दी है. इसमें कहा गया है कि बिजली की दरें ऐसी हैं कि बीएसईएस की हालत बिगड़ती जा रही है. इससे बिजली कंपनियों को पैसे देने की हमारी क्षमता पर असर पड़ता जा रहा है.
अगर बिजली कंपनियों का दावा सही है तो इसका मतलब होगा दिल्ली में आगे चलकर बिजली की बड़ी समस्या, क्योंकि ये कंपनियां बिजली उत्पादकों को पैसे नहीं दे पाएंगी.
बीएसईएस ने यह भी कहा है कि बैंक हमारे पैसे लौटाने की क्षमता पर सवाल उठा रहे हैं. मीडिया में आई खबरों से ऐसा लगता है कि सरकार बिजली की दरें घटाना चाहती है. इससे वे और भी हमसे दूर हो गए हैं. वे कह रहे हैं कि वे हमें आगे लोन नहीं दे पाएंगे.
अतीत में देश की सबसे बड़ी बिजली उत्पादक कंपनी एनटीपीसी ने अपना भुगतान न मिलने के कारण दिल्ली में बिजली की सप्लाई काट देने की धमकी भी दी थी.
दिल्ली की समस्या यह है कि वह सिर्फ 1,935 मेगावॉट बिजली का उत्पादन करती है जबकि केंद्र सरकार की कंपनियां उसे 5,441 मेगावाट बिजली देती हैं. दिल्ली की कुल जरूरत 7,500 मेगावाट की है.
बिजली कंपनियों ने यह साफ कर दिया है कि वे दिल्ली के बिजली रेगुलेटर के आदेशों का पालन करती हैं और उसके आदेश को सरकार को भी मानना पड़ेगा.