एक तरफ जहां दिल्ली वाले बिजली की किल्लत से जूझ रहे हैं वहीं दिल्ली सरकार बिजली कंपनीयों को फायदा पहुंचाने में लगी है. ये फायदा आपके बिजली के बिल पर सेंक्शन लोड की आड़ में पहुंचाया जा रहा है.
हाल ही में दिल्ली के पावर मंत्री सतेंदर जैन ने ट्वीट कर जानकारी दी थी कि 8 जून को दिल्ली मे बिजली का पीक लोड बढ़कर 6934 MW हो गया और 7000 MW क्रॉस कर सकता है. एक आरटीआई दिल्ली आजतक के हाथ आई है उसमें दिल्लीवालों पर 23,000 मेगावॉट के सेंक्शन लोड के हिसाब से पैसे वसूले जा रहे हैं. इस लूट के खेल को हम इस प्रकार समझ सकते हैं.
दिल्लीवालों का टोटल सेंक्शन लोड कितना है? क्योंकि अगर दिल्लीवालों का टोटल सेंक्शन लोड, दिल्ली के पीक लोड से कम है, तो यक़ीनन दिल्लीवाले ज़्यादा बिजली फूँक रहे हैं और ऐसे में बिजली गुल होना भी जायजा है. अगर दिल्ली वालों का टोटल सेंक्शन लोड, पीक लोड से ज़्यादा है तो इसका साफ मतलब है कि ये डिस्कोमस की कमी है. और बिजलीं कंपनियों को मोटा फायदा दिया जा रहा है .जो कि डीईआरसी से हासिल हुई आरटीआई में साफ जाहिर होता है. आरटीआई में जो आकड़े हमारे हाथ आए वो चौकाने वाले हैं. RTI में बताया गया है कि दिल्लीवालों का टोटल सेंक्शन लोड 22,876 MW है,
TPDDL 6459 MW,
BRPL 10538 MW
BYPL 5880 MW
आरटीआई में जो जानकारी आई है इससे ये साफ होता है की दिल्लीवालों का टोटल सेंक्शन लोड, दिल्लीवालों के पीक लोड से कहीं ज़्यादा है, साथ ही इससे ये भी साबित हो गया कि दिल्ली में पावर की शॉर्टेज या आउटेज के पीछे इन डिस्कोमस का इन्सफीशियेंट इन्फ्रास्ट्रक्चर है. जो कि उस पीक लोड को भी ढंग से पावर सप्लाई नहीं कर सकता है. जो कि सेंक्शन लोड का 1/3rd से भी कम है.
डीईआरसी ने जो आंकड़े दिए हैं, उससे इस पर एक नया सवाल भी सामने आया है कि अगर दिल्लीवालों का टोटल सेंक्शन लोड 22,876 MW है. जबकि दिल्लीवालों का पीक लोड 7,000 MW से भी कम है, तो ये डिस्कोमस किस लोड पर फिक्स्ड चार्जेस ले रहे हैं. अगर हम अपना बिजली का बिल देखते है तो सबसे उपर हमारा सेंक्शन लोड दिया होता है जिस पर ये डिस्कोमस, फिक्स्ड चार्जस लगाते हैं.
कैसे उपभोगताओ से हो रही है लूट-
तो क्या इसका मतलब ये समझा जाए कि 22,876 MW( Total Sanctioned Load )-6,934 MW(Peak Load)= लगभग 16,000MW, या फिर 1,60,00,000 KW किलोवॉट पर हर महीने बढ़ी हुई दरों पर फिक्स्ड चार्ज वसूल रहे हैं, जबकि ये 16,000 MW, या फिर 1,60,00,000 KW, बिजली का वो लोड है, जिसकी ना तो कभी कोई demand होती है, जो ना तो कभी सप्लाई होता है और जिसका इन डिस्कोमस के पास शायद कोई इनफ्रास्ट्रक्चर भी नहीं है. इस 16000 मेगावॉट पर 125 रुपया से लेकर 250 रुपये तक फिक्स्ड चार्ज वसूला जा रहा है. यानी करोड़ों रूपये दिल्ली वाले बिजली कंपनियों को दे रहे है, जिसका ना तो वो इस्तेमाल कर रहे है और ना ही उस बिजली की जरूरत दिल्ली वालों को है.
आरटीआई के मुताबिक दिल्ली में बिजली कंपनियां लगभग 23000 मेगावॉट सैंक्शन लोड के हिसाब से पैसे वसूल रही है. 23000 मेगावॉट यानी 23000000 किलो वॉट अब जरा इस किलो वॉट को 125 रुपए फिक्स्ड चार्ज से गुणा करे जो डीईआरसी का नया और मिनिमम फिक्स्ड चार्ज है. जो लगभग 2,875,000000 करोड़ रुपया पहुंचता है जो हर महीने बिजलीं कंपनियां उपभोक्ताओं से ले रही है. और हकीकत में दिल्लीवाले 7000 मेगावॉट बिजली खर्च करते है .जो कि दिल्ली सरकार का आंकड़ा है. अब जरा 7000 मेगावॉट को किलोवॉट में लाते हैं तो वो 7000000 किलोवॉट बनता है जो दिल्लीवालों का एक्चुअल लोड है. अब इस लोड को 125 से गुणा करे तो ये आंकड़ा 875,000000 करोड़ रुपए पहुंचता है. जो दिल्ली वालों को देना होता है. लेकिन दिल्ली वाले 2875000000 करोड़ दे रहे है. यानी हर महीने 200 करोड़ रुपए ज्यादा और वो भी उस बिजली के जिसका तो वो इस्तेमाल भी नहीं कर रहे हैं.
हालांकि अब इस लूट पर आरडब्लूए सवाल खड़ा कर रही है. ईस्ट दिल्ली आरडबलूए के अध्यक्ष बीएस बोहरा कहना है कि अगर ये सच है तो दिल्ली वालों के साथ इतना बड़ा धोखा क्यों? क्यों इन डिस्कोमस को इतनी बड़ी लूट की छूट मिली हुई है? किससे पूछ कर DERC ने फिक्स्ड चार्ज में इतना बड़ा हाइक किया? दिल्ली सरकार और इसके पावर मिनिस्टर क्या कर रहे हैं.
इसके साथ ही इस मामले पर दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने भी सवाल खड़े करते हुए इस मामले पर कहा है कि एक कमिटी का गठन होना चाहिए. जो ये जान सके कि आखिर उपभोक्ताओं से इतनी मोटी रकम क्यों वसूली जा रही है.