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राजधानी में गाड़ी चलाना होगा महंगा, सड़कों पर 'कन्जेशन' टैक्स लगाने की तैयारी!

राजधानी में बढ़े रहे ट्रैफिक और प्रदूषण के मद्देनज़र इस कड़े कदम को उठाया जा रहा है. ये नियम कब लागू होगा, कितना टैक्स लगेगा या क्या नियम होंगे इस पर अभी कोई फैसला नहीं हुआ है.

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अगर आप राजधानी दिल्ली में रहते हैं या फिर रोजाना का आना जाना है तो आपके लिए एक जरूरी खबर है. दिल्ली में अब एक ऐसे नियम को लागू करने की तैयारी की जा रही है जिसके तहत अगर आप भीड़भाड़ वाले इलाके में गाड़ी ले जाएंगे तो आपको 'कन्जेशन' टैक्स (एक प्रकार का टोल टैक्स) देना पड़ेगा. हालांकि, अभी इसपर आधिकारिक फैसला नहीं हुआ है. लेकिन अगर ऐसा होता तो दिल्ली की करीब 21 भीड़भाड़ वाली सड़कों पर ये नियम लागू किया जा सकता है.

अंग्रेजी अखबार हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल, तीनों नगर निगम और केंद्र सरकार के शहरी विकास मंत्रालय ने इन 21 जगहों की पहचान भी कर ली है. राजधानी में बढ़े रहे ट्रैफिक और प्रदूषण के मद्देनज़र इस कड़े कदम को उठाया जा रहा है. ये नियम कब लागू होगा, कितना टैक्स लगेगा या क्या नियम होंगे इस पर अभी कोई फैसला नहीं हुआ है.

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अखबार से बातचीत में केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने बताया कि वह इस फैसले का समर्थन करते हैं और इस प्रकार के फैसले ना सिर्फ दिल्ली में बल्कि देशभर में लागू होने चाहिए. उपराज्यपाल ने इस नियम को लागू करने से पहले कई तरह के निर्दश जारी किए हैं. एलजी ने दिल्ली की परिवहन प्रणाली लिमिटेड को अध्ययन करने को कहा गया है.

जिन जगहों का नाम इस लिस्ट में आ सकता है उनमें अरबिंदो चौक, अंधेरिया मोड़, आईटीओ, मथुरा रोड, महरौली, कश्मीरी गेट जैसी कई भीड़भाड़ वाली सड़कें शामिल हैं. आपको बता दें कि लंदन में इस प्रकार का नियम पहले से ही लागू है, यहां कुछ सड़कों पर नियमित समय पर कार लाने पर कुछ राशि चुकानी पड़ती है.

गौरतलब है कि दिल्ली में प्रदूषण की समस्या काफी बड़ी होती जा रही है. प्रदूषण को रोकने के लिए कई तरह के प्रयास भी किए जा चुके हैं. दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने कई बार राज्य में ऑड-ईवन भी लागू किया था. वहीं प्रदूषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट-हाईकोर्ट-एनजीटी हर कोई सरकारों को लताड़ लगा चुका है.  

'कन्जेशन' टैक्स के इस आइडिये पर पहले भी विचार किया जा चुका है, हालांकि हर बार कमजोर पब्लिक ट्रांसपोर्ट की वजह से ये टलता रहा है. दिल्ली में करीब 5000 बसें हैं, जबकि जरूरत के हिसाब से ये संख्या 10 हजार के आसपास होनी चाहिए.

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