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राजधानी दिल्ली में सोमवार को अचानक मौसम बदला तो तेज आंधी और बारिश ने जगह-जगह पेड़ और बिजली के खंभे उखाड़ दिए. इस बदले मौसम ने दिल्लीवालों की रोज की ट्रैफिक जाम की मुश्किलों को मुसीबत में बदल दिया.
महेश कुमार ऑटो चलाते हैं. उन्हें हाईकोर्ट से जय सिंह मार्ग तक पहुंचने में डेढ़ घंटे लग गए. महेश कुमार जैसे लोग हजारों की संख्या में थे जो जगह-जगह जाम में फंसे रहे. बारिश के मौसम में ट्रैफिक जाम आम है, लेकिन दिल्ली वालों के लिए ये महज समस्या नहीं बल्कि मुसीबत है और कुछ हद तक जानलेवा मुसीबत भी. वजह है राजधानी में सड़कों की तुलना में बेतहाशा बढ़ती वाहनों की संख्या.
पहले जानिए देश में कितने लोगों के पास है वाहन
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (NFHS-5) के आंकड़े बताते हैं कि देश के 7.5% परिवारों के पास अपनी कार है. 2018 में ये आंकड़ा 6% का था. ऐसे ही 49.7% परिवारों के पास दोपहिया वाहन हैं. 2018 में ये 37.7% था. वहीं 50.4% परिवारों के पास साइकिल है, जबकि 2018 में ये आंकड़ा 52.1% का था. ये आंकड़े बताते हैं कि सड़क पर कार और बाइक वालों की संख्या बढ़ रही है, जबकि साइकल वालों की संख्या घट रही है.
दिल्ली में कितने लोगों के पास कार है?
ये तो बात हुई देश की लेकिन, राजधानी दिल्ली की बात की जाए तो यहां हर 100 में से 20 परिवारों के पास अपनी कार है. यानी देश के औसत से करीब तीन गुना ज्यादा. सर्वे के आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली में 19.4% परिवारों में कार है. जैसे-जैसे कारों की समस्या बढ़ रही है, वैसे-वैसे ट्रैफिक की समस्या भी बढ़ रही है.
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पर्यावरण पर लिखने वालीं सुनीता नारायण अपनी किताब 'कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंट्रेस्ट' में दिल्ली के बारे में दिलचस्प आंकड़ा देती हैं. वो बताती हैं कि दिल्ली के 21% क्षेत्रफल पर पहले ही सड़क बन चुकी है. इसके साथ ही वो ये भी बताती हैं कि दिल्ली के कुल रोड ट्रैफिक के सिर्फ 15% लोग कार से सफर करते हैं, लेकिन कुल रोड स्पेस का 90% क्षेत्रफल पर इन कारों का कब्जा है.
इसका नतीजा ये होता है कि बस, मोटर साइकल, रिक्शा, साइकल और पैदल चलने वालों के लिए सड़क पर बेहद कम जगह बचती है. इसके लिए साल दर साल सड़कें और हाईवे लेन बनती जा रहीं हैं, लेकिन कारों की संख्या इनसे काफी तेजी से बढ़ रही है. लिहाजा ट्रैफिक समस्या कम होने की बजाय बढ़ती जा रही है.
दिल्ली सरकार के 2021-22 के आर्थिक सर्वे के मुताबिक, राजधानी की सड़कों पर 2019-20 तक 1.18 करोड़ से ज्यादा गाड़ियां थीं. ये संख्या 2018-19 की तुलना में साढ़े 4 फीसदी ज्यादा है. 2018-19 तक दिल्ली की सड़कों पर 1.13 करोड़ गाड़ियां थीं.
राजधानी दिल्ली हर एक हजार लोगों पर भी गाड़ियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. दिल्ली में 2016-17 में हर एक हजार आबादी पर 556 गाड़ियां थीं. 2019-20 में ये आंकड़ा बढ़कर 643 गाड़ियों का हो गया. यानी चार साल में ही एक हजार आबादी पर 87 गाड़ियां बढ़ गईं.
दुनिया का 11वां सबसे कंजस्टेड शहर है दिल्ली
नीदरलैंड्स की एक कंपनी है TomTom. ये कंपनी हर साल ट्रैफिक पर एक इंडेक्स जारी करती है. इसके इंडेक्स के मुताबिक, पिछली साल सबसे ज्यादा कंजस्टेड शहरों में दिल्ली 11वें नंबर पर थी. यहां का कंजेशन लेवल 48% था. यानी, यहां पर आपका ट्रैवल टाइम 48% ज्यादा है.
इसे ऐसे समझिए कि आप किसी जगह पर पहुंचने में आपको 30 मिनट का समय लग रहा है. लेकिन दिल्ली में यही समय 30 मिनट की बजाय 44 मिनट में पूरा होगा. यानी, यहां इतना ट्रैफिक है कि जो रास्ता आधे घंटे में पूरा हो सकता है, उसी रास्ते को तय करने में दिल्ली में पौन घंटे से ज्यादा समय लगता है.
दिल्ली में मॉनसून आते ही कंजेशन लेवल भी बढ़ जाता है. पिछली साल सितंबर में कंजेशन लेवल 56% था. यानी, इस महीने 30 मिनट का सफर पूरा करने में 56% समय ज्यादा लगता है. अगर दिल्ली वाले शुक्रवार शाम को 8 बजे के बाद यात्रा करें तो हर साल 4 घंटे बचा सकते हैं.
दिल्ली में ट्रैफिक कितनी बड़ी समस्या, 5 प्वॉइंट में समझें
1. 2021 में दिल्ली का कंजेशन लेवल 48% रहा. 2020 में 47% था. यानी, 30 मिनट का सफर पूरा करने में 48% समय ज्यादा लगेगा.
2. सितंबर के महीने में सबसे ज्यादा कंजेशन. सितंबर 2021 में 56% कंजेशन लेवल रहा. 30 मिनट के सफर में 56% समय ज्यादा लगता है.
3. शुक्रवार शाम को 8 बजे के बाद यात्रा करते हैं, तो हर साल 4 घंटे का समय बचा सकते हैं. ये समय 30 मिनट की यात्रा पर बचेगा.
4. सुबह के समय 30 मिनट की यात्रा पूरी करने में 16 मिनट समय ज्यादा लगता है. शाम के समय 23 मिनट ज्यादा लगते हैं.
5. रश ऑवर में हर साल दिल्ली वाले 152 घंटे यानी 6 दिन 8 घंटे का समय बिता देते हैं. 2020 के मुकाबले 1 दिन 14 घंटे कम है.
तो फिर क्या उपाय है इसका?
दिल्ली में गाड़ियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. सड़क-परिवहन मंत्रालय के मुताबिक, मई 2022 तक दिल्ली में 1.35 करोड़ से ज्यादा गाड़ियां रजिस्टर्ड हैं. इस साल अब तक यहां करीब 2.30 लाख गाड़ियां रजिस्टर्ड हो चुकीं हैं.
ट्रैफिक की समस्या से निजात पाने के लिए हर साल सड़कें बन रहीं हैं, हाईवे के लेन बढ़ाए जा रहे हैं. लेकिन ये नाकाफी है. 1955 में अमेरिकी लेखक और इकोलॉजिस्ट लुईस ममफोर्ड ने अपनी किताब 'द सिटी इन हिस्ट्री' में लिखते हैं, 'ट्रैफिक की भीड़भाड़ को कम करने के लिए हाईवे लेन बनाना ठीक वैसे ही है, जैसे हम मोटापे को कम करने के लिए अपनी बेल्ट ढीली कर लें.'
अभी हो ये रहा है कि दिल्ली की सड़कों को कार के हिसाब से डिजाइन किया गया है, जबकि जरूरी ये है कि रोड ट्रैफिक को समावेशी और समान बनाया जाए.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली में सड़क हादसों में जान गंवाने वालों में 81% लोग पैदल चलने वाले, साइकल चलाने वाले, मोटरसाइकल सवार और साइकल रिक्शा वाले हैं. इसकी वजह ये है कि सड़कों की डिजाइनिंग और रोड ट्रैफिक एक समान नहीं है.
अगर रोड ट्रैफिक को नहीं सुधारा गया और डिजाइनिंग ठीक तरीके से नहीं की गई, तो आने वाले समय में न सिर्फ वायु प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण बढ़ेगा, बल्कि गर्मी भी बढ़ेगी. बहुत से विकसित देश अब सड़कों को पैदल चलने वालों और साइकल चलाने वालों को ध्यान में रखकर बनाया जा रहा है.
( रिपोर्टः अतुल कुमार पाण्डेय के इनपुट के साथ)