दिल्ली में विकास के नाम पर पेड़ों को काटने का काम शुरू हो गया है. कहीं आवासीय परिसर बनाने के नाम पर तो कहीं सड़कों के किनारे जर्जर हो चुके पेड़ों से उपजे खतरे के नाम पर. दिल्ली में वयस्क पेड़ों की कटाई का सिलसिला जारी है.
पेड़ों को काटने के मामले ने तब तूल पकड़ लिया जब साउथ दिल्ली के सरोजनी नगर में बहुमंजिला इमारतों को बनाने के लिए करीब 16500 पेड़ों को काटे जाने की ख़बर आई. इलाके के लोगों के साथ-साथ दिल्ली के कोने-कोने से आए लोगों और पर्यावरणविद ने सरोजनी नगर में इसके खिलाफ प्रदर्शन किया. जिससे यहां के पेड़ों की कटाई पर 2 जुलाई तक की रोक लगा दी गई है. लेकिन दिल्ली के दूसरे इलाकों में पेड़ों को काटने का सिलसिला जारी है.
मथुरा रोड पर काटे गए पेड़
दिल्ली के चिड़िया घर के सामने से गुजर रही मथुरा रोड इन दिनों उजाड़ हैं. यहां कभी सड़क के दोनों तरफ पेड़ों की घनी आबादी हुआ करती थी. यहां सड़क के बीचोबीच डिवाइडर पर भी 30 से 40 साल पुराने पेड़ों से ये सड़क गुलजार लगा करती थी. तपती धूप में यहां से गुजरने वाले राहगीरों को इन पेड़ों का बहुत सहारा था. लेकिन अब ये तस्वीर बदल गई है. सड़क किनारे मौजूद पेड़ों को बड़ी संख्या को काट दिया गया है.
इन पेड़ों की जर्जर अवस्था को इसका मुख्य कारण माना जा रहा है. दलील ये दी गई है तेज़ आंधी में इन पेड़ों के गुजरते वाहनों पर गिरने का खतरा था. किसी अनहोनी से बचने के लिए इन पेड़ों की बलि दे दी गई. यहां सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि आखिर इतने पुराने हरे भरे पेड़ों की जर्जर अवस्था के लिए जिम्मेदार कौन है?
यहां से गुजरने वाले राहगीरों से जब 'आजतक' ने बात की तो पता चला कि यहां मौजूद किसी न किसी पेड़ से कोई न कोई कहानी जुड़ी हुई है. जो अब बस इनके ख्यालों में ही सिमट कर रह जाएगी. दिल्ली के रहने वाले 35 वर्षीय रमन कुमार कहते है, 'जब मैं छोटा था तो अपने बड़े भाइयों के साथ अक्सर चिड़ियाघर घूमने आया करता था. तब इतनी आबादी नहीं हुआ करती थी. उन्होंने कहा कि यहां अभी जितनी हरियाली है उससे दोगुनी हुआ करती थी. यहां सड़क के किनारे एक नीम का पेड़ हुआ करता था जिसे अब काट दिया गया है. मैं अपने भाइयों के साथ उसी के नीचे बैठ कर घर वापसी के लिए वाहनों का इंतजार किया करता था, कभी-कभी तो हमने घंटों यहीं बिताए हैं लेकिन अब ना वो पेड़ हैं ना ही वो हरियाली.'