दिल्ली सरकार ने पहले ही पुलिस, केंद्र सरकार और न जाने कितनी एजेंसियों के साथ मोर्चा खोल रखा है. अब इस लिस्ट में एक नया नाम शुमार हो गया है और वो है दिल्ली यूनिवर्सिटी (डीयू) का.
डीयू के 28 कॉलेजों को दिल्ली सरकार फंड देती है और साथ ही गवर्निंग कमेटी में अपने लोग नियुक्त करती है. आम आदमी पार्टी सरकार की नई मुश्किल ये है कि डीयू ने बिना सरकारी नुमाइंदों के ही कॉलेजों में बहाली शुरू कर दी है. दिल्ली के शिक्षा मंत्री मनीष सिसौदिया के नाम दिल्ली यूनिवर्सिटी की एक चिट्ठी ने केजरीवाल सरकार और देश की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी में एक दिल्ली यूनिवर्सिटी के संबंधों में नई कड़वाहट घोल दी है.
दरअसल नया बवाल उन 28 कॉलेजों में प्रोफेसर और कर्मचारियों की भर्ती से जुड़ा है, जिन्हें दिल्ली सरकार पैसा देती है. मामला ये है कि हर कॉलेज की गवर्निंग कमेटी में सरकार की ओर से 5 सदस्य नियुक्त होते हैं, जिनके लिए केजरीवाल सरकार ने फिलहाल विज्ञापन निकाल रखा है. अरविंद केजरीवाल सरकार इस मसले पर कई बार अपनी स्थिति साफ कर चुकी है. सीएम अरविंद केजरीवाल का कहना है कि हमने कॉलेजों में ऐसे लोगों को लाने की कोशिश की है जो सियासी न हों.
अभी सरकारी नुमाइंदों की नियुक्ति भी नहीं हुई और सरकार का आरोप है कि कॉलेज अपनी तरफ से मनमनी कर नये प्रोफेसर और कर्मचारियों की नियुक्ति कर रहे हैं. सरकार को जैसे ही इस बात की जानकारी मिली तो खुद उच्च शिक्षा मंत्री मनीष सिसौदिया ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के वीसी दिनेश सिंह को चिट्ठी लिखी और कहा कि ये भर्तियां तब तक रोकी जाएं जब तक सरकारी नुमाइंदे नियुक्त नहीं होते.
लेकिन दिल्ली यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार की इस चिट्ठी ने मनीष सिसौदिया को दो टूक जवाब दे दिया कि नियुक्तियां नियमों के आधार पर हो रही हैं और गवर्निंग कमेटी की किसी भी मीटिंग के लिए महज कुल सदस्यों के महज एक तिहाई सदस्य ही चाहिए. अब दिल्ली सरकार तिलमिलाई हुई है और ये तक सोच रही है कि इन कॉलेजों के लिए जो 128 करोड़ के फंड का प्रावधान है उसे भी रोका जा सकता है.