दिल्ली यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई 2017 में पूरी करने वाले एक छात्र ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका लगाई कि साल 2020 में भी उसे डिग्री नहीं मिल पाई है. छात्र की याचिका पर सुनवाई करते हुए जब हाई कोर्ट ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से इस मामले में जवाब मांगा तो यूनिवर्सिटी का जवाब काफी हैरान करने वाला था.
यूनिवर्सिटी ने कोर्ट को बताया कि उनके पास क्वालिटी पेपर की कमी है. जो कंपनी उन्हें कागज उपलब्ध कराती थी उसके साथ प्रिंटिंग का कॉन्ट्रैक्ट खत्म हो गया है और फिलहाल कोरोना और 3 महीने चले लॉकडाउन के कारण नए ऑक्शन (नीलामी) के लिए लोग नहीं आ पा रहे हैं. इसी वजह से कागज की तंगी के चलते छात्रों को डिग्री नहीं दी जा रही है.
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हाई कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद भी इस छात्र ने याचिका लगाई थी कि उसको हाथ से लिखी हुई डिग्री ही दिल्ली यूनिवर्सिटी की तरफ से दी गई है. यानी अभी भी जो डिग्री दी गई है उसमें वॉटरमार्क और सिक्योरिटी फीचर नहीं हैं. ऐसी डिग्री विदेशों में दाखिला लेने या नौकरी के लिए मान्य नहीं होती है, इसलिए हाई कोर्ट ने यूनिवर्सिटी के वकील मोहिंदर रूपरेल को निर्देश दिया था कि अगर छात्र को कहीं हाथ से लिखी डिग्री के चलते दिक्कत होती है तो दिल्ली यूनिवर्सिटी उक्त संस्थान से संपर्क करेगी और डिग्री को लेकर सत्यापित करेगी.
इससे पहले 2018 में छात्र को इंटरनल डिग्री दे दी गई थी. लेकिन ये डिग्री अस्थायी होती है. छात्र ने कोर्ट को बताया कि किंग्स कॉलेज लंदन, ग्लासगो यूनिवर्सिटी समेत कई विदेशी यूनिवर्सिटीज ने दाखिला दिया, लेकिन डिग्री न देने के कारण वो वहां आगे पढ़ाई नहीं कर पाया.
हाई कोर्ट ने डिग्री की इस तरह की समस्या को लेकर दिल्ली यूनिवर्सिटी को गाइडलाइंस बनाने के आदेश दिए हैं. कोर्ट ने यूनिवर्सिटी को कहा है कि किसी भी छात्र को डिग्री मिलने में कितना समय लगेगा इसकी एक समय सीमा तय की जाए.
इसके अलावा कोर्ट ने छात्रों को डिग्री न मिलने से जुड़ी किसी भी समस्या को हल करने के लिए दिल्ली यूनिवर्सिटी को हेल्पलाइन बनाने को कहा है. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि आने वाले दिनों में यूनिवर्सिटी एक ऐसा सिस्टम बनाये कि रिजल्ट आने के कितने दिन बाद कॉन्वोकेशन होगा, कितने दिन बाद डिग्री मिलेगी.
दिल्ली यूनिवर्सिटी के कौन कौन ऑफिसर डिग्री जारी करने के लिए जिम्मेदार होंगे उनको लेकर भी वेबसाइट पर जानकारी दी जाए, जिससे किसी समस्या के आने पर तुरंत छात्र निदान के लिए ऑफिसर को संपर्क कर सके. हाई कोर्ट ने यूनिवर्सिटी को निर्देश दिया है कि कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन कराने के लिए यूनिवर्सिटी 4 हफ्ते के भीतर एक हलफनामा भी दाखिल करे. हाई कोर्ट इस मामले में अगस्त में फिर सुनवाई करेगा.