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आर्यों पर अध्ययन करेगा DU का संस्कृत विभाग, संघ की थ्योरी पर आधारित इतिहास लिखने की तैयारी!

दिल्‍ली यूनिवर्सिटी का संस्‍कृत विभाग इतिहास के पन्‍नों में अमूलचूल बदलाव की तैयारी में है. संस्कृत विभाग ने एक प्रोजेक्‍ट का ऐलान किया है, जिसके तहत आर्यों के भारत से संबंध पर नए सिरे से अध्ययन किया जाएगा. यह इसलिए भी दिलचस्‍प है कि राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ (RSS) आर्यों को ही भारत का असल नागरिक मानता है और हाल के दिनों में इतिहास को नए सिरे से लिखे जाने की जरूरत पर जोर दे चुका है.

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दिल्‍ली यूनिवर्सिटी का संस्‍कृत विभाग इतिहास के पन्‍नों में अमूलचूल बदलाव की तैयारी में है. संस्कृत विभाग ने एक प्रोजेक्‍ट का ऐलान किया है, जिसके तहत आर्यों के भारत से संबंध पर नए सिरे से अध्ययन किया जाएगा. यह इसलिए भी दिलचस्‍प है कि राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ (RSS) आर्यों को ही भारत का असल नागरिक मानता है और हाल के दिनों में इतिहास को नए सिरे से लिखे जाने की जरूरत पर जोर दे चुका है.

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दरअसल, इतिहास की अधि‍कतर किताबों में यही लिखा है कि एक वक्त मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसी जगहों पर सिंधु घाटी सभ्यता फूल-फल रही थी. इसके बाद करीब 3,500 साल पहले जब आर्यों के कबीले पहाड़ों को पार कर भारत आए तभी सिंधु घाटी की सभ्यता का पतन शुरू हो गया. जबकि संघ परिवार और सहयोगी संगठन कहते रहे हैं कि यह बात यूरोपीय सोच के प्रभाव में आकर लिखी गई है.

संघ और सहयोगी संगठनों का मत है कि आर्य बाहर से नहीं आएं बल्कि वे भारत में ही रहते थे और यहां से दूसरी जगहों पर गए. आर्यों के बाहर से भारत में आने की बात जर्मन भाषा और संस्कृत के विद्वान मैक्समूलर ने दी थी.

शुरू हुआ प्रोजेक्‍ट पर काम
एक अंग्रेजी अखबार में छपी खबर के मुताबिक, संस्कृत विभाग ने पिछले हफ्ते गुजरात के गवर्नर ओपी कोहली और वीसी दिनेश सिंह की मौजूदगी में एक प्रोजेक्‍ट की घोषणा की, जो अध्‍ययन के आधार पर तर्क जुटाएगी और आर्यों के भारत से संबंध पर प्रकाश डालेगी. डीयू के संस्कृत विभाग के अध्यक्ष रमेश भारद्वाज कहते हैं, 'जहां तक इंडो-आर्यन के मूल स्थान की बात है तो इस बारे में विचारकों के दो खेमे हैं. संस्कृत विभाग ने प्राचीन अभिलेखों और पुस्तकों पर शोध किया है. पुरातात्विक और नए वैज्ञानिक सबूतों के साथ अपने शोध के जरिए हम यह साबित करना चाहते हैं कि भारतीय संस्कृति विदेश से नहीं आई.' उन्होंने आगे कहा कि आर्य भारतीय उप-महाद्वीप में रहते थे और यहीं से दूसरी जगहों पर गए.

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संस्कृत में शोध कार्य शुरू होने के 60 वर्ष पूरे होने के अवसर पर शुरू हुए इस प्रोजेक्‍ट के संबंध में विभाग ऐतिहासिक सबूत जुटाने के लिए भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद् के अध्यक्ष वाईएस राव से जल्द संपर्क करेगा. राव को हाल ही मोदी सरकार ने यह पद दिया था. राव खुद विवादों में रहे हैं. उन्होंने एक बार जाति प्रथा का समर्थन किया था और भारतीय सामाजिक समस्याओं का ठीकरा मुस्लिम शासन काल के सिर माथे फोड़ा था.

जनवरी से शुरू होगी वर्कशॉप
भारद्वाज कहते हैं कि प्राचीन संस्कृत के शब्दों और पश्चिमी देशों की प्राचीन भाषाओं के शब्दों में समानता दिखती है और यह विदेश की संस्कृतियों पर भारत के प्रभाव का एक सबूत है. उन्होंने सिंधु घाटी सभ्यता और इराक में दजला और फरात नदियों के बीच मेसोपोटामिया की सभ्यता के बीच समानता का भी हवाला दिया. भारद्वाज ने कहा, 'जब इतनी समानताएं हैं तो हम अपने बच्चों को यूरोपीय सिद्धांत क्यों पढ़ाएं?' संस्कृत विभाग इस प्रोजेक्ट के लिए जनवरी से वर्कशॉप का आयोजन करेगा.

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