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दिल्ली में गर्मी बढ़ने के साथ ही बढ़ी पानी की किल्लत

दिल्ली में पानी की किल्लत बढ़ने लगी है. तमाम इलाकों में सप्लाई दुरुस्त नहीं है. ऐसे में लोग पानी के लिए सड़क पर उतरने को मजबूर हैं.

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पारा चढ़ने के साथ ही दिल्ली में पानी की किल्लत बढ़ने लगी है. तमाम इलाकों में जल बोर्ड की सप्लाई ठीक नहीं है. इसकी वजह से लोग पानी के लिए सड़क पर उतरने को मजबूर हैं.

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हर बार गर्मियां आते ही दिल्ली में पानी को लेकर खतरे की घंटी बजने लगती है. पानी के लिए लोग परेशान हो उठते हैं. परेशानी की वजह है जलबोर्ड, जो यहां के लोगों की जरूरतें पूरी करने में नाकाम रहा है.

एक आंकड़े के मुताबिक, दिल्ली में रोजाना 495 करोड़ लीटर पानी की जरूरत है, जबकि पानी की सप्लाई 378 करोड़ लीटर है. एक तो कमी, ऊपर से 40 फीसदी पानी लीकेज में बर्बाद हो जाता है, जो करीब 151 करोड़ 20 लाख लीटर बनता है. इस समय दिल्ली में मांग और पूर्ति का अंतर करीब 211 करोड़ 95 लाख लीटर है. दिल्ली वालों की जरूरत के हिसाब से करीब 43 फीसदी कम पानी की सप्लाई होती है.

दिल्ली में पानी की किल्लत क्यों है
सरकार ने बवाना, ओखला और द्वारका में नए प्लांट बनवाए थे. करोड़ों की लागत से बने ये प्लांट बिलकुल तैयार हैं, लेकिन दिल्ली फिर भी प्यासी है. इसका कारण यह है कि हरियाणा से पानी नहीं मिलने की वजह से ये प्लांट बंद पड़े हैं.

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दरअसल, दिल्ली को साल 2006 से ही मूनक नहर से पानी मिलना था, लेकिन नहर तैयार नहीं होने से पानी नहीं मिल सका. हरियाणा नहर के लिए दिल्ली से 139 करोड़ रुपये और मांग रहा है. अगर ये तीनों प्लांट वक्त पर चालू हो जाते तो दिल्ली को 36 करोड़ लीटर पानी और मिल पाता.

यदि, गेम्स के लिए बना वाटर ट्रीटमेंट प्लांट बंद नहीं होता तो दिल्ली के कई इलाकों में पानी की समस्या हल हो सकती थी. इस प्लांट से दिल्ली को 45 लाख लीटर पानी और मिलता.

चंद्रावल रिसाइकलिंग प्लांट भी नहीं चालू हुआ. इससे 4.5 करोड़ लीटर पानी मिलना था. इसके अलावा ग्राउंड वाटर को रिचार्ज करने के लिए वाटर हारवेस्टिंग प्लान बनाया गया था...लेकिन ये प्लान अबतक तो फेल ही साबित हुआ है.

साफ है कि दिल्ली के पास भरपूर पानी होने के बावजूद वो प्यासी है, क्योंकि प्रशासनिक लापरवाही के चलते योजनाएं परवान नहीं चढ़ीं.

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