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दिल्ली: गोदाम में बंद स्कूल के डेस्क, भविष्य के सितारे जमीं पर

दिल्ली के खिचड़ीपुर के गोदाम में पिछले दो महीने से जहां देखो वहां स्कूल के डेस्क भरे पड़े हैं. वहीं दूसरी तरफ कई सरकारी स्कूल ऐसे भी हैं जहां बच्चे जमीन पर बैठकर पढ़ने को मजबूर हैं. जिन स्कूलों में डेस्क हैं तो वो भी डेस्क के नाम पर महज लकड़ी के टुकड़े हैं.

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गोदाम में रखे डेस्क
गोदाम में रखे डेस्क

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स्कूल देश के भविष्य को तैयार करते हैं. लेकिन जब देश के भविष्य की तैयारी के हालात ही बदहाल हों तो ऐसे में बुलंद होते भारत की बदहाल तस्वीर की कल्पना कीजिए. ऐसी बदहाली तब जब संसाधन हैं, मगर प्रशासन की मंशा नहीं. ऐसा ही एक मामला सामने आया है जहां डेस्क गोदाम में रखे हैं और स्कूल में बच्चे जमीन पर बैठते हैं.

दिल्ली के खिचड़ीपुर के गोदाम में पिछले दो महीने से जहां देखो वहां स्कूल के डेस्क भरे पड़े हैं. वहीं दूसरी तरफ कई सरकारी स्कूल ऐसे भी हैं जहां बच्चे जमीन पर बैठकर पढ़ने को मजबूर हैं. जिन स्कूलों में डेस्क हैं तो वो भी डेस्क के नाम पर महज लकड़ी के टुकड़े हैं.

खिचड़ीपुर के एक गोदाम में पिछले 2 महीने से सरकारी डेस्क रखे हुए हैं. 2 इमारतों में कमरे के हर कोने में डेस्क हैं. जिनपर धूल-मिट्टी चढ़ी हुई है. ये धूल मिट्टी हमारी व्यवस्था की लापरवाही का उदाहरण है.

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गोदाम में डेस्क हैं. इन्हें जहां होना चाहिए वहां नहीं हैं. यानी बच्चे देश का भविष्य जमीन पर बैठकर सपनों की दुनिया गढ़ रहे हैं क्योंकि लापरवाही की हकीकत पर लेटलतीफी की धूल जम चुकी है. दिल्ली के निगम में विपक्षी कांग्रेस पार्षद रेखा रानी कई बार सदन में इस मुद्दे को उठा चुकी हैं, मुद्दा उठा लेकिन डेस्क नहीं उठे.

निगम के स्कूलों की बदहाली पर जब सवाल मेयर साहिबा सत्या शर्मा से तलब किया गया तो वो कहने लगीं कि हां हमें पता है. जल्द डेस्क पहुंचाए जाएंगे. जाहिर है 'स्कूल चले हम....' नारे को बैनर पोस्टर पर लिखने से कुछ नहीं होगा. अगर इस नारे को हकीकत में बदलते देखना है तो प्रशासन को लेटलतीफी की दहलीज को पार करके उन स्कूलों की हालत को देखना होगा जहां डेस्क, लाइट और जवाबदेही नहीं है.

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