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32 साल, वादे बेशुमार, प्लान दर प्लान, लेकिन... एक्शन प्लान से भी साफ क्यों नहीं हो पाई यमुना?

यमुना को लेकर पिछले 31 सालों से लगभग हर सरकार राजनीति कर रही है. साफ-सफाई के नाम पर कई हजार करोड़ रुपए बहा दिए गए. इसके बावजूद ना नदी साफ हुई और ना पानी की स्थिति में कोई सुधार आया. बल्कि गंदे पानी से यमुना की स्थिति खराब ही हुई है.

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दिल्ली के सीवर यमुना में जाकर मिल जाते हैं और पानी प्रदूषित कर देते हैं.
दिल्ली के सीवर यमुना में जाकर मिल जाते हैं और पानी प्रदूषित कर देते हैं.

दिल्ली में चुनाव हो गए हैं और यमुना नदी की सफाई सिर्फ मुद्दा ही बना रह गया. यमुना की सेहत ठीक नहीं है. यह जगजाहिर है. अब तक राजनीतिक दल यमुना को सत्ता पाने की सीढ़ी बनाते आए हैं, लेकिन मुड़कर नहीं देखते हैं. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की जलापूर्ति का 70 फीसदी से ज्यादा हिस्सा इसी यमुना नदी से पूरा होता है. कहने को तो 32 साल पहले यमुना एक्शन प्लान भी आया और इसे तीन फेज में चलाया गया, लेकिन सफाई सिफर ही रही. 7 पॉइंट्स में समझिए Yamuna Action Plan का क्या टारगेट था? 

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देश में यमुना नदी 1376 किमी का सफर तय करती है. यमुनोत्री से बहते हुए यह नदी संगम में जाकर मिलती है. इस बीच, एक पड़ाव दिल्ली का भी आता है. यमुना नदी पल्ला गांव से दिल्ली में दाखिल होती है और जैतपुर तक कुल 52 किलोमीटर की दूरी तय करती है. यानी सबसे कम 0.4 फीसदी सफर दिल्ली में तय करती है. पल्ला से वजीराबाद तक 26 किमी के दायरे में कोई नाला नहीं आता है. यानी यहां तक यमुना में सफाई है. लेकिन जब यह नदी वजीराबाद से आगे बढ़ती है तो इसकी गंदगी डराने लगती है. नजफगढ़ से लेकर ओखला तक 26 नाले यमुना नदी में गिरते हैं. नजफगढ़ ड्रेन (साहिबी नदी) में दिल्ली के 10 सीवर ट्रीटमेंट प्लांट से ट्रीटमेंट किया गया पानी आकर मिलता है.

यमुना की सफाई की राह की मुश्किलें... 

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जो हमारे घरों निकलने वाला पानी होता है, वो सीवर के जरिए पंपिंग हाउस तक जाता है. इस पानी को सीवर ट्रीटमेंट प्लांट तक पहुंचाया जाता है. ट्रीटमेंट के बाद यह पानी नाले में जाता है और फिर यमुना नदी में जाकर मिल जाता है. एक्सपर्ट के मुताबिक, दिल्ली में हर रोज 800 MGD (मिलियन गैलन पर डे) सीवर जेनरेट होता है. साधारण भाषा में कहें तो 350 करोड़ लीटर सीवेज जेनरेट होता है. अगर यह सारा पानी ट्रीट होता है और फिर यमुना नदी में डाला जाता तो बहुत हद तक नुकसान नहीं पहुंचाता. 

हालात यह हैं कि यमुना आज देश की सबसे प्रदूषित नदियों में शामिल है और दिल्ली में यह नाला बनकर बह रही है. झाग की मोटी परत फैल जाती है. नदी में ऑक्सीजन नाम मात्र की भी नहीं रह गई है. इस नदी में दिल्ली का 90% घरेलू वेस्ट वॉटर गिरता है. 

31 साल में सिर्फ राजनीति हुई

यमुना को लेकर पिछले 31 सालों से लगभग हर सरकार राजनीति कर रही है. साफ-सफाई के नाम पर कई हजार करोड़ रुपए बहा दिए गए. इसके बावजूद ना नदी साफ हुई और ना पानी की स्थिति में कोई सुधार आया. बल्कि गंदे पानी से यमुना की स्थिति खराब ही हुई है. स्थानीय लोग कहते हैं कि साल 1984 से पहले तक दिल्ली में यमुना नदी साफ और स्वच्छ हुआ करती थी, लेकिन उसके बाद गंदगी फैलनी शुरू हो गई और फिर आज ये हालात बन गए हैं कि लोग आचमन भी नहीं करना चाहते हैं.

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1. कब आया यमुना एक्शन प्लान?

यमुना नदी की सफाई को लेकर पहला यमुना एक्शन प्लान 1993 में आया. उसके बाद 2003 में दूसरा एक्शन प्लान आया. तीसरा फेज 2012 में आया. इसका मुख्य उद्देश्य यमुना नदी को प्रदूषण मुक्त बनाना था. भारत और जापान सरकार के बीच द्विपक्षीय प्रोजेक्ट पर 1993 में मुहर लगी. जापान सरकार ने जापान बैंक फॉर इंटरनेशनल कोऑपरेशन (JBIC) के जरिए इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए वित्तीय सहायता दी, जिसे राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय, पर्यावरण और वन मंत्रालय और भारत सरकार द्वारा क्रियान्वित किया जा रहा है. 

2. क्या तैयारी थी?

नए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के निर्माण पर जोर दिया गया. पुराने प्लांट की क्षमता के विस्तार पर काम का दावा हुआ और विशेष रूप से दिल्ली और आगरा में ट्रीटमेंट कैपिसिटी बढ़ाने के लिए सीवर बिछाने और उनका पुनर्वास किए जाने की बात कही गई. प्लान था कि इन कार्यों से स्वच्छता की स्थिति में सुधार होगा. इसके बावजूद यमुना पर कोई असर नहीं पड़ा. जानकार कहते हैं कि यमुना में 200 से ज्यादा ड्रेनेज का पानी पहुंच रहा है. पर्यावरण एक्सपर्ट कहते हैं कि यमुना में झाग की मोटी परत देखी जाती है. ये झाग नालियों और औद्योगिक कचरे से निकलने वाले अमोनिया और फॉस्फेट जैसे प्रदूषकों के कारण होता है. इससे श्वसन और त्वचा संबंधी कई गंभीर बीमारियां फैल सकती हैं.

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सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के जरिए यमुना में गिरने वाले गंदे पानी को साफ करके छोड़ना था. नालों को ट्रीट या डायवर्ट किया जाना था, ताकि नदी में गिरने वाले 22 बड़े नालों (मुख्य रूप से दिल्ली में) को रोका जाए. औद्योगिक कचरे को नियंत्रित किया जाना था ताकि फैक्ट्रियों से निकलने वाले जहरीले केमिकल और गंदगी को ट्रीट करके ही डिस्चार्ज किया जा सके. सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के जरिए नदी में कूड़ा-कचरा और प्लास्टिक जाने से रोकना था. बायोडाइवर्सिटी बहाल के जरिए नदी किनारे पेड़-पौधे लगाने और जलीय जीवन को सुरक्षित रखना था. सामुदायिक भागीदारी के जरिए स्थानीय लोगों को जागरूक करने और नदी को गंदा करने से रोकने पर जोर दिया जाना था. नदी में जल प्रवाह बनाए रखने के लिए पहाड़ों से आने वाले पानी को रोके बिना बहने देना था, ताकि नदी में हमेशा साफ पानी रहे.

3. कैसा रहा यमुना एक्शन प्लान का सफर

यमुना सफाई को लेकर पहला चरण 1993 से 2003 तक चला. पहले चरण में शुरुआती सफाई प्रयासों पर फोकस रखा गया. 2002 तक लगभग 12 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाए गए. औद्योगिक कचरे पर आंशिक नियंत्रण किया गया. दूसरा चरण 2003 से 2013 तक चला. दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा में नदी सफाई पर ध्यान दिया गया. सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाए गए, लेकिन नाले और सीवेज का बहाव जारी रहा. यमुना में साफ पानी के प्रवाह को बनाए रखने में असफलता हाथ लगी. तीसरा चरण 2013 से 2024 तक चला. केंद्र सरकार की 'नमामि गंगे योजना' के तहत इसे आगे बढ़ाया गया. दिल्ली में 10,000 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च हुए, लेकिन यमुना अब भी प्रदूषित है. 2024 में भी नदी में 80% गंदा पानी दिल्ली से ही आता है.

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4. यमुना एक्शन प्लान का क्या हुआ?

32 साल बाद भी यमुना एक्शन प्लान के नतीजे मनमुताबिक नहीं मिले. यमुना में अब भी 90% प्रदूषण दिल्ली से आता है. 22 में से सिर्फ 6 नाले ट्रीट किए गए, बाकी अब भी नदी में गिरते हैं. सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की क्षमता 3,800 MLD (मिलियन लीटर प्रति दिन) है, लेकिन दिल्ली 6,000 MLD से ज्यादा गंदा पानी छोड़ती है. औद्योगिक और घरेलू कचरा रोकने में नाकामी हाथ लगी. एक्शन प्लान का टारगेट यमुना को साफ और स्वच्छ बनाना था, लेकिन 32 साल बाद भी यमुना दिल्ली में गंदी पड़ी है. जानकार कहते हैं कि जब तक सरकार, उद्योग और जनता मिलकर जिम्मेदारी नहीं लेंगे, यह समस्या बनी रहेगी.

5. यमुना सफाई में क्या बड़ी मुश्किलें

- अधिक गंदा पानी और सीवेज: दिल्ली, नोएडा और अन्य शहरों का सीवेज बिना ट्रीटमेंट के नदी में गिरता है.
- औद्योगिक कचरा: केमिकल फैक्ट्रियों से भारी मात्रा में जहरीला कचरा यमुना में छोड़ा जाता है.
- अवैध अतिक्रमण और अर्बनाइजेशन: नदी के किनारे पर बेतरतीब निर्माण और कूड़ा डंपिंग से प्रदूषण बढ़ा है.
- नाले और ड्रेनेज सिस्टम की खराब स्थिति: यमुना में गिरने वाले 22 बड़े नालों का ट्रीटमेंट सही तरीके से नहीं हो रहा है.
- सरकारी विभागों में तालमेल की कमी: सरकारें और स्थानीय एजेंसियां मिलकर प्रभावी काम नहीं कर पा रही हैं.
- कम्युनिटी अवेयरनेस की कमी: लोग नदी में पूजा सामग्री, प्लास्टिक और कचरा डालते रहते हैं.
- क्लाइमेट चेंज और जल प्रवाह की समस्या: बरसात के अलावा सालभर नदी में साफ पानी का प्रवाह नहीं रहता है.

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6. सरकारों ने क्या एक्शन प्लान बनाए?

दिल्ली की सरकार ने 2025 तक यमुना को साफ करने का लक्ष्य रखा था और दावा किया था कि 5 पॉइंट का एक्शन प्लान यमुना को साफ करने में मदद करेगा. हालांकि, यमुना आज भी गंदी ही है. दिल्ली सरकार का कहना था कि नजफगढ़, सप्लीमेंट्री और शाहदरा ड्रेन में 9-10 अलग-अलग जगहों पर वेस्टवॉटर ट्रीटमेंट्स जोन बनाए जाएंगे. इन जोन में ड्रेन की सफाई के लिए इन-सीटू ट्रीटमेंट विधि के साथ-साथ फ्लोटिंग बूम, वियर्स (पानी रोकने के लिये छोटे बांध), एरिएशन डिवाइसिज, फ्लोटिंग वैटलेंड लगाए जाएंगे. इसके अलावा वेस्टवॉटर में मौजूद फॉस्फेट को कम करने के लिए केमिकल डोजिंग की जाएगी. जोन में एरिएशन डिवाइस लगाए जाएंगे, जिससे पानी के अंदर एरिएशन बढ़ेगी. पानी में ऑक्सीजन घुलेगा और पानी को और साफ कर देगा. इस तरह यह पानी प्राकृतिक तरीके से साफ होते हुए यमुना तक पहुंचेंगे.

7. सफाई कैसे हो? एक्सपर्ट क्या कहते हैं?

पर्यावरणविदों का कहना है कि बेहतर कचरा प्रबंधन और उद्योगों से निकलने वाले कचरे के निपटान के लिए सख्त नियमों की जरूरत है. विशेषकर बारिश और त्योहारों के मौसम जैसे उच्च प्रदूषण के समय में जरूरी कदम उठाए जाने चाहिए. इसके अलावा, सीवेज का ट्रीटमेंट किया गया पानी ही यमुना में पहुंचना चाहिए. एक्सपर्ट कहते हैं कि अनट्रीटेड सीवेज यमुना को दूषित कर रहा है. गंदा पानी सर्फेक्टेंट से भरा होता है और ये केमिकल आमतौर पर डिटर्जेंट और औद्योगिक उत्सर्जन में पाए जाते हैं. सर्फेक्टेंट में पानी के सतही तनाव को कम करने का अनूठा गुण होता है, जो झाग बनने में मदद करता है. 

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