फरवरी 2016 में जेएनयू में कथित देश विरोधी नारे लगाए जाने के बाद देश भर में राष्ट्रवाद पर चर्चा छिड़ गई. घटना के बाद उस समय जेएनयू के छात्र नेता कन्हैया कुमार को राष्ट्रद्रोह की धारा में गिरफ्तार किया गया. घटनाक्रम चलता रहा और आज पूरा एक साल बीतने के बाद भी जेएनयू प्रकरण मे चार्जशीट दाखिल नहीं हो पाई.
आजतक द्वारा जेएनयू में लगाए गए नारों की वॉयस सैंपल की फॉरेंसिक पड़ताल में पता चला है कि कन्हैया की आवाज उन नारों में मौजूद नहीं है, लेकिन उमर खालिद और अनिर्बान की आवाज मौजूद है. हालांकि जेएनयू कैंपस के चप्पे-चप्पे की आजतक की पड़ताल से यह भी पता चला है कि वहां अब भी कई जगह ऐसे विवादास्पद पोस्टर लगे हैं, जिन्हें देश विरोधी माना जा सकता है.
इस साल मामला उठा है दिल्ली विश्वविद्यालय में जहां करीब 20 साल की गुरमेहर कौर के एक सवाल ने पूरे सिस्टम को हिला कर रख दिया है. लेकिन एबीवीपी का आरोप है कि डीयू में भी देश विरोधी नारे लगाए गए. इन्हीं आरोपों के बीच डीयू के तार जेएनयू से जोड़े जाने लगे क्योंकि डीयू का विवाद उठा ही था जेएनयू के छात्र और जेएनयू में देश विरोधी नारों के आरोपी उमर खालिद को बुलाए जाने को लेकर.
तो आखिर ऐसा क्या है जेएनयू में जिसकी वजह से देश का एक सबसे बेहतरीन और उच्च शिक्षा संस्थान विवादों का केंद्र बन गया है? आजतक ने पूरा दिन जेएनयू कैंपस में बताया और चप्पे-चप्पे को छानकर पता लगाया उस एक्स फैक्टर का, जिसकी वजह से जेएनयू पर उंगलियां उठती हैं. जेएनयू कैंपस में घूमने पर जहां कई पोस्टर छात्रों के वाजिब अधिकारों के लिए मिलते हैं तो कई पोस्टर ऐसे हैं जो विवाद की जड़ हैं.
फ्रीडम स्क्वायर पर पोस्टर वार
जेएनयू एडमिन ब्लॉक जिसे फ्रीडम स्क्वाॉयर के नाम से जाना जाता हैं, वहां रोहित वेमुला की तस्वीर है, तो साथ में वह पोस्टर भी हैं जो कहते हैं कि "फरवरी 2016 में हम लड़े ओर आगे भी लड़ेंगे.'
कैंपस यात्रा में आगे हमारा पड़ाव था- स्कूल ऑफ सोशल साइंस और वहां पर कुछ पोस्टर ऐसे भी मिले जो विवादास्पद थे. जहां एक पोस्टर में फांसी की सजा रोकने की मांग थी, तो एक दूसरे पोस्टर में गुजरात और मुजफ्फरनगर दंगों के लिए आरएसएस और बीजेपी को जिम्मेदार बताते हुए हमला बोला गया है. अभिव्यक्ति की आजादी की मांग के बीच छात्र राजनीति का ये चेहरा और वो भी विश्वविद्यालय के भीतर, एक सवाल जरूर खड़ा करता है.
इसी ब्लॉक में आगे हमें एबीवीपी के वो पोस्टर दिखे, जो तमाम आतंकी संगठनों को एक बताते हैं, तो दूसरे गुट BASO के पोस्टर में 50 साल के नक्सलबाड़ी आंदोलन की बात कहते हुए लिखा गया है कि नक्सलबाड़ी आंदोलन कभी खत्म नहीं होगा. इस पोस्टर को नक्सलबाड़ी आंदोलन के समर्थन में लगाया गया है. BASO वही संगठन है जिससे उमर खालिद जुडे़ हैं.
कश्मीर के लिए आजादी वाले पोस्टर
स्कूल ऑफ सोशल साइंस में ही हमें वो तस्वीर दिखी जो जेएनयू को विवादों के घेरे में खड़ा करती है. इस पोस्टर पर लिखा है- 'कश्मीर के लिए आजादी.' यह वही विवादास्पद नारा है जो फरवरी 2016 में जेएनयू में गूंजा था और हाल ही में रामजस कॉलेज में. पोस्टर पर साफ-साफ लिखा है, कश्मीर के लिए आजादी और फिलिस्तीन की आजादी, जिसे लगाया है डेमोक्रेटिक स्टूडेंट यूनियन (डीएसयू) ने.
वामपंथी छात्र गुट एसएफआई की नेता दीप्शिता कहती हैं कि ये उन छात्रों की अभिव्यक्ति की आजादी है जो कश्मीर की आजादी की वकालत करते हैं, लेकिन जरूरी नहीं की पूरा जेएनयू इसकी हिमायत करे. दीप्शिता का कहना है कि एक बड़ा गुट है जो यह मानता है कि कश्मीर से सेना हटे, लेकिन भारत से कश्मीर की आजादी कोई नहीं मांगता. हालांकि, जेएनयू में लगा ये पोस्टर एसएफआई के इस दावे को नकारता है.
इस विवादास्पद पोस्टर से पता चलता है कि आखिर क्यों जेएनयू में कथित देश विरोधी नारे लगते हैं और क्यों जेएनयू पर सवाल उठते हैं. डीएसयू वहीं संगठन है जिससे उमर खालिद और अनिर्बान जुड़े थे, जो जेएनयू नारेबाजी मामले में आरोपी भी हैं. हालांकि दोनों साल 2015 के अंत में ही डीएसयू से इस्तीफा दे दिया था.
अधिकारों और देश के खिलाफ पोस्टर और नारों के विवाद पर बोलते हुए जेएनयू के छात्र संदीप और महेश कहते हैं कि हर वह चीज विवादास्पद लगती है जो किसी के खिलाफ हो. दोनों का मानना है कि जेएनयू में हर बात पर चर्चा होती है. कश्मीर पर भी चर्चा होती है, लेकिन कश्मीर की भारत से आजादी पर उनकी राय पोस्टर की तरफ साफ नहीं है. संदीप का कहना है कश्मीर में लोगों के अधिकारों पर बात होनी चाहिए.
वहीं दूसरे छात्र गुट एबीवीपी का दावा है कि जेएनयू में कई बार ऐसी गतिविधियां हुई हैं जो आपत्तिजनक हैं और देश के खिलाफ हैं. तमाम आरोपों और दावों के बीच जेएनयू के से विवादास्पद पोस्टर ही वे बड़ी वजह हैं, जो हर बार विवादों को जन्म देते हैं.
हालांकि आजतक की खबर के बाद जेएनयू प्रशासन ने पोस्टर हटाने के आदेश दे दिए हैं.