एम्स की एक स्टडी में खुलासा हुआ है कि ऑटिज्म के शिकार बच्चों के ट्रीटमेंट में घरवालों पर कई गैर जरूरी टेस्ट थोपे जा रहे हैं. इनमें हैवी मैटल से लेकर विटामिन और एलर्जी के टेस्ट भी शामिल हैं.
एम्स के मुताबिक ऑटिज्म एक मानसिक विकार है और यह टेस्ट किसी भी तरह से इस बीमारी के इलाज में उपयोगी नहीं हैं. ऑटिज्म के शिकार बच्चों की अपनी ही दुनिया होती है. इनके लिए एक नॉर्मल जिंदगी की चाहत घरवालों को अस्पताल तक खींच लाती है. एम्स की एक स्डटी के मुताबिक इन बच्चों के इलाज के लिए कई तरह के हैवी मैटल टेस्ट करवाए जा रहे हैं जिनका इस बीमारी से कोई लेना देना नहीं है.
एम्स की यह स्टडी तीन से 12 साल के बच्चों पर की गई है. स्टडी के मुताबिक मरकरी, जिंक, आरसनिक और कैडमियम जैसे हैवी मैटल का ऑटिज्म से कोई संबंध नहीं है. ए म्स में चाइल्ड न्यूरोलाजिस्ट डॉ. शेफाली गुलाटी कहती हैं कि जिन बच्चों के पैरेंट्स हैवी मैटल के लगातार संपर्क में रहे हैं सिर्फ उन्हीं बच्चों के ट्रीटमेंट में हैवी मैटल टेस्ट की सलाह दी जाती है, जबकि हकीकत यह है कि आटिज्म के ट्रीटमेंट में क्लीनिकल थैरपी फायदेमंद है ना कि इस तरह के टेस्ट.