कोरोना संकट के बीच केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार के बीच एक और विवाद शुरू हो गया है. अरविंद केजरीवाल सरकार की महत्वाकांक्षी घर-घर राशन योजना पर केंद्र की ओर से रोड़ा अटका दिया गया है. दिल्ली सरकार का आरोप है कि केंद्र ने उनकी स्कीम को मंजूरी नहीं दी. जबकि बीजेपी का कहना है कि ऐसी स्कीम से भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने की कोशिश है.
दिल्ली सरकार की स्कीम पर बवाल
दिल्ली सरकार द्वारा एक स्कीम का ऐलान किया गया, जिसके तहत राशनकार्ड धारकों को उनके घर पर ही उनका राशन मिल जाएगा. सरकार की ओर से मिलने वाली गेहूं, चावल, चीनी आदि समान की हर महीने घर पर ही डिलीवरी की बात कही गई. जिस तरह घर पर सिलेंडर पहुंचता है, उसी तरह SMS की मदद से राशन पहुंचाने की बात कही गई.
शुरुआत में इस योजना के नाम को लेकर बवाल हुआ. केंद्र ने पहले कहा था कि मुफ्त राशन केंद्र सरकार के कानून के तहत दिया जा रहा है, ऐसे में मुख्यमंत्री के नाम से योजना नहीं हो सकती है. क्योंकि ये पूर्ण रूप से राज्य की स्कीम नहीं है. बाद में दिल्ली सरकार ने इसका नाम बदलने की बात कही, हालांकि अभी फिर केंद्र ने मंजूरी देने से इनकार किया है.
बीजेपी की ओर से इस स्कीम को भ्रष्टाचार वाली स्कीम बताया गया. बीजेपी ने आरोप लगाया कि दिल्ली सरकार इसके जरिए बड़ा घोटाला करने वाली थी, जिसका नुकसान आम लोगों को उठाना पड़ता.
अन्य किन राज्यों में है ऐसी सुविधा?
देश में अभी ऐसी सुविधा कम ही है, जहां लोगों के घर पर राशन पहुंचाया जाता है. आंध्र प्रदेश की जगन रेड्डी सरकार ने हालांकि, ऐसी सुविधा शुरू की थी. जिसमें बीपीएल कार्ड धारकों के घर पर महीने का राशन पहुंचाया जाता है, इसके लिए राज्य सरकार ने सैकड़ों मोबाइल वैन भी खरीदी थीं. प्रदेश के अंदरूनी इलाकों में इस योजना को बड़े स्तर पर लागू किया गया.
पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव से पहले द्वारे सरकार योजना शुरू की गई थी, हालांकि उसमें राशन तो घर नहीं पहुंच रहा था लेकिन अन्य सरकारी कुछ कामकाजों को निपटाया जा रहा था. इनके अलावा बड़े स्तर पर ऐसी स्कीम कम राज्यों द्वारा ही लाई गई है.
हालांकि, लॉकडाउन के वक्त अधिकतर राज्यों ने राशन की व्यवस्था अलग-अलग सोसाइटी, मोहल्लों में करने की कोशिश की थी. जहां सरकारी या किसी अन्य कंपनी का वाहन राशन लेकर सोसाइटी में जाता था और लोगों को सामान लेने में आसानी होती थी. लॉकडाउन के दौरान केंद्र की ओर से मुफ्त गेहूं-चावल की सुविधा भी दी गई थी, जिसे राज्य सरकारों की मदद से लोगों तक पहुंचाया गया.