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DTC के इस फैसले से निजी स्कूल के छात्रों की बढ़ेगी परेशानी, 3 अगस्त को दिल्ली HC में अगली सुनवाई

डीटीसी ने पिछले साल सितंबर में स्कूलों और दिल्ली पुलिस को पत्र लिखकर उनकी जरूरतों के लिए बसें उपलब्ध कराने में असमर्थता जताई थी. हालांकि, डीटीसी की ओर से इमरजेंसी सर्विस के रूप में पुलिस और अर्धसैनिक बलों को बसें उपलब्ध कराना जारी रखा था.

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डीटीसी के फैसले का स्कूलों और पैरेंट्स ने विरोध किया है. -सांकेतिक तस्वीर
डीटीसी के फैसले का स्कूलों और पैरेंट्स ने विरोध किया है. -सांकेतिक तस्वीर
स्टोरी हाइलाइट्स
  • स्कूलों ने कहा- बसें खरीदने के लिए हमारे पास फंड नहीं
  • पैरेंट्स संघ ने डीटीसी के फैसले को बताया अनुचित

राष्ट्रीय राजधानी में दिल्ली परिवहन निगम (DTC) ने निजी स्कूलों को बसें नहीं उपलब्ध कराने का फैसला किया है जिसका स्कूलों और अभिभावकों ने विरोध किया है. मामला दिल्ली हाईकोर्ट तक पहुंच गया है. हाई कोर्ट में मामले की अगली सुनवाई तीन अगस्त को होगी. अभिभावकों और स्कूलों का कहना है कि डीटीसी के इस फैसले से छात्रों और उनके माता-पिता को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा. दरअसल, यात्रियों के लिए अधिक बसों की आवश्यकता को देखते हुए डीटीसी ने ये फैसला लिया है. परिवहन विभाग के अधिकारियों के अनुसार, परिवहन विभाग और डीटीसी के सीनियर अधिकारियों ने इस फैसले के संबंध में स्कूलों को भी सूचना दी थी. 

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निजी गैर सहायता प्राप्त स्कूलों की एक्शन कमेटी के महासचिव भरत अरोड़ा ने कहा कि कई स्कूल छात्रों के स्कूल से ले जाने और लाने के लिए डीटीसी बसों पर निर्भर हैं. अरोड़ा ने कहा कि हमने दिल्ली सरकार से निजी स्कूलों के लिए डीटीसी बस सेवा को प्राथमिकता के आधार पर बहाल करने का अनुरोध किया है. उन्होंने कहा कि कई स्कूलों के लिए यह चुनौतिपूर्ण स्थिति है, क्योंकि स्कूलों के पास नई बसें खरीदने के लिए एक्स्ट्रा फंड नहीं है.

शहर को 11 हजार बसों की है जरूरत

दिल्ली में वर्तमान में 7200 से अधिक सार्वजनिक परिवहन बसें हैं जिनमें डीटीसी की ओर से चलाई जाने वाली 3912 और दिल्ली इंटीग्रेटेड मल्टी मोडल ट्रांजिट सिस्टम (डीआईएमटीएस) की ओर से 3293 क्लस्टर बसें संचालित होती हैं. आधिकारिक अनुमानों के अनुसार, शहर को अपनी सार्वजनिक परिवहन जरूरतों को पूरा करने के लिए 11 हजार बसों की आवश्यकता है.

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उधर, बसों को वापस लेने के फैसले का स्कूलों और अभिभावकों ने विरोध किया था. स्कूलों ने इसे दिल्ली हाई कोर्ट में इस फैसले को चुनौती भी दी थी और डीटीसी के इस फैसले पर सवाल उठाया था. एक नामी स्कूल के प्रिंसिपल ने कहा कि डीटीसी के इस निर्णय से प्रभावित हुए हैं, लेकिन यह कहते हुए आगे टिप्पणी करने से इनकार कर दिया कि मामला विचाराधीन है.

फैसले से कई पैरेंट्स पर पड़ने वाला है अतिरिक्त वित्तीय बोझ: अभिभावक संघ

वहीं, पैरेंट्स संघ की अध्यक्ष अपराजिता गौतम ने कहा कि दिल्ली सरकार का यह फैसला बिलकुल अनुचित है. कोरोना के दौरान और बाद में कई परिवारों को वित्तीय समस्या का सामना करना पड़ रहा है और स्कूलों से डीटीसी बस सुविधाओं को हटाने से अभिभावकों पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ने वाला है. उन्होंने कहा कि यदि स्कूल परिवहन की व्यवस्था नहीं कर सकता है, तो माता-पिता को अपने बच्चों को स्कूल छोड़ना और लेने जाना होगा जो सभी पैरेंट्स के लिए संभव नहीं है. 

उधर, मॉडर्न पब्लिक स्कूल, शालीमार बाग की प्रिंसिपल अलका कपूर ने कहा कि डीटीसी की ज्यादातर बसें काफी पुरानी हैं और ये छात्रों की सुरक्षा के लिहाज से चिंता का विषय है. उन्होंने ये भी कहा कि डीटीसी का फैसला स्पष्ट रूप से उन स्कूलों के लिए चिंता का विषय है जिनके पास सीमित फंड है. वे तुरंत जरूरी संख्या में वाहन नहीं खरीद सकते हैं और जब तक वे वाहनों की व्यवस्था नहीं करते हैं, उनके छात्रों को समस्या का सामना करना पड़ेगा.

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दिल्ली हाई कोर्ट ने भी नोटिस किया था कि निजी स्कूल के छात्रों के लिए डीटीसी बस सेवा को बंद करने के निर्णय का सभी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. हाई कोर्ट ने ये भी कहा था कि स्कूलों के अलावा माता-पिता और छात्रों को परेशानी होती है. मामले की अगली सुनवाई 3 अगस्त को होगी.

 

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