दिल्ली में बीते 7 दिनों से धरने पर बैठे DTC के अस्थायी कर्मचारियों के समर्थन में पहुंचे योगेंद्र यादव ने कहा कि समान काम के लिए समान वेतन कोई सर्वोच्च न्यायालय का आदेश नहीं. यह तो हमारे संविधान में लिखी हुई है और ये बेहद शर्मनाक है कि आज़ादी के 70 साल बाद भी लोगों को समान काम के लिए समान वेतन की लड़ाई लड़नी पड़ती है. डीटीसी कर्मचारियों कि मांग है कि सभी अनुबंधित कर्मचारियों को नियमित किया जाए व समान काम के लिए समान वेतन दिया जाए.
आपको बता दें कि दिल्ली परिवहन निगम में डीटीसी वर्कर्स यूनिटी सेंटर (ऐक्टू) ने 29 अक्टूबर को एक दिवसीय हड़ताल का नोटिस दिया है जिसे अन्य यूनियनों - डीटीसी वर्कर्स यूनियन (एटक) और डीटीसी एम्प्लाइज कांग्रेस (इंटक) ने अपना समर्थन दिया है.
आगे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर हमला करते हुए योगेंद्र यादव बोले आज जो केजरीवाल की सरकार है, यही केजरीवाल चुनाव के समय घूम-घूम कर सभाओं में कहते थे कि अगर हमारी सरकार आई तो सभी अनुबंध कर्मचारियों की नियमित किया जाएगा. यही नहीं, इस केजरीवाल सरकार की चुनावों के समय किये गए वादा खिलाफी का पाप कहीं न कहीं हम पर भी लगा हुआ है.
सरकार ने हमें मूर्ख बनाया है
दरअसल, प्रदर्शन में बैठे कर्मचारियों का कहना है कि केजरीवाल सरकार ने चुनाव के पहले वादा किया था कि अगर उनकी सरकार बनती है तो 13 हजार कर्मचारियों को पक्का कर दिया जाएगा. फिलहाल 13 हजार कर्मचारी डीटीसी में कॉन्ट्रेक्ट पर काम करते हैं. कर्मचारियों का कहना है कि सरकार ने हमें मूर्ख बनाया है.
केजरीवाल सरकार ने एस्मा (ESMA) लगा दिया
केजरीवाल सरकार के द्वारा बर्खास्त कर्मचारियों के सवाल पर योगेंद्र यादव ने कहा की जो सरकार किसी भी आंदोलन को दबाने के लिए एस्मा लगाने की जुर्रत करती है वह आमजन की सरकार नहीं हो सकती. यह तो तानाशाही सरकार है. ज्ञात हो कि डीटीसी कर्मचारियों की हड़ताल पर निर्दयी कदम उठाते हुए केजरीवाल सरकार ने एस्मा (ESMA) लगा दिया है.
हमारी मांग पूरी कर ली जाएं
डीटीसी के कर्मचारियों का कहना है कि हम सरकार को पहले ही चेतावनी दे रहे हैं. हमारी मांगे पूरी कर ली जाएं. हम लोग अभी भी सरकार को एक महीने का समय दे रहे हैं कि वो हमें लेकर विचार करें. अगर 5 फरवरी तक हमें परमानेंट नहीं किया गया तो सरकार के खिलाफ रैली निकालकर प्रदर्शन करेंगे. ये रैली बस डिपो से दिल्ली सचिवालय तक निकाली जाएगी.
5 लाख लोग रोजाना ही सफर करते हैं
दिल्ली की डीटीसी बसों की अगर बात की जाए तो इन बसों में लगभग 5 लाख लोग रोजाना ही सफर करते हैं. अब अगर डीटीसी बसों की रफ्तार थम गई तो दिल्ली में काफी परेशानी देखने को मिल सकती है. ऐसे में सरकार को इन कर्मचारियों से बात करके इस समस्या का समाधान निकालना चाहिए. जिससे दिल्ली की बसों में सफर करने वालों को किसी तरह की परेशानी ना हों.
तीस साल में सबसे बड़ी हड़ताल होगी
डीटीसी कर्मचारी यूनियन का दावा है कि सोमवार को होने वाली हड़ताल बीते 30 साल में सबसे बड़ी हड़ताल होगी. दावा ये भी है कि बीते कई दिनों से डीटीसी कर्मचारियों की हड़ताल सोमवार को सबसे विराट रूप लेने जा रही है. हालांकि, रविवार को इसको तब झटका लगा जब समर्थित यूनियन ने हड़ताल से खुद को किया अलग कर लिया.
सोमवार को बसें सड़कों पर नहीं उतारेंगे
आल इंडिया सेंट्रल कॉउन्सिल ऑफ ट्रेड यूनियंस AICCTU- दिल्ली के महासचिव अभिषेक का कहना है कि डीटीसी की चार यूनियन में से एक यूनियन यानी BJP समर्थित भारतीय मजदूर संघ ने हड़ताल से खुद को अलग कर लिया है. बावजूद इसके तीन रजिस्टर्ड यूनियन अब भी हड़ताल पर हैं और वो सोमवार को बसें सड़कों पर नहीं उतारेंगे.
हड़ताल की मांगें हैं :
1. वेतन कटौती का सर्कुलर तुरंत वापस लिया जाए.
2. समान काम समान वेतन लागू किया जाए.
3. डीटीसी में बसों के बेड़े को बढ़ाया जाए, जन परिवहन का निजीकरण बंद हो.
कर्मचारियों के कानूनी अधिकारों का डीटीसी प्रबंधन और दिल्ली सरकार द्वारा लगातार हनन किया जा रहा है. कर्मचारियों की मांगों की अनदेखी करते हुए और दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय का गलत तरीके से हवाला देते हुए डीटीसी प्रबंधन ने पिछले 21 अगस्त को वेतन कटौती का सर्कुलर जारी किया था.
क्यों मांग कर रहे हैं बसों की संख्या बढ़ाने की?
डीटीसी कर्मचारियों का यह निर्णय दिल्ली में गाड़ियों के बढ़ते प्रदूषण तथा आम जनता के लिए सस्ती, सुलभ और टिकाऊ सार्वजनिक यातायात की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है. दिल्ली में डीटीसी सार्वजनिक यातायात व्यवस्था की रीढ़ है लेकिन आज दिल्ली में बसों की भारी कमी है. डीटीसी के पास केवल 3000 बसें हैं जबकि दिल्ली को 10,000 से भी ज्यादा बसों की जरुरत है. बसों की संख्या बढ़ने की बजाय सरकार दिल्ली की सड़कों को निजी क्लस्टर कंपनियों के हवाले कर रही है. दिल्ली मेट्रो के बढ़ते किराये और प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए डीटीसी ही एकमात्र सर्वसुलभ, सस्ती और प्रदूषण मुक्त सार्वजिक यातायात का साधन बचता है.
आज जब हरियाणा और राजस्थान में भी रोडवेज कर्मचारी वहां की भाजपा सरकारों द्वारा किये जा रहे निजीकरण और ठेकाकरण के विरुद्ध लड़ रहे हैं. तब दिल्ली सरकार को दिल्ली वासियों के हित को देखते हुए डीटीसी कर्मचारियों की मांगों पर तुरंत कार्यवाही करनी चाहिए.
10 हजार से भी ज्यादा डीटीसी कर्मचारियों हिस्सा लिया
आपको बता दें कि 25 से 28 सितंबर के बीच दिल्ली के सभी डीटीसी डिपो पर हड़ताल के संबंध में स्ट्राइक बैलट यानी मतदान कराया गया जिसमें 98.2 फीसदी यानी 10 हजार से भी ज्यादा डीटीसी कर्मचारियों हिस्सा लिया. इस मतदान के बाद ही ये फैसला लिया गया कि सोमवार को एक दिवसीय हड़ताल की जाएगी. फिलहाल इस हड़ताल से एक यूनियन वॉक आउट कर चुकी है. ऐसे में देखना होगा कि ये हड़ताल कितनी कामयाब होती है.