दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव के लिए आज नामांकन का आखिरी दिन था. एबीवीपी और एनएसयूआई के छात्र नेताओं समेत दूसरी पार्टियों के छात्र भी अपना नामांकन भरने पहुंचे. नामांकन दाखिल करने के बाद छात्र संगठन के संभावित उम्मीदवारों ने कैंपस में शक्ति प्रदर्शन भी किया. इन चुनावों में गहमागहमी इतनी ज्यादा होती है कि यह साख का सवाल भी बन जाती है. ऐसे में पावर और पैसा दोनों का इस्तेमाल भी खुलेआम हो गया है. डूसू चुनाव को लेकर गाइडलांइस भले ही जारी कर दी गई हों और आचार सहिंता लागू हो, पर कैंपस में नियम कानून की जमकर धज्जियां उड़ाई जा रही हैं.
डूसू चुनाव की तारीख के ऐलान के साथ ही प्रचार का दौर शुरू हो गया. संगठनों की साख दांव है लिहाजा प्रचार और पोस्टरबाजी में कोई पीछे नहीं रहना चाहता. डीयू की हर दीवार पोस्टर से पटी पड़ी है. सिर्फ दीवार ही नहीं बल्कि बेंच, डस्टबिन, बिजली का खंभा, टी स्टॉल के साथ साथ कैंपस के इर्द-गिर्द की सड़कें और फ्लाईओवर पर पोस्टर्स चस्पा हैं. ऐसा तब हो रहा है जब आचार संहिता लागू हो चुकी है. डूसू चुनाव में लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों का खुलेआम उल्लघंन हो रहा है. गाइडलाइंस के मुताबिक वॉल ऑफ डेमोक्रेसी के अलावा डीयू में कहीं भी पोस्टर चस्पा नहीं किए जा सकते. जो पोस्टर चस्पा होगें वे भी हैंडमेड होने चाहिए. इसके बावजूद ना सिर्फ कैंपस के इर्द गिर्द बल्कि कैंपस में भी खुलेआम गाइडलाइंस की धज्जियां उड़ रही हैं. दौर-ए-चुनाव की वजह सेछात्र संगठनों के पास अपने अपने बहाने भी तैयार हैं.
क्या कहते हैं एबीवीपी के राष्ट्रीय मीडिया संयोजक?
साकेत बहुगुणा के मुताबिक वे लेस पेपर कैंपेन को प्रमोट कर रहे हैं. ये सच है कि छात्र पोस्टर्स लगा रहे हैं लेकिन जिस तरह से हर साल प्रचार के लिए छात्रों को मिलने वाले दिन कम होते जा रहे हैं. ऐसे में 2 दिनों में 51 कॉलेज के लाखों छात्रों तक बात पहुंचाने के लिए पोस्टर्स जरूरी हैं. वे यह भी चाहते हैं कि हर कॉलेज में वॉल ऑफ डेमोक्रेसी हो ताकि छात्र इधर उधर या सार्वजनिक संपत्ति पर पोस्टर न लगाएं. इसके लिए वे चुनाव समिति को भी पत्र लिखने की बात कहते हैं. तो वहीं एनएसयूआई के प्रदेश अध्यक्ष अक्षय लाकड़ा के मुताबिक एनएसयूआई कम से कम पोस्टर लगाकर अपनी बात छात्रों के बीच पहुंचा रही है. वे कहते हैं कि कैंपस को बदरंग करने का इरादा किसी छात्र नेता का नहीं होता.
पाबंदी के बावजूद पोस्टरबाजी
गाइडलाइंस की अनदेखी कई सालों से चुनाव के दौरान देखने को मिलती रही है. लिहाजा चुनाव आयोग ने सभी संगठनों पर नजर रखने के लिए छह वीडियोग्रॉफर की एक टीम को जिम्मेदारी सौंपी है. चुनाव की घोषणा के साथ ही कैंपस में छात्र संगठनों के कार्यकर्ताओं की अलग अलग गतिविधियों की रिकॉर्डिंग भी की जा रही है. इसके बावजूद गाइडलाइंस की अवमानना करने वाले छात्र संगठनों और कैंडिडेट्स पर कार्रवाई नहीं होती. चुनाव समिति की मानें तो जब तक नॉमिनेशन फाइनल नहीं होते तब तक एक्शन नहीं लिया जा सकता. ऐसा इसलिए क्योंकि यूनिवर्सिटी किसी छात्र संगठन को चिन्हित नहीं करती. हालांकि डीयू प्रशासन ने सख्ती बरतते हुए पोस्टर लगाने वालों पर आपराधिक मामला दर्ज करने के साथ ही आरोपी उम्मीदवारों का नामांकन रद्द करने का भी फैसला किया है.
नो पोस्टर पार्टी भी कैंपस में एक्टिव
आरोप- प्रत्यारोप के बीच डूसू चुनाव पूरी तरह राजनीति के रंग में रंगा है. आने वाले दिनों में प्रचार और तेज होगा. ऐसे में जहां एक तरफ छात्र संगठनों की ओर से पोस्टरबाजी जारी है. वहीं दूसरी तरफ डीयू के स्टूडेंट्स 'नो पोस्टर पार्टी' कैंपेन चला रहे हैं. मिरांडा हाउस की चार स्टूडेंट्स ने फेसबुक पर एक पेज बनाकर डीयू से पोस्टरों को हटाने का अभियान शुरू किया. देखते ही देखते करीब 80 वॉलंटियर भी इस मुहिम में जुड़ते चले गए. अब ये स्टूडेंट्स बदरंग कैंपस को साफ करने में जुटे हैं. मिरांडा हाउस की छात्रा मारया के मुताबिक डूसू चुनाव के दौरान कैंपस की सिर्फ दीवारें नहीं बल्कि हर एक चीज पर पोस्टर चिपका रहता है. साइन बोर्ड भी पोस्टर से ढंक जाते हैं. इसके मद्देनजर वे कैंपस को क्लीन कर रहे हैं. वे डूसू के दौरान और डूसू के बाद भी अपना नो पोस्टर पार्टी कैंपेन जारी रखेंगे.
कैंपस में पसरा कचरा डीयू में पढ़ने वाले छात्रों को भी रास नहीं आ रहा है. ऐसे में कई छात्र डूसू चुनाव को बॉयकॉट करने की भी तैयारी कर रहे हैं. आपको बता दें कि डूसू चुनाव 12 सितम्बर को होने हैं. 6 सितम्बर को उम्मीदवारों के नामों पर अंतिम मुहर लगेगी. 7 सितम्बर से चुनाव प्रचार जोर पकड़ेगा. नतीजों का एलान 13 सितम्बर को हो जाएगा.