दिल्ली में बिजली की दरों में बढोतरी की आहट सुनाई दे रही है. निजी बिजली कंपनियों ने घाटे का हवाला देकर बिजली की दरें बढ़ाने की मांग की है और दिल्ली इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी अथॉरिटी के पास अपनी अर्जी भी लगा दी है.
ऐसे में अब सवाल उठ रहे हैं कि दिल्ली में बिजली के दाम कम करने के दावों के बीच अब महंगी बिजली की आशंका क्यों जोर पकड़ रही है. दिल्ली विधानसभा में विपक्ष के नेता विजेंद्र गुप्ता ने आरोप लगाया है कि बिजली कंपनियों पर लगाम लगाने में सरकार पूरी तरह नाकाम रही है.
बिजली कंपनियों के घाटे की पड़ताल नहीं की गई और हर साल कंपनियां अपने घाटे को कानूनी जामा पहनाती जा रही हैं, लेकिन सरकार की लापरवाही की वजह से उनका दावा कानूनी तौर पर पुख्ता हो रहा है, क्योंकि सरकार ने घाटे को लेकर कंपनियों से न तो कोई पूछताछ की और न ही इस बारे में कोई जानकारी ही जुटाई गई, नतीजा ये हुआ कि साल दर साल कंपनियों के घाटे की फाइलें सरकार के पास जमा हो रही है और एक तरह से सरकार की मौन स्वीकृति इस घाटे को मिल रही है, अब अगर मामला कोर्ट में भी जाता है, तो यहां सरकार की लापरवाही से खुद उसका पक्ष कम हो रहा है, ऐसे में दिल्ली में टैरिफ बढ़ने की आशंका मजूबत हो रही है.
आइए जानते हैं बिजली की दरों में बढोतरी को लेकर किन मुद्दों पर गुप्ता ने सरकार को घेरा सरकार ने निजी कंपनियों के उस हिसाब किताब को लेकर कोई पड़ताल नहीं की, जो कंपनियों ने सरकार के पास जमा कराया. हर साल कंपनियां फर्जी घाटा सरकार के सामने पेश करती हैं और सरकार चुपचाप उसे अपने पास रख लेती है, इसका मतलब है कि सरकार की मौन स्वीकृति है. अब कंपनियों ने इसी घाटे को आधार बनाकर बिजली की बढ़ी हुई दरें डीईआरसी के सामने पेश कर दी हैं. सरकार तो (सीएजी) आडिट कराने की बात करती थी, लेकिन अब उस मामले पर चुप है, केजरीवाल जी को जवाब देना चाहिए कि आखिर दिल्ली वालों को सस्ती बिजली के सपने दिखाकर बिजली महंगी करने की तैयारी क्यों की जा रही है. सरकार हर साल दो हज़ार करोड़ रुपए निजी बिजली कंपनियों को सब्सि़डी के तौर पर दे रही है, दिल्ली की जनता की कमाई का पैसा कंपनियों को दिया जा रहा है और अब दिल्ली की जनता पर ही टैरिफ का बोझ बढाने की तैयारी हो रही है.