रियो ओलंपिक में अबतक मात्र दो खिलाड़ी को भारत की झोली में पदक डालने की कामयाबी मिली है. लेकिन कई खिलाड़ी केवल सुविधाओं के अभाव से मंजिल तक नहीं पहुंच पा रहे हैं. सरकार कागजों पर सुविधाए देने की बात तो करती है लेकिन हकीकत में सैकड़ों प्रतिभाओं को अब भी मदद का इंतजार है. इस मुद्दे को लेकर 'आज तक' ने दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया से खास बातचीत की.
बातचीत के अंश:
1. पदक सिर्फ चाहने से नहीं आ जाता है, अभी मैं साक्षी मलिक के परिवार से मिलकर आ रहा हूं, मदद के लिए सरकार को आगे आना पड़ेगा.
2. दिल्ली सरकार ने फाउंडेशन पर काम किया है, जो मजबूत हुआ है.
3. दिल्ली के 70 स्कूल में प्राइवेट प्लेयर के साथ एक्टिविटी शुरू की है, जहां सरकारी स्कूल के बच्चे को ट्रेनिंग फ्री दी जाती है. लेकिन बाहर के बच्चों को चार्ज देना होता है.
4. अकेडमी से निकले अच्छे बच्चों को ट्रेनिंग देने की जरूरत है. हमारे 20 से 22 स्पोर्ट्स के सेंटर हैं और इनका इस्तेमाल हो सके इसलिए यहां सुविधाएं मजबूत करने की जरूरत हैं.
5. काफी चीजें प्लान में हैं, स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी उसका एक हिस्सा है. दिल्ली में पैसा खर्च करना होगा.
6. अच्छे कोच और स्पोर्ट्स टीचर को लाने की जरूरत है.
7. अगर कोई फैसिलिटी है तो उसका मल्टीपर्पस इस्तेमाल होगा, लेकिन स्पोर्ट्स की एक्टिविटी में कमी नहीं आनी चाहिए.
8. अगर कुश्ती दिल्ली में चाहिए तो ऐसे सेंटर बनाने होंगे ताकि खिलाड़ी अपने घर से आसपास ट्रेनिंग ले सके.
9. अभी तक कोच नहीं हैं तो कोच को भर्ती करने की योजना बनाई है, जिन्हें दिल्ली सरकार की टीम में शामिल करेंगे.
10. हमारे पास स्पोर्ट्स में बजट की कमी नहीं है.
इस बीच केजरीवाल सरकार ने ऐलान किया है कि जो खिलाड़ी रियो ओलम्पिक में गोल्ड मेडल जीतकर आएगा, उसे सरकार 4 करोड़ रुपए देकर सम्मानित करेगी. इस बीच दिल्ली सरकार ने कांस्य पदक जीतने वाली साक्षी मलिक को 1 करोड़ रुपए और रजत पदक जीतने वाली पीवी सिंधू को 2 करोड़ रुपए देने का ऐलान भी किया है.
साक्षी के पिता को तरक्की देने की तैयारी
साथ ही दिल्ली सरकार ने एक पत्र जारी करते हुए दिल्ली परिवहन निगम में कार्यरत साक्षी मलिक के पिता सुखबीर मलिक को पदोन्नति देने का प्रस्ताव भी रखा है. उपमुख्यमंत्री के दफ्तर से जारी इस पत्र में लिखा है कि ये गर्व की बात है कि साक्षी मलिक के पिता ने अपनी बेटी को एक अपरंपरागत खेल में भेजा और पूरा समर्थन दिया. ये देश के हर माता-पिता को अपनी बेटियों के प्रति सोच बदलने में सहायक होगा. हमारे साथी ने बस कंडक्टर की नौकरी करते हुए ये माहौल बनाया कि उनकी बेटी देश का सम्मान बढ़ा सके.