राजधानी के प्रगति मैदान में इस साल इंटरनेशनल पवेलियन थोड़ा ठंडा है. चीन, कोरिया, श्री लंका जैसे देशों के कई प्रदर्शक शुरू में ही वापस लौट गए, तो साउथ अफ्रीका ने इस बार ट्रेड फेयर में शिरकत ही नहीं की. तुर्की और थाईलैंड का स्टॉल ही इंटरनेशनल पवेलियन की रौनक बढ़ा रहा है.
ये नोटबंदी का ही असर है कि बिजनेस डेज के आखिरी दिन भी इंटरनेशनल पवेलियन में वो रौनक नहीं दिखी जो पिछले साल दिखती थी. पिछले साल ट्रेड फेयर में पार्टनर कंट्री के तौर पर शिरकत करने वाला साउथ अफ्रीका इस बार ट्रेड फेयर से नदारद है. चीन का हैंगर भी लगभग खाली पड़ा है और जो देश इस बार ट्रेड फेयर का हिस्सा बने भी हैं, उन्हें इस बात की चिंता सता रही है कि जो लागत उन्होंने फेयर के लिए लगाई है उसकी रिकवरी भी इस मेले से होगी या नहीं.
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तुर्की से खूबसूरत लैंप लेकर ट्रेड फेयर में आए जहान के मुताबिक पिछले 15 सालों से फेयर में आ रहे हैं लेकिन इस बार बेहद कम खरीदार नजर आए. जहान के मुताबिक जो करंसी इस्तेमाल में आ रही है उसके लिए चेंज ढूंढना बड़ी चुनौती है. पुराने नोट नहीं ले रहे हैं, स्वाइप मशीन के भरोसे काम चल रहा है.
थाईलैंड से खूबसूरत ज्वेलरी का स्टॉल लेकर आई एरिन भी नोट बंदी की वजह से निराश हैं. बिजनेस डे के आखिरी दिन तक सेल लगभग 50 फीसदी कम हुई है.
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नोटबंदी की वजह से इंटरनेशनल पवेलियन में बिजनेस डेज में ही ऑफर्स और डिस्काउंट के ऑप्शन शुरू हो गए हैं ताकि खरीदारों को आकर्षित किया जा सके. लगभग हर दूसरे प्रदर्शक के पास PayTM एक्सेप्टेड या डेबिट/क्रेडिट कार्ड एक्सेप्टेड का स्टिकर दिख जाएगा और जो कैशलेस पेमेंट नहीं ले रहे वो 500 या 1000 के नोट भी ले रहे हैं लेकिन इस शर्त के साथ कि खरीदार पूरे 500 या 1000 का सामान खरीदें.
प्रदर्शकों को उम्मीद है कि पब्लिक डेज ओपन होने के बाद थोड़ी बिक्री में भी तेजी आएगी. फिलहाल अपने पॉपुलर आइटम्स के साथ हर एक देश किसी तरह नोटबंदी के भंवर से निकलने की कोशिश में लगा हुआ है. लेकिन इतना तय है कि प्रगति मैदान का 36वां अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार मेला व्यापार के लिहाज से इस बार काफी ठंडा है.