दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि अगले लोकसभा चुनाव में में असली मुकाबला बीजेपी और आप के बीच ही होगा.
इसे विश्वास कहें या अति विश्वास, उत्साह कहें या अति उत्साह. लेकिन ये कहना ही होगा कि दिल्ली की जनता की नब्ज टटोलने के बाद अरविंद केजरीवाल 2014 में होने वाली लोकतंत्र की लड़ाई को अपनी दृष्टि से देख रहे हैं. अपनी शक्ति तौल रहे हैं. सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी की घोषणा कर रहे हैं और करीब दस साल से सत्ता में बैठी कांग्रेस पार्टी को गौण घोषित कर रहे हैं.
पार्टी के विधायकों और भावी उम्मीदवारों से बैठक के बाद अरविंद केजरीवाल ने ऐलान कर दिया कि देश को बीजेपी और आप में से किसी एक को चुनना होगा.
इस भरोसे का पहला कारण तो यही है कि आप की शुरुआत जोरदार रही. राजनीति का ककहरा सीखने वाली पार्टी दिल्ली में दूसरी सबसे बड़ी शक्ति बन कर उभरी. फिर देश की आबोहवा में खुद को मापा. आवाम का पैगाम सुना, काफिला दिल्ली से दूर दराज के शहर, कस्बे और देहात तक जाने लगा और फिर तमाम सर्वे के सिरमौर नरेन्द्र मोदी की आवाज़ में कांपते आत्मविश्वास के शब्द सुने.
दिल्ली में सत्ता के सिंहासन पर बैठने के बाद अरविंद केजरीवाल को शायद अपनी सियासी ताकत का अहसास हो रहा है. मुमकिन है कि इसी अतिविश्वास में उन्होंने कांग्रेस को गौण कर अपना मुख्य राजनीतिक विरोधी भी खुद से तय कर दिया है. लेकिन केजरीवाल शायद ये भूल रहे हैं कि हिंदुस्तान के इस लोकतंत्र में कांग्रेस जितनी अनुभवी राजनीतिक विरासत आप के पास नहीं है.