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केंद्र के साथ लड़ाई, भय फैलाने वाली रणनीति... दिल्ली में AAP ने कैसे अपनी जमीन खो दी, Inside Story

दिल्ली के पुराने नेताओं जैसे तरविंदर सिंह मारवाह और नीरज बसोया का फिर से उभरना, जिन्हें अब समाप्त माना जा रहा है, इसका सटीक उदाहरण है. लेकिन AAP के लिए बड़ी समस्याओं के लक्षण दिल्ली चुनाव प्रचार के अंतिम चरण से ही स्पष्ट रूप से दिखने लगे थे. परिणाम चाहे जो भी हों, पार्टी पर इनका अल्पकालिक और दीर्घकालिक दुष्प्रभाव पड़ना तय था.

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केजरीवाल को दिल्ली में कैसे मिली हार?
केजरीवाल को दिल्ली में कैसे मिली हार?

दिल्ली विधानसभा चुनाव में सीट-दर-सीट मुकाबले में केजरीवाल मॉडल की चमक फीकी पड़ गई. आम आदमी पार्टी (AAP) ने दिल्ली 2025 की लड़ाई में भाजपा के लिए जाल बिछाया था, "अरविंद बनाम कौन". लेकिन भाजपा ने पासा पलटने का फैसला किया. बीजेपी ने न केवल इस सवाल को नजरअंदाज किया, जिसने 2015 और 2020 के चुनावों में भगवा पार्टी को परेशान किया था, बल्कि दिल्ली की लड़ाई को सीट-दर-सीट मुकाबले में बदल दिया.

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एक बार जब भाजपा "केजरीवाल फैक्टर" से मुक्त हुए तो प्रत्येक विधानसभा में स्थानीय लड़ाई के लिए मंच तैयार हो गया. दिल्ली के पुराने नेताओं जैसे तरविंदर सिंह मारवाह और नीरज बसोया का फिर से उभरना, जिन्हें अब समाप्त माना जा रहा है, इसका सटीक उदाहरण है. लेकिन AAP के लिए बड़ी समस्याओं के लक्षण दिल्ली चुनाव प्रचार के अंतिम चरण से ही स्पष्ट रूप से दिखने लगे थे. परिणाम चाहे जो भी हों, पार्टी पर इनका अल्पकालिक और दीर्घकालिक दुष्प्रभाव पड़ना तय था.

उच्च वर्ग का उभार

5 फरवरी को जब दिल्ली में मतदान हुआ, तो मतदान केंद्रों पर उच्च मध्यम वर्ग और उच्च वर्ग के मतदाताओं में भी उत्साह देखा गया. या दूसरे शब्दों में कहें तो AAP के राजनीतिक मॉडल से उनकी हताशा ही उन्हें मतदान केंद्रों तक ले आई. दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी ने कालकाजी के बी ब्लॉक में एक सरकारी स्कूल में अपना वोट डाला. उसी बूथ पर उच्च आर्थिक तबके के लोगों ने उन कारणों के बारे में बताया, जिनकी वजह से वे मतदान केंद्रों तक आए. ये मुद्दे थे- टूटी सड़कें, अवरुद्ध नाले और स्वच्छता की कमी. इसी तरह की आवाजें उस मतदान केंद्र पर भी सुनी जा सकती थीं, जहां अरविंद केजरीवाल ने अपने परिवार के साथ वोट डाला.

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किसी भी दूसरे राज्य में ये मुद्दे नगर निकाय चुनावों के होते. लेकिन दिल्ली में मतदाताओं के इस वर्ग ने शहर के बीमार नागरिक ढांचे के लिए विधानसभा चुनावों में केजरीवाल और उनकी पार्टी को दंडित करने का फैसला किया.

दिसंबर 2022 में AAP ने भाजपा से MCD जीती. अपने मामूली अंतर के कारण AAP के नेतृत्व वाली MCD का भाग्य AAP के नेतृत्व वाली दिल्ली सरकार के समान था. नौकरशाही के साथ लड़ाई और MCD के वित्तपोषण और निर्णय लेने वाले निकायों - स्थायी समिति, क्षेत्रीय समितियों पर कोई नियंत्रण नहीं होने से शासन संबंधी बाधाएं. नगर निकाय में मामलों का प्रबंधन करने में AAP की विफलता ने आग में घी डालने का काम किया.

जबकि AAP दिल्ली के स्वास्थ्य और शिक्षा के बुनियादी ढांचे में किए गए बदलावों का दावा करती है, शहर के नागरिक बुनियादी ढांचे की सेहत खराब होती जा रही है. 2023 की दिल्ली बाढ़ या 2024 के मानसून के बाद जलभराव ने दिल्ली के मतदाताओं की यादों पर निशान छोड़ दिए हैं. इसके अलावा, दिल्ली के उच्च वर्ग के मतदाताओं में AAP के "फ्री की योजना" मॉडल के खिलाफ गुस्सा कोई छिपी हुई बात नहीं है. 

2025 के चुनाव प्रचार में भी AAP प्रमुख लगातार इस बारे में बात करते रहे कि कैसे दिल्ली का हर कामकाजी परिवार उनकी सरकार की वजह से 22000-25000 रुपये बचा रहा है. उनके भाषण दिल्ली के कामकाजी वर्ग के मतदाताओं को एकजुट करने पर केंद्रित थे. AAP के 2025 के चुनाव प्रचार में उच्च वर्ग की चिंताओं को पूरी तरह से खत्म कर दिया गया.

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संभवतः, भाजपा ने इस गुस्से का फायदा उठाया और उन्हें बाहर निकलकर वोट डालने के लिए उकसाया.

यमुना विवाद: भाजपा और केंद्र के साथ कभी न खत्म होने वाली तकरार

जब सब कुछ AAP के पक्ष में चल रहा था, तब उसने दिल्ली चुनाव प्रचार के आखिरी चरण में तूफान खड़ा करने का फैसला किया. आप प्रमुख केजरीवाल ने भाजपा के नेतृत्व वाली हरियाणा सरकार पर यमुना के पानी में जहर मिलाने का आरोप लगाया औ कहा कि इससे दिल्ली में "नरसंहार" हो सकता है. जल्द ही बीजेपी ने इसे मुद्दा बनाया. भाजपा-आप प्रतिनिधिमंडल ने चुनाव आयोग का दरवाजा खटखटाया, जबकि उनके नेता टीवी स्टूडियो से लेकर यमुना के घाटों तक एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते रहे.

आम मतदाताओं के लिए यह इस बात की याद दिलाता है कि शासन के लगभग हर दूसरे मुद्दे पर आप केंद्र सरकार, राज निवास और भाजपा के नेतृत्व वाले पड़ोसी राज्यों के साथ किस तरह से टकराव में रहती है. खास बात यह है कि केजरीवाल के अजीबोगरीब दावों तक दिल्ली के मतदाताओं को इस तकरार की याद धुंधली हो चुकी थी. दिल्ली चुनाव प्रचार के आखिरी चरण में आप मतदाताओं का ध्यान अपनी सरकार के इस कभी न खत्म होने वाले जुझारू अंदाज की ओर वापस लाने में कामयाब रही.

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भय फैलाने वाली प्रेस कॉन्फ्रेंस

प्रचार अभियान के आखिरी हफ़्ते में केजरीवाल ने कुछ डिजिटल प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया. अपने मतदाताओं और खासतौर पर नई दिल्ली के मतदाताओं को वीडियो संदेश भेजे. इनमें कहा गया, "मतदान से एक रात पहले किसी को अपनी उंगली पर स्याही न लगाने दें, अगर आप अपना वोट बेचेंगे तो जेल जाएंगे."

चुनावी राजनीति में, इस तरह की भय फैलाने वाली रणनीति अक्सर उल्टी पड़ जाती है. AAP इसका अपवाद नहीं है.

कानाफूसी अभियान शुरू करने के बजाय, AAP प्रमुख ने आधिकारिक वीडियो बयान जारी किए जो अपने लहज़े में नकारात्मक थे. अभियान के आखिरी हफ़्ते का फायदा अक्सर राजनीतिक दल अपने चुनावी वादों को पुख्ता करने, सकारात्मक संदेश फैलाने और ऐसे मुद्दों को संबोधित करने के लिए उठाते हैं जो उनके मतदाता आधार को मज़बूत कर सकते हैं. इसके विपरीत, AAP नेता भाजपा, परवेश वर्मा पर आरोप लगाने और CEC राजीव कुमार की आलोचना करने में व्यस्त थे.

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