गाजीपुर लैंडफिल साइट पर बने कचरे का पहाड़ जिस जगह से टूटा था. उसी पहाड़ की चोटी पर अब आग लग गई है. कचरे के पहाड़ से लगातार धुआं निकल रहा है. पहाड़ टूटने के हादसे के बाद ये धुआं भी लोगों को डरा रहा है. इस हादसे के पहले कभी लोगों को इस बात का अंदाजा नहीं था कि यह पहाड़ कभी टूटकर नीचे भी गिर सकता है और राह चलते लोग इसकी चपेट में आ सकते हैं.
अब कचरे के पहाड़ में लगी आग लोगों को डरा रही है. आसपास रहने वाले और उस रास्ते से गुजरने वालों को जान की फिक्र सता रही है. इसके बावजूद ऐसा नहीं लगता कि एमसीडी या दिल्ली सरकार को इसकी फिक्र है. यदि ऐसा होता तो इतना कूड़ा वहां जमा ही नहीं होता कि कचरे के ढेर किसी की जान ले सके. इसकी मिसाल भी चार दिनों के भीतर ही देखने को मिल गई. गाजीपुर में कचरा डालने पर लगी रोक एक सप्ताह भी नहीं टिक पायी. अब फिर से सैकड़ों टन कचरा फिर गाजीपुर में डंप किया जा रहा है.
सरकार और सरकारी एजेंसियों का काम आम आदमी की समझ से बाहर की चीज है. यहां लापरवाही और लीपापोती दोनों ही जारी है. इस सड़क पर कचरे का पहाड़ टूटकर गिरने की आशंका के बावजूद कूड़ा फेंकने का सिलसिला एक बार फिर शुरू हो गया है.
ऐसा नहीं है कि एमसीडी के अफसरों को खतरे का अंदाजा नहीं रहा होगा या दिल्ली सरकार के कर्ताधर्ताओं को दिल्ली में सीना ताने कचरे के ये पहाड़ नहीं दिखे होंगे. अगर सरकार सोयी भी रही होगी तो आसपास रहने वाले लोगों ने भी जगाने की तमाम कोशिशें की होंगी. ऐसा इसलिए भी क्योंकि यहां रहने और गुजरने वालों को हर रोज इस खतरे का एहसास तो होता ही रहा है.
मुल्ला कालोनी में रहने वाले एक स्थानीय निवासी मोहम्मद फारुख के मुताबिक वहां हर रात दीवाली जैसे मंजर दिखते हैं. कचरे के पहाड़ से आग की लपटें निकलती हैं. कई बार शिकायतों के बावजूद ध्यान नहीं दिया गया. लापरवाही का आलम कुछ ऐसा कि बीस साल से पता रहने के बावजूद वैकल्पिक इंतजाम नहीं किया गया. ऐसे में वहां हर रोज जमा होने वाला 10 हजार टन कचरा न सिर्फ समस्या बनेगा बल्कि धीरे-धीरे खतरा भी बन जाएगा.
एमसीडी और दिल्ली सरकार की योजनाएं इन बीस सालों में बनती-बिगड़ती रहीं. पीठ थपथपाने के लिए नाम मात्र के लिए लगाए गए वेस्ट टू एनर्जी प्लांट को एमसीडी और सरकार वक्त-वक्त पर दिखाती रही. कचरा प्रबंधन के नाम पर महज दस फीसदी कूड़ा ही इस्तेमाल हो पा रहा है. जबकि 90 फीसदी कूड़ा सीधे लैंडफिल साइट पर जा रहा है. जिसे असल में बहुत कम होना चाहिए. अगर सारा कूड़ा लैंडफिल पर ही फेंका जाता रहा तो नई तलाशी जा रही साइट्स भी कुछ सालों में दूसरा गाजीपुर बन जाएंगी. पूरी पोल अब खुल चुकी है. जब गाजीपुर साइट पर कूडा़ फेंकने पर पाबंदी लगी. तो एमसीडी को चार दिन का कूड़ा ठिकाने लगाने की जगह भी नहीं मिली.