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पति-पत्नी के 'टॉक्स‍िक' रिश्तों में अनाथ हुए मासूम, अब है नए मां-बाप का इंतजार, इन 7 बच्चों की कहानी में छिपा है अनकहा दर्द

घर के रोज-रोज के कलेस अक्सर बच्चों के लिए नासूर बन जाते हैं. शराब पीकर बीवी से झगड़ा हो या फिर एक्स्ट्रा मेरिटल अफेयर के कारण मारपीट, ये सभी वजहें रिश्तों को घुन की तरह खाने लगती हैं. इस सबका सबसे बड़ा खामियाजा भुगतते हैं मासूब बच्चे. घरौंदा बाल आश्रम में रह रहे इन बच्चों की कहानी समाज के तौर हमें झकझोरने वाली है.

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Photo: Aaj Tak/Generative AI by Vani Gupta
Photo: Aaj Tak/Generative AI by Vani Gupta

केस 1- साल 2023 की एक सर्द रात में NCR के बापू धाम इलाके में दो बच्चे पुलिस को मिलते हैं. इनमें एक छह साल का और दूसरा तीन साल का है. गोल मटोल से तोतली भाषा में बोलने वाले ये बच्चे अकेले घूम रहे थे. बड़ा लड़का करीब 5-6 साल का और दूसरा ढाई तीन साल का था. पुलिस आसपास के लोगों से पूछताछ करती है तो पता चलता है कि इन बच्चों की मां द‍िन में करीब 11 बजे इन्हें यहां लेकर आई थी. महिला ने लोगों से बताया था कि वो इन बच्चों को अपनी जान-पहचान में छोड़ना चाहती थी. उसने यह भी बताया था कि पहले उसके घर में रोज झगड़े होते थे. फिर पति ने किसी और से शादी कर ली थी. अब वो अकेले इन बच्चों को नहीं पाल पा रही थी और  अब वो भी क‍िसी से शादी करना चाहती थी. लेकिन वो पुरुष इन बच्चों को अपनाने के लिए तैयार नहीं था. लोगों ने बताया कि पहले तो वो महिला यहीं बैठी रही, लेकिन, कुछ देर बाद वहां से नदारद हो गई और देर शाम तक नहीं लौटी. बच्चों को घर का पता भी नहीं मालूम था. इस तरह दोनों बच्चे उसी रात बाल आश्रम पहुंच गए. बीते तीन साल में न माता-न प‍िता, कोई उन्हें लेने नहीं आया. अब अगर उन्हें गोद भी ल‍िया जाएगा तो हो सकता है कि दोनों भाई बिछड़ जाएं.

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केस 2-  'तूने तीन बेट‍ियां पैदा कर दीं. इन्हें कैसे पढ़ाएंगे ल‍िखाएंगे, मेरे स‍िर का बोझ कर दिया...'दो बेटी और एक बेटे के बाद चौथी औलाद भी बेटी होने के बाद से पत‍ि पत्नी में हर दिन कलह होती थी. आख‍िर में इस घरेलू कलह का अंत इतना भयावह था कि एक बेटी की जान चली गई और बाकी दो लड़कियां और एक लड़का अनाथ हो गए. घरौंदा की टीम जब सूचना पर पुलिस के साथ मौके पर पहुंची तो मां बाप फरार थे और वहां एक बच्ची की लाश पड़ी थी और तीन बच्चे सहमे से बैठे थे. पड़ोसियों ने बताया कि मां ने ही गुस्से में बच्ची को इतनी तेज पटका क‍ि उसकी जान चली गई. माता-प‍िता दोनों वहां से भाग गए. तीनों बच्चे भी दस साल के अंदर के थे. इन तीनों बच्चों को भी कार्यवाही के बाद बाल आश्रम में रखा गया. इनके भी पेरेंट्स कभी उन्हें पूछने नहीं आए. 

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केस 3- गाजियाबाद खोड़ा से एक फोन कॉल के बाद घर में 24 घंटे से बंद मिले भाई बहन भी बाल आश्रम पहुंच गए हैं. इस केस में भी यही पता चला था कि इन बच्चों के माता-पिता में हर दिन झगड़ा होता था. पत‍ि शराब पीकर हर रात पत्नी को बहुत मारता था. इनमें गालीगलौच होता. बच्चे सहमे रहते थे. कल रात मां अकेली थी, सुबह मकान मालिक ने ने देखा तो घर में ताला लगा था. करीब 24 घंटे बाद पता चला कि कमरे के अंदर बच्चे रो रहे थे. श‍िकायत पर पहुंची पुलिस ने तीन साल के बेटे और पांच साल की बेटी को बाहर निकाला और ये बच्चे भी घरौंदा बाल आश्रम पहुंच गए. 

ये वो सात बच्चे हैं जो गाजियाबाद स्थ‍ित घरौंदा बाल आश्रम में रह रहे हैं. इन बच्चों की जिंदगी में जो बीता इसके पीछे घरेलू कलह और माता पिता के खराब रिश्तों का की वजह साफ नजर आ रही है. टॉक्स‍िक र‍िश्तों ने इन्हें बाल आश्रम में 'अनाथ' बच्चा बनकर रहने पर मजबूर कर दिया. आज ये बच्चे ऐसे माता-पिता का इंतजार कर रहे हैं जाे उन्हें एक छत और अपना नाम दे सकें. भले ही बाल आश्रम में उन्हें घर जैसा ही माहौल देने की कोश‍िश की जाती है. फिर भी बच्चे लंबे समय तक ट्रॉमा में रहने को अभ‍िशप्त होते हैं. 

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रात में जागकर डर जाते हैं

घरौंदा बाल आश्रम में सहायक अधीक्षक और हाउस मदर अंजू भ‍िलवार ने बताया कि ऐसे कई बच्चे हैं जो घरेलू हिंसा के मामलों के कारण यहां आए. घरौंदा जो इन बच्चों के लिए अस्थायी ही सही लेकिन बहुत महत्वपूर्ण घर है. यहां बच्चों को हर तरह से संरक्षण ही नहीं, भोजन, शिक्षा, संस्कार और प्रशिक्षण दिया जाता है. यहां बच्चों को मातृत्व प्रदान किया जाता है. यहां हम सभी स्टाफ के लोग पूरा रखरखाव देखते हैं. यहां की व्यवस्था, देखभाल, स्टाफ का व्यवहार और समर्पण किसी पर‍िवार के समान ही है. फिर भी जो बच्चे घरेलू हिंसा का श‍िकार होते हैं या घरों में हिंसा होते देखते हैं, उन छोटे बच्चों में लंबे समय तक भय और असुरक्षा की भावना रहती है. रात में अचानक डर जाना, रोने लगना, गुमसुम रहना या दूसरे बच्चों से ज्यादा झगड़ना जैसे लक्षण भी द‍िखते हैं. इन बच्चों की हम लोग समय-समय पर काउंस‍िल‍िंग कराते हैं. 

अंजू बताती हैं कि मुझे याद है कि कैसे जब हमारे पास खोड़ा के घर से दो बच्चे आए, उन्हें मां ही घर में बंद करके चली गई थी. मां की क्या मानस‍िक स्थ‍िति या हालात रहें होंगे, ये तो कह नहीं लेक‍िन वो बच्चे बहुत सहमे हुए थे. वो कुछ बोल नहीं रहे थे. ये बच्चे कई दिन उदास रहे. उनसे जब कुछ पूछा जाता तो वो रोने लगते. पर‍िवारों के झगड़ों या पेरेंट्स अगर किसी जुर्म में मुजरिम बन जाते हैं तो ऐसे बच्चे भी हमारे आश्रम में आते हैं. इन बच्चों की समय-समय पर काउंस‍िल‍िंग की जाती है, इसके अलावा उन्हें विभ‍िन्न खेलों और एक्ट‍िव‍िटी के माध्यम से आत्म व‍िश्वासी बनाया जाता है. 

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सताता है फिर से छोड़े जाने का डर

घरौंदा होम की इंचार्ज कनिका गौतम बताती हैं कि ये बच्चे बहुत अलग-अलग बैक ग्राउंड के होते हैं. मैं इन बच्चों की काउंस‍िल‍िंग भी करती हूं. वो बताती हैं कि दो साल पहले हमारे पास मूल रूप से असम की रहने वाली नौ साल की बच्ची आई थी. पुलिस के मुताबिक उसके माता-पिता ने ही गाजि‍याबाद के एक दंपत्त‍ि को उसे घरेलू सहाय‍िका के तार पर बेच दिया था. पुलिस के जरिये हमें मिली थी. उस बच्ची ने बताया कि वो चार बहनें थी, मां बाप गरीब थे तो घरेलू नौकर बनने भेज दिया. बच्ची बताती थी कि वो जहां काम करती थी, वो लोग बहुत परेशान करते थे. कनिका कहती हैं कि जब हमारे पास आई थी वो बहुत ट्रॉमा में थी. ऐसे बच्चों में फिर से छोड़े जाने का डर होता ही है, वो बहुत सहमी रहती थी. इन बच्चों का ट्रॉमा बहुत लंबे समय तक रहता है. 

बच्चे उठाते हैं घरेलू हिंसा का खा‍म‍ियाजा  

घरौंदा बाल आश्रम में स्वयंसेवी के तौर पर लंबे समय से जुड़े लेखक सुभाष अख‍िल ने कई मंचों से इस समस्या को उठाया है. सुभाष अख‍िल कहते हैं कि जब एक पर‍िवार में रोज रोज झगड़े होते हैं तब मां बाप इस भयावह स्थ‍िति की कल्पना भी नहीं कर पाते. वो शायद ही कभी सोचते होंगे कि इस हिंसा का अंत बच्चों के न‍िर्वासन पर खत्म हो सकता है. न‍िम्न आय वर्ग के परिवारों में ये बात भी नहीं होती कि घर में छोटे बच्चों के सामने हिंसा होने पर उनके बाल मन पर क्या गंभीर प्रभाव पड़ सकता है. यही हिंसा जब हद से बढ़ जाती है तो इसका सबसे ज्यादा खामियाजा बच्चे उठाते हैं. वो आगे कहते हैं कि स‍िर्फ 10 साल तक के बच्चे ही नहीं कई ऐसे मामले भी होते हैं जिनमें टीनेजर बच्चे घर की कलह से उकताकर भाग जाते हैं, बाहर उन्हें कई कठ‍िनाईयों का सामना करना पड़ता है. कई बच्चे नशे या जुर्म की चपेट में भी आ जाते हैं. 

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माता-पिता का जिम्मेदारी समझना जरूरी 

वर‍िष्ठ मनोचिकित्सक डॉ सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि हमारे पास भी ऐसे कई माता-प‍िता आते हैं जिनके बच्चों में किशोरवय होने तक ही मनोव‍िकार आ जाते हैं. उनकी याददाश्त से लेकर समाज के साथ उनका व्यवहार असामान्य हो जाता है. उनका आत्मव‍िश्वास बहुत निम्नतम स्तर तक पहुंच जाता है. डॉ त्रिवेदी कहते हैं कि पश्च‍िमी देशों की तरह भारत में वैवाहिक मामलों में काउंस‍िल‍िंग का कोई चलन नहीं है. अगर सरकार मध्यम या न‍िम्न वर्गीय परिवारों को ध्यान में रखते हुए काउंस‍िलिंग सेंटर खोले तो ऐसे मामले घट सकते हैं. यही नहीं इसके लिए जागरुकता और बाल अध‍िकारों के संरक्षण पर भी काम करने की जरूरत है.

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