मध्यरात्रि को 'एक देश एक कर' का दम भर सरकार ने देश में आर्थिक आज़ादी का दावा किया, लेकिन सरकार के दावों और ज़मीन पर अमल होने के बीच कितना फासला है ये जानने की कोशिश में 'आजतक' की टीम ने विशेष पड़ताल की है. जीएसटी को लेकर जनता में आशंकाएं हैं और उम्मीदें भी हैं कि इससे कर प्रणाली आसान हो जाएगी.
जीएसटी लागू होने के अगली सुबह शनिवार को जब लोग घर से बाहर निकले तो उनको एहसास था कि आज समा बदला हुआ है. ज़हन में आशंकाएं और उम्मीद दोनों थी. दिल्ली की निवासी मनप्रीत से हम जब बात की तब वह सुबह नाश्ते करने अपने परिवार के साथ गोल मार्केट के इलाके में आई हुईं थीं. उन्होंने यहां की बड़ी मिठाई की दुकान पर अपने माता-पिता और बच्चों के साथ नाश्ता किया और उसके साथ ही जीएसटी सहित पहला बिल भी भरा.
मनप्रीत के पिता लीवर के मरीज हैं. ऐसे में उनको लगता है कि अब इलाज का ख़र्च बढ़ने वाला है. बाजार में दवाईयों की दुकान पर दुकानदार भी शुरुआती दिक्कतों में उलझे हुऐ दिखे. एक ऐसी ही दुकान के मैनेजर सुल्तान कई देर तक कंप्यूटर से जूझते रहे. दरअसल दुकान पर 20,000 से ज़्यादा आइटम हैं ऐसे में हर एक आइटम को लिस्ट कराना आसान काम नहीं है.
सरकार का कहना है कि जीएसटी से भ्रष्टाचार और काले धन पर लगाम लगेगी पर जीएसटी की पेचीदगी और इसको लेकर आशंकाओं ने लोगों को असमंजस में डाल रखा है. दिल्ली की निवासी सिमरन ने जीएसटी को 'ऐतिहासिक पहल' बताते हुए इसकी काफी तारीफ की लेकिन उनके जहन में भी काफी सवाल थे जिनका जवाब मिलना अभी बाकी है.
जीएसटी को क्रांतिकारी पहल बताकर सरकार अपनी पीठ ठोक रही लेकिन 70 साल के इतिहास को बदलने के लिए जमीन पर मजबूत व्यवस्था होना बेहज जरूरी है. ऐसे में सरकार के सामने चनौती है कि वो जल्द से जल्द जीएसटी पर फैली गलतफहमियां को दूर करे.