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ज्ञानवापी केस: अब जमीन के मालिकाना हक को लेकर छिड़ेगी जंग! सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आगे क्या?

कोर्ट में हिंदू पक्ष की ओर से सीनियर वकील वैद्यनाथन और मुस्लिम पक्ष की ओर से मस्जिद कमेटी के वकील हुजेफा अहमदी ने दलीलें पेश कीं. हिंदू पक्ष ने सर्वे की रिपोर्ट देखने के बाद ही फैसला लिए जाने की अपील की. इस पर मुस्लिम पक्ष ने विरोध जताया और सर्वे को लेकर दिए गए निर्देश को भी अवैध करार दिया. वो इसे निरस्त करने की मांग करने लगे.

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फाइल फोटो.
फाइल फोटो.
स्टोरी हाइलाइट्स
  • पुरातन सबूतों का मिलना मामले को दिलचस्प बना रहा है
  • मुस्लिम पक्ष सबूतों को नकारने के कानूनी दांव पेंच तलाश रहा है

ज्ञानवापी केस में हिंदू पक्ष की दलीलों ने पूरे मामले को नया मोड़ दिया है. हिदू पक्ष की दलीलें इस केस को जमीन के मालिकाना हक से जोड़ती है, हिंदू पक्ष ने सीधे ज्ञानवापी की जमीन पर अधिकार के सवाल को उठाया है और इस जमीन का मालिक आदि विश्वेश्वर को बताया गया है और यही तर्क और ट्विस्ट अब इस केस को बहुत दिलचस्प बना रहा है. ज्ञानवापी केस में शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में दोनों पक्षों की ओर से दलीलें पेश की गईं. इन दलीलों की वजह से इस केस में एक नया मोड़ आ गया है.

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ज्ञानवापी के सर्वे से पुरातन सबूतों का मिलना मामले को दिलचस्प बनाता जा रहा है. शिवलिंग, स्वास्तिक, फूल, चक्र, त्रिशूल सब दिख गया, इसलिए ज्ञानवापी के इतिहास की तस्वीर रिपोर्ट में साफ हो गई. सर्वे रिपोर्ट में बताए गए इन सबूतों ने हिंदू पक्ष की दलीलों को मजबूती से कोर्ट में रखने की ताकत दी. अब मुस्लिम पक्ष इन्ही सबूतों को नकारने के कानूनी दांव पेंच तलाश रहा है. 

सुप्रीम कोर्ट ने क्यों दिया आठ हफ्ते का वक्त

ज्ञानवापी मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि ये मामला अब सिविल जज से जिला जज को ट्रांसफर किया जाए. मामले से जुड़ी अर्जियों पर अब जिला जज फैसला लेंगे. 

जिला जज मुस्लिम पक्ष का वो आवेदन प्राथमिकता से सुनें, जिसमें हिंदू पक्ष के वाद को उपासना स्थल कानून 1991 के आलोक में सुनवाई के अयोग्य बताया गया है. इस अर्जी के निपटारे के 8 हफ्ते बाद तक सुप्रीम कोर्ट का 17 मई काआदेश प्रभावी रहेगा. SC के इस आदेश के मुताबिक, शिवलिंग वाली जगह सुरक्षित रखी जाएगी. नमाज में कोई दिक्कत नहीं होगी. 

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आठ हफ्ते का वक्त इसलिए दिया गया है ताकि जिला जज के आदेश से असंतुष्ट कोई भी पक्ष कानूनी राहत के विकल्प का इस्तेमाल कर सके.

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हिंदू पक्ष ने पेश की ये दलीलें...

हिंदू पक्ष का कहना है कि ज्ञानवापी कोई मस्जिद नहीं है क्योंकि औरंगजेब ने संपत्ति को समर्पित करके वक्फ नहीं बनाया था. ये संपत्ति हजारों साल पहले से आदि विश्वेश्वर के पास है और औरंगजेब ने उसे जबरन छीना है.

दलील में कहा गया कि विचाराधीन संपत्ति किसी वक्फ की नहीं है. संपत्ति ब्रिटिश कैलेंडर वर्ष की शुरुआत से लाखों साल पहले से ही भगवान आदि विश्वेश्वर में निहित है. ये उन्हीं की संपत्ति बनी हुई है. इस पर कोई वक्फ नहीं बनाया जा सकता है, भूमि पहले से ही एक देवता में निहित है. 

मुगल शासन के दरमियान लिखी ऐतिहासिक किताबों में और उसके बाद मुस्लिम इतिहासकारों ने ये दावा नहीं किया है कि औरंगजेब ने आदि विशेश्वर के मंदिर के ढांचे को ध्वस्त करने के बाद कोई वक्फ बनाया था या उसके बाद मुस्लिम समुदाय के किसी सदस्य या शासक ने वक्फ को ऐसी संपत्ति समर्पित की थी.

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मुस्लिम पक्ष ज्ञानवापी को एक मस्जिद बताते हुए तर्क देता रहा है कि आजादी से कई सालों से यहां पर नमाज पढ़ी जाती है. इस तर्क पर भी हिंदू पक्ष ने अपनी दलील पेश की. हिंदू पक्ष ने एक खास तर्क दिया. उनका कहना है कि विवादित निर्माण किसी भी वक्फ संपत्ति पर नहीं है, इसलिए ज्ञानवापी पर वक्फ का सिद्धांत लागू नहीं होता. ये भी कहा गया कि ज्ञानवापी मस्जिद 1669 में उसी स्थान पर एक हिंदू मंदिर को ध्वस्त करने के बाद बनाई गई.

कथित मस्जिद के निर्माण का ऐतिहासिक रिकॉर्ड है जिसमें साफ है कि औरंगजेब ने मंदिर को ध्वस्त करके ढांचे का निर्माण किया था. मुस्लिम शासक के आदेश पर किसी मंदिर की भूमि पर किए गए निर्माण को मस्जिद नहीं माना जा सकता है. जमीन के मालिक की ओर से समर्पित की गई जमीन पर ही वक्फ बनाया जा सकता है, चूंकि अनंत काल से ही भूमि और संपत्ति देवता की है, इसलिए वहां कोई मस्जिद नहीं हो सकती है.

मुस्लिम पक्ष ने दिया ये तर्क...

ज्ञानवापी के मामले में मुस्लिम पक्ष बार-बार पूजा स्थल कानून 1991 के लागू होने का तर्क दे रहा है. और उसी तर्क के आधार पर उसका मानना है कि सर्वे करना कानून का उल्लंघन है. हलांकि इस मामले में भी हिंदू पक्ष की दलील कुछ अलग बात कहती है. मुस्लिम पक्ष अपने तर्कों से 1991 के पूजा स्थल अधिनियम कानून के तहत, ज्ञानवापी के धार्मिक चरित्र से छेड़छाड़ ना किए जाने की बात कहता है, लेकिन इस पर हिंदू पक्ष की दलील है कि ज्ञानवापी की संपत्ति का धार्मिक चरित्र हमेशा एक हिंदू मंदिर का रहा है.

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ज्ञानवापी मस्जिद एक हिंदू पूजा स्थल पर बनी हुई है. इसके अलावा संपत्ति, हिंदू पूजा स्थल के चरित्र को निरंतर कायम रखे हुए है, इसलिए धार्मिक चरित्र हिंदू पक्ष के लिए लागू होता है. हिंदू मंदिर के अवशेष कथित ज्ञानवापी मस्जिद की दीवारों पर देखे जा सकते हैं. पुजारी और सामान्य हिंदू लगातार संपत्ति के भीतर मौजूद देवताओं की पूजा भी करते रहे हैं

1991 एक्ट पर हिंदू पक्ष का तर्क...

हिंदू पक्ष ने काशी को 5 किमी के रेडियस में बसी पौराणिक नगरी बताते हुए तर्कों से ये बताने की कोशिश की ज्ञानवापी मस्जिद का मूल धार्मिक चरित्र हिंदू मंदिर का रहा है. ऐसे में 1991 का कानून ज्ञानवापी के मामले में लागू नहीं होता है. 

अब ज्ञानवापी केस की कानूनी दिशा क्या होगी?

ज्ञानवापी के भविष्य की जिरह फिलहाल सर्वोच्च अदालत अपने यहां नहीं करने जा रही है. सुप्रीम कोर्ट पहुंचे मुस्लिम और हिंदू पक्ष को फिलहाल जिला अदालत में अपना अपना दावा पेश करना होगा. सुप्रीम कोर्ट में आज हुई सुनवाई में ये बात साफ हो गई कि कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए ही इस मामले की सुनवाई होगी. 

- सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को लेकर कुछ खास निर्देश दिए जैसे ज्ञानवापी केस की सुनवाई जिला अदालत में की जाएगी.

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- 17 मई को जारी किया गया अंतरिम आदेश अगले 8 हफ्तों तक जारी रहेगा. इसमें वुजु वाली जगह सील रहेगी.

- नमाज के लिए 20 से ज्यादा लोग भी जा सकेंगे. ज्ञानवापी में वुजू और नमाज की समुचित व्यवस्था की जाए. 

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मुस्लिम पक्ष ने ज्ञानवापी को लेकर नमाज और वुजू की यथास्थिति बनाए रखने पर भी जोर दिया. मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में इसके लिए खास दलीलें दीं. उनका कहना था कि अब तक जो भी आदेश ट्रायल कोर्ट ने दिए हैं वो माहौल खराब कर सकते हैं. 500 साल से उस स्थान को जैसे इस्तेमाल किया जा रहा था उसे बरकरार रखा जाए.

वाराणसी कोर्ट के ऑर्डर के आधार पर कल को कोई भी इसी तरह से किसी और मस्जिद के नीचे मंदिर होने का नैरेटिव सेट कर देगा. इससे देश भर में सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ेगा. मुस्लिम पक्ष ने ज्ञानवापी में नमाज पढ़ने में परेशानी पेश आने की बात भी रखी. दरअसल आज वुजू के लिए मुश्किलें आईं. कोर्ट में इस मुद्दे पर भी विशेष जिरह हुई.

आज की सुनवाई में हिंदू पक्ष की ओर से ये भी दावा किया गया है कि बनारस के प्लॉट नंबर 9130, 9131, और 9132 पर स्वयंभू आदि विश्वेश्वर का स्वामित्व है, जबकि मुस्लिम पक्ष का दावा है कि 1936 में दीन मुहम्मद बनाम सेक्रेटरी ऑफ स्टेट केस में ज्ञानवापी का परिसर वक्फ की संपत्ति घोषित हुई है.

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हिंदू पक्ष का आरोप है कि 1936 में दीन मुहम्मद वाले केस में सभी गवाहों ने ये बयान दिया था कि ज्ञानवापी परिसर में हिंदू पूजा पाठ करते हैं. जिस तरह से ज्ञानवापी में सर्वे और फिर पुरातात्विक सर्वे पूरा करने की मांग अदालतों तक पहुंची है. ऐसे में लगता है कि ज्ञानवापी परिसर की जमीन के मालिकाना हक का सवाल भी आगे बड़ा हो जाएगा और कानूनी लड़ाई की अगली रणभूमि जमीन होगी. 

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आइए अब ज्ञानवापी के इतिहास को जानने की कोशिश करते हैं

काल के कैलेंडर पर इस काशी की महिमा वेदों, पुराणों, उपनिषदों से लेकर शास्त्रों तक दर्ज है. जहां भारत भूमि पर मौजूद 12 ज्योतिर्लिंगों में आदि विश्वेश्वर को प्रथम ज्योतिर्लिंग की महिमा प्राप्त है. स्कंद पुराण के अध्याय 7 में श्लोक संख्या 131 के मुताबिक काशी में आदि विश्वेश्वर का 5 कोस मुक्त क्षेत्र है और इसी क्षेत्र में आदि विश्वेश्वर का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग विद्यमान है. 

शिवमहापुराण के अध्याय 23 के श्लोक संख्या 34 में कहा गया है कि पांच कोस के मुक्त क्षेत्र में आदिविश्वेश्वर स्वयंभू ज्योतिर्लिंग विद्यमान है. ऐसे तमाम पौराणिक दस्तावेज शिव की अविनाशी काशी की महिमा का बखान करते हैं. लेकिन अब इस काशी में शिव की व्यापकता की बहस अदालतों तक पहुंची है. आदि विश्वेश्वर बनाम स्टेट ऑफ यूपी 1997 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश में आदि विश्वेश्वर की पौराणिक मान्यताओं का जिक्र है. ये रिकॉर्ड पर है कि शास्त्रों में ज्ञानवापी के उत्तर की ओर स्वयंभू शिवलिंग है और स्कंद पुराण के अध्याय 99-100 के मुताबिक स्वयंभू विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग के ईशान कोण में स्वयंभू श्रृंगार गौरी का स्थान है.

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अनादिकाल की काशी में विश्वेश्वर स्थान पर मंदिर की मौजूदगी के ऐतिहासिक दस्तावेजों की बात की जाए तो एक दावे के मुताबिक 1585 ईस्वी में अकबर के शासन में राजा टोडरमल ने विश्वेश्वर स्थान पर मंदिर बनवाया था, जिसमें गर्भ गृह के साथ 8 मंडप भी थे. लेकिन दावा है कि उस मंदिर को सन 1669 में औरंगजेब के आदेश के बाद ध्वस्त कर दिया गया था, जिसके लिखित प्रमाण भी मौजूद हैं. 

एशियाटिक लाइब्रेरी में मौजूद रिकॉर्ड के दावे के मुताबिक 18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब का मंदिर तोड़ने का फरमान जारी किया था जिसके बाद 02 सितंबर 1669 को काशी विश्वेश्वर का मंदिर तोड़ने की कोशिश हुई. काशी विश्वेश्वर मंदिर के इतिहास को लेकर ये तथ्य विदेशी इतिहासकारों एच एम इलियट और जॉन डाउसन की किताब में भी है. द हिस्ट्री ऑफ इंडिया ऐज़ टोल्ड बाइ इट्स ओन हिस्टोरियंस नाम की किताब में काशी विश्वेश्वर मंदिर का जिक्र है. 

इसके अलावा मुगल दरबार के मुंशी मुहम्मद साफी मुस्तइद्दखां ने एक किताब लिखी थी, मआसिर ए आलमगीरी नाम की इस किताब में मुहम्मद सफी ने भी औरंगजेब के उन फरमानों का जिक्र किया है. मंदिर विध्वंस के बावजूद आदि विश्वेश्वर स्थल पर सनातन आस्था और भक्ति की ज्योति जलती रही, क्योंकि 1777 और 1780 के बीच अहिल्याबाई होल्कर ने प्राचीन विश्वेश्वर स्थान के बगल में नया विश्वनाथ मंदिर बनवा दिया था. मुगल काल के बाद हिंदुस्तान पर अंग्रेजों का शासन हुआ और तब काशी भी अंग्रेजों के अधीन थी. उस दौर में भी प्राचीन आदि विश्वेश्वर पर शिव पूजन जारी रहा. 

दावा है कि 1809 में प्राचीन आदि विश्वेश्वर स्थान पर फिर हिंदुओं ने कब्जा कर लिया. तब 30 दिसंबर 1810 को बनारस के डीएम वाटसन ने प्रेसिडेंशियल काउंसिल को चिट्ठी लिखी और ज्ञानवापी का परिसर हिंदुओं को सौंपने की सलाह दी थी. 

(आजतक ब्यूरो)

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